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Thursday, May 25, 2023
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JSSC नें PGT टीचर के 3120 पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया किया शुरू

JSSC ने पीजीटी टीचर की कूल 3120 रिक्त पदों को भरने के लिए ऑफिसियल रिक्रूटमेंट नोटिस जेएसएससी के ऑफिसियल वेबसाइट पर जारी कर दिया है और इस पद के लिए उपयुक्त अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किया गया है । जैसा कि आप जानते हैं 2022 में पीजीटी टीचर भर्ती के लिए जेएसएससी की ओर से परीक्षा की सारी तैयारियाँ किया गया था लेकिन माननीय झारखण्ड हाई कोर्ट के द्वारा नियोजन नीति को रद्द कर देने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी ।

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झारखण्ड 3120 PGT टीचर की होगी बहाली

JSSC के द्वारा कुल 3120 रिक्त पदों पर बहाली निकली गयाई है और इसके लिए PG के साथ B.Ed किये अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं। इस नियुक्ति में भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान आदि विषय के कुल 3120 शिक्षक बहाल किये जाएंगे। हालांकि पहले से आवेदन किये अभ्यर्थियों को दोबारा आवेदन करना होगा परंतु आवेदन शुल्क दोबारा नहीं देना पड़ेगा बस उन्हे Registration No. डालना होगा।

2016 से पहले के नियोजन नीति से होगी बहाली

झारखण्ड मे नियोजन नीति रद्द होने के बाद झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फोन कॉल से छात्रों से राय लेकर 2016 से पहले के नियोजन नीति के आधार पर JSSC के सभी नियुक्तियों को लेने का निर्णय लिया है। इसके आलवे क्षेत्रीय भाषा को भी अनिवार्य लिस्ट से बाहर कर दिया है।

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इन विषयों में होनी है 3120 PGT शिक्षकों की बहाली

  • जीव विज्ञान – 218
  • रसायन शास्त्र – 227
  • भूगोल – 164
  • हिन्दी – 163
  • अर्थशास्त्र – 167
  • इतिहास – 182
  • संस्कृत – 169
  • भौतिक शास्त्र – 251
  • गणित – 185
  • वाणिज्य – 200
  • अंग्रेजी – 211
  • जीव विज्ञान – 73
  • हिन्दी – 54
  • रसायन शास्त्र – 75
  • भूगोल – 54
  • हिन्दी – 54
  • अर्थशास्त्र – 55
  • इतिहास – 61
  • संस्कृत – 58
  • भौतिक शास्त्र – 85
  • गणित – 63
  • वाणिज्य – 67
  • अंग्रेजी – 73
  • कुल – 3120

PGT टीचर के लिए कब और कैसे Online अप्लाइ करें?

JSSC के Official Website jssc.nic.in पर जाकर 05 अप्रेल 2023 से 04 मई 2023 तक Online Apply कर सकते हैं। पहले से Apply किये छात्र Registration No. डालने पर दोबारा Application Fees नहीं देना पड़ेगा।

झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व | Tusu Parv

झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व:- भारत देश में मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्त्व है। मकर सक्रांति को सूर्य के संक्रमण का त्योहार माना जाता है एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है। सूर्य देव जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो मकर सक्रांति मनाई जाती है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है । 

झारखंड राज्य में अनेक तरह के पर्व-त्यौहार मनाया जाते हैं, जिसमें अधिकांश पर्व-त्यौहार प्रकृति से जुड़े हुए होते हैं लेकिन टुसू पर्व का महत्व कुछ और ही है। पांच परगना क्षेत्र का एक प्रचलित कहावत है – “बारह मासे तेरह परब” इसी से जुड़ा हुआ है टुसू पर्व। झारखंड के मूलनिवासी (सदानी) और आदिवासी लोग इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। टुसू पर्व को “पुस पर्व” के नाम से भी जाना जाता है। पुस पर्व की शुरुआत अगहन संक्रांति से होती है और मकर सक्रांति में ख़त्म होती है, लेकिन आजकल मेलों की संख्या ज्यादा होने के कारण यह माघ मास तक चलता है।

आज के Article में जानेंगे:-

  • झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व
  • टुसू पर्व की विशेषता
  • टुसू थापना गीत
  • टुसू विसर्जन गीत
  • टुसू की कहानी
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार टुसू पर्व की कहानी
  • टुसू की स्थापना अगहन संक्रान्ति में ही क्यों किया जाता है?
  • कुंवारी कन्याओं की अहमियत बताता है टुसू पर्व

झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व

पर्व का नामटुसू पर्व / पुस पर्व
मनाने का महिनादिसम्बर-जनवरी
राज्यझारखण्ड-पश्चिम बंगाल
मनाए जाने वाले क्षेत्रपाँच परगना-मानभूम
मुख्य मेलेसती घाट, सूर्य मंदिर, सुईसा मेला, देलघाटार मेला
मुख्य पकवानगुड़ पीठा

झारखंड के रांची जिला के पांच परगना तथा पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिला के मानभूम इलाके में पूरे पुस मास को बड़ी ही धूमधाम, खुशी पूर्वक और उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। इस समय सभी किसान अपने खेतों से धान के फसलों को काटकर और उठाकर अपने घर – खलियान लाते हैं और धान की पिटाई कर धान को और पुआल को अलग-अलग कर लेते हैं। जिससे सभी के घरों में धन – धान्य से भरे होते हैं। यही कारण है कि इस समय यहां के बच्चे – बूढ़े, पुरष – महिलाएं सभी काफी उत्साहित होते हैं।

टुसू पर्व की विशेषता क्या है?

टुसू पर्व लोक संस्कार और संस्कृति का एक अत्यंत मूल्यवान संपदा है। कहीं-कहीं पर टुसू के प्रतीक के रूप में चौड़ल बनाया जाता है। वस्तुत: यह टुसू की पालकी है जो विभिन्न रंगों के कागजों द्वारा पतली – पतली लकड़ियों, सन खाड़ी, बांस की सहायता से भव्य महल का आकार प्रदान किया जाता है। कहीं-कहीं गुड़ियों से भी टुसू को अच्छे से सजाय और बनाया जाता है परंतु स्पर्धावश आजकल बड़े – बड़े एवं कीमती चौड़ल का निर्माण कारीगरी का एक अच्छा नमूना पेश करता है। बहुत सारे मेलों में बड़े और सुंदर चौड़ल के लिए पुरस्कार राशि भी रखा जाता है, जिसके कारण स्पर्धा बढ़ गया है।

झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व | Tusu Parv
झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व | Tusu Parv

पुस पर्व यानि टुसू पर्व अगहन संक्रांति ( दिसम्बर) से शुरू होती है और मकर सक्रांति (जनवरी) में खत्म होती है परंतु आजकल के लोगों के मन में पुस पर्व के प्रति आनंद अधिक बढ़ गया है जिस कारण यह समूचा माघ महीना तक चलता है। इस समय किसान, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं आदि काफी खुश होते हैं क्योंकि इस समय प्रत्येक घरों में धन-धान्य भरे होते हैं। 

पुस पर्व को खासकर झारखंड के रांची जिला के पूर्वी क्षेत्र पांच परगना (बुंडू, तमाड़, राहे, सोनाहातु, सिल्ली), रामगढ़, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, खूंटी, सरायकेला – खरसावां तथा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, बांकुड़ा, मेदिनीपुर, झालदा तथा उड़ीसा के मयूरभंज, क्योंझर, बनई – बमड़ा, रायरंगपुर, राउरकेला, बारीपदा और असम के कुछ इलाकों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

अगहन संक्रांति के दिन गांव की कुंवारी लड़कियां तथा महिलाएं पूरे समूह में पास के नदी या तालाब में जाकर नहा धोकर बांस के टुपला को फूल – मालाओं से सजाकर और गोबर लाडू़, धूप – धुना, अगरबती, लड्डू, इलाइची दाना, चुउरा आदि का प्रसाद चढ़ाते हैं। गांव के एक निश्चित खाली मकान या फांदा घर में टुसू की थापना/ स्थापना करते हैं। 

टुसू थापना और टुसू थापना गीत

टुसू की थापना में किसी मंत्रोचार का विधान नहीं है। टुसू की पूजा गीत गाकर की जाती है। यह प्रक्रिया महीने भर प्रत्येक शाम ताजे फूल चढ़ाकर दीपक से आरती की जाती है। पुस महीना समाप्त होने से एक दिन पहले खासी चहल-पहल रहती है। इस दिन गुड़ पिठा, तिल भर कर पिठा बनाया जाता है। रात्रि में आठ प्रकार के अनाज यानी आठ कलाई (चावल, गेहूं, मकई, कुरथी, चना, मटर, बादाम, अरहर) भुने जाते हैं और भुजा को टुसू पर चढ़ाया जाता है। लोगों का मानना है कि टुसू को भुजा बहुत पसंद है। 

टुसू थापना गीत

1. हामरा जे मां टुसू थापि, अगहन सांकराइते गो।

   अबला बाछुरेर गोबर, लगन चाउरेर गुड़ी गो।। 

   सइल दिलाम सलिता दिलाम, दिलाम सरगेर बाति गो।

   सकल देवता संइझा ले मां, लखि सरस्वती गो।।

2. अगहन सांकराइते टुसू हांसे – हांसे आबे गो।

    पुसअ सांकराइते टुसू कांदे – कांदे जाबे गो।। 

Tusu Thapna Geet

टुसू विसर्जन की पहली रात को जागरण कहा जाता है। जागरण वाले रात में गांव के सभी लोग एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं और टुसू को चौड़ल (टुसू का पालकी) में बैठाकर उसे गाजे-बाजे के साथ गांव का भ्रमण कराया जाता है। मकर संक्रांति के सुबह जिसमें सभी धर्म, जाति, संस्कृति एवं भाषा के लोग बड़े ही प्रेम भाव, एकता और आत्मीयता के साथ सदल-बल टुसू गीत गाते हुए ढोल, नगाड़ा, धमसा, शहनाई आदि बजाते हुए किसी नदी के किनारे निर्दिष्ट स्थान पर जाते हैं। उस निर्दिष्ट स्थान पर विभिन्न गांवों के लोग अपने चौड़लों के साथ आते हैं, जिससे वहां मेला-सा लग जाता।

टुसू विसर्जन के गीत करुणा भाव से ओत-प्रोत और बड़े ही मार्मिक होते है। टुसू गीतों में नारी जीवन के सुख – दुःख, हर्ष-विवाद, आशा-आकांक्षा की अभिव्यक्ति होती है। कुछ गीतों में दार्शनिक भाव भी दृष्टिगोचर होते हैं। टुसू पर्व एक संगीत प्रधान त्योहार है। संगीत के बिना इस त्योहार का कोई महत्त्व नहीं है।

टुसू थापना गीत

1. तिरिस दिन जे राखिलाय टुसू, तिरिस बाति दिये गो।

   आर राखिते लारि टुसू, मकर हइलो बादि गो।।

2. तोके टुसू जले दिबोना, आमार पुरा मने बासना।

Tusu Visarjan Geet

यह पर्व मनुष्य को दुःख और पीड़ा से मुक्ति दिलाने वाला पर्व है। आपस की शत्रुता को मिटाकर आपसी तालमेल, प्रेम तथा सदभाव लाने वाला त्योहार है। टुसू पर्व के दिन सभी लोग अपने को उन्मुक्त समझते हैं और पूर्ण स्वाधीनता का अनुभव करते हैं। झारखंड में बसने वाले मूलवासी तथा आदिवासी संप्रदायों के लोग समान रूप से आनंदोल्लास के साथ टुसू पर्व मनाते है। लेकिन बहुत सारे लेखक इसे एक जातीय त्योहार बताया है। 

डॉ. सुकुमार भौमिक इसे सीमांत बंगाल – पूर्वी झारखंड का जातीय त्योहार मानते हैं। उनका मानना है कि टुसू एक कुड़मि (महतो) की अत्यंत रूपवती, गुणवती तथा बलवती कन्या थी। डॉ. सुधीर करण ने अपने एक लेख “टुसू पुराण” में बताया है कि टुसू का असली नाम रुकमणि था। अब यह पर्व कोई जाति या धर्म का नहीं रह कर सार्वजनिक हो गया है। 

टुसू पर्व की प्रचलित कहानियां क्या-क्या हैं?

टुसू पर्व की बहुत सारी किंवदंतियाँ, लोककथाएं ,आधुनिक कहानियाँ आदि लोगों के बीच प्रचलित हैं जो लोगों के बीच कही और सुनी जाती हैं, यहाँ नीचे कुछ कहानियाँ उल्लेखित की गई हैं।

लोककथा के अनुसार टुसू पर्व की पहली कहानी

किंवदंतियों की अनुसार बहुत दिन पहले की बात है पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के काशीपुर गांव में एक गरीब कुड़मि किसान के घर में टुसू की जन्म हुई थी। टुसू जन्म से ही काफी सुन्दर थी, जैसा उसका रूप था उसी तरह उसका गुण भी था। उसके मन में ना तो थोड़ा सा भी घमंड था और ना ही ईर्ष्या थी। यही कारण था कि टुसू को अपने आस-पास के लोग खूब मानने लगे थे। टुसू की खूबसूरती के चर्चा संपूर्ण राज्य में होने लगी थी।  

यह चर्चा तत्कालीन क्रूर राजा के दरबार तक भी जा पहुंचा। राजा ने टुसू को पाने के लिए अनेक तरह से रणनीति बनाई। उस वर्ष राज्य भर में भीषण अकाल और सुखाड़ पड़ा था। उसके राज्य के प्रजा/किसान कर या लगान देने के हालात में नहीं थे। इसका फायदा उठाते हुए क्रुर राजा ने अपनी लगान को दोगुना कर दी और अपने सैनिकों से जबरन कर वसूली शुरू करवा दी। राज्य भर के किसान इससे काफी परेशान थे। 

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क्रुर राजा के आतंक से निपटने के लिए टुसू ने किसानों का एक मजबूत संगठन बनाकर आगे आईं। टुसू को साथ देने के लिए और उसकी इज्जत को बचाने के लिए राज्य भर के मुंडा, मानकी, कुड़मी (महतो), अहीर (यादव), कुम्हार, तेली, साहु, बनिया, कोइरी, घासी, लोहरा, ब्राह्मण, गोसाईं, मांझी आदि जाति के लोगों ने पूरे एकता के साथ लड़ाई शुरू कर दिया। इस तरह से लड़ाई करते – करते पश्चिम दिशा की ओर आने लगे। जहां पर सतीघाट मेला लगता है, उसी जगह में राजा के सैनिकों और किसानों की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में हजारों किसान मारे गये। आखिरकर बचे हुए किसानों को हार मानना पड़ा।

अब क्रुर राजा टुसू को अकेला पाकर उसके उसकी इज्जत लूटने के लिए उसके तरफ दौड़ा। उसी समय टुसू अपनी मान-सम्मान, इज्जत और सतित्व बचाने के लिए मां सबरनी  को विनती करके उफनती हुई नदी में कूदकर मां गंगा की गोद में समा गई। इस डूबी हुई जगह को मुंडारी भाषा में “मारांग इकिर” कहते हैं। मरांग का अर्थ होता है “बड़ा” और इकिर का अर्थ “दह” होता है। इसी तरह से मारांगकिरी गांव का नामकरण हुआ। टुसू को नदी में डूबते हुए देखकर आस-पास के लोग भकुआ कर रह गया, इसी कारण से सतिघाट मेला के पास के गांव का नाम भकुआडीह हुआ।

सतीघाट मेला के जिस जगह पर मार-काट हुआ था, उस जगह रक्त से लाल हो गया था। इन जगहों पर अभी भी घास नहीं उगता है और यहां की मिट्टी अभी भी लाल दिखाई देता है। सतीघाट को हम लोग “त्रिवेणी संगम” भी कहते हैं क्योंकि ये राढ़ू, कांची और स्वर्णरेखा नदी का संगम स्थल है । यहां पर पांच परगना और मानभूम के लोग पिंडदान देने के लिए भी आते हैं। 

टुसू मेला/सतीघाट मेला में गाए जाने वाला गीत

1. सतीघाटेर लाल धुरा, उड़िलो धुरा लागिलो चादरे।

   चादर काचिबो जोड़ा साबुने, उड़ुक धुला लागुक चादरे।।

2. एक सड़अपे, दुई सड़अपे, तीन सड़अपे लक चले।

    हामदेर टुसू एकला चोले, बिन बातासे गो डोले।।

Tusu Geet

मकर सक्रांति के दिन ही टुसू स्वर्ण रेखा नदी में डूब कर अपनी इज्जत बचाई थी। टुसू का पर्व उस सहासी युवती की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। इधर के लोग मकर सक्रांति को ही “पुस पर्व या टुसू पर्व” कहते हैं। टुसू की प्रतिमा को नदी में विसर्जन कर एक तरह से उसे श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पूर्वी झारखंड और बंगाल में इस पर्व की महत्ता का एहसास इसी से हो जाता है कि अधिकांश कार्यालयों और कार्य स्थलों पर लोग अवकाश पर चले जाते हैं। पुस पर्व में सारे कार्यालयों में काम लगभग ठप सा हो जाता है। इन क्षेत्रों में पुस पर्व को बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।

लोककथा के अनुसार टुसू पर्व की दूसरी कहानी

टुसू एक राजा की बेटी थी, जो काफ़ी रूपवती, गुणवती और बलवती थी। टुसू की शादी बाॅंड़दा (बरेन्दा) गांव का राजा के पुत्र से शादी हुआ था। टुसू की शादी के कुछ ही दिन बाद उसके पति का मृत्यु हो गया। पहले का नियमानुसार अगर किसी स्त्री के पति का मृत्यु हो जाता था तो उसके जलते हुए चिता में स्त्री को भी कूद कर अपनी जान देना होता था। उसी नियम से टुसू भी अपने पति के जलते हुए चिता में कूद कर जान दे दी। ये सब घटना स्वर्णरेखा नदी के पास हुई थी, जिसके कारण से इस जगह का नाम “सतीघाट” हुआ। इस जगह पर प्रत्येक साल मकर संक्रांति के दुसरे दिन टुसू की याद में सतीघाट मेला लगता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार टुसू पर्व की कहानी

टुसू कोई राजा की बेटी या कोई सुंदर लड़की नहीं थी। हमारे संस्कृति तथा आर्थिक रूप से जो धन है वो है धान यानि धान का ही नाम टुसू है, जिसे हमलोग अन्न के रुप में ग्रहण करते हैं। इसका विश्लेषण से पता चलता है कि पांच परगना क्षेत्र के बूढ़ा – पुरखा लोग कहते हैं – टुसू का अर्थ है अति सुन्दर, सर्वश्रेष्ठ और सबसे ऊंचा। पांच परगना क्षेत्र में एक कहावत भी प्रचालित है – तुम तो आज बिलकुल टूसुमानी जैसा लग रही हो। इसका मतलब हुआ – बहुत सुंदर दिखना। 

रहिन यानी जेठ का महीना में किसान अपने घर में रखा हुआ पुराना धान को एक टोंकी (बांस का टुपला) या कांसा थाल में रखकर उसे अपना खेत ले जाते हैं और धान पूनहा किया जाता है। पांच परगना क्षेत्र में किसान को बाप और धान को बेटी के रूप में माना जाता है। जिस तरह से बाप अपनी बेटी को बहुत ही लालन-पालन और बड़े ही जतन के साथ बड़ा करता है। ठीक उसी तरह एक किसान हर रोज अपने बोए हुए हुए धान (बिहीन धान) को देखने जाता है, कहीं वह ठीक से हो रहा है या नहीं। धीरे-धीरे बिहिन धान अंकुरित होने लगता है और उसे एक महीना के बाद भादर मास के समय खेत में लगाया जाता है। 

मनसा पूजा में पानी के देवता वरुण को आराधना किया जाता है ताकि अच्छा से पानी बरसे और हमारा धान का फसल अच्छा हो। धान को बहुत जतन (ध्यान और रखरखाव) से बड़ा किया जाता है। एक बाप (किसान) अपनी बेटी (धान) को अच्छा से फले – फूले इसीलिए ये सब काम किया जाता है।

टुसू की स्थापना अगहन संक्रान्ति में ही क्यों किया जाता है?

किसान जो भादर मास में धान लगाते हैं तो वो तीन महीना बाद पक जाता है या काटने का समय हो जाता है या फिर बहुत कोई तो काट कर घर भी लाते हैं। जब किसान धान काटकर खेत से अपना खलियान (खरियन) लाता है। तब वो किसान अपना खेत में धान गाछी यानी धान का गुच्छा छोड़कर रखता है, जिसे हमलोग डिनिमाई या जिनीबूढ़ी कहते हैं इसे ही हम लोग लखी मां भी कहते हैं। 

इसी धान गाछी को किसान अगहन संक्रान्ति में पूरे विधि – विधान से अपने घर लाते हैं। जिस तरह से हमलोग अपनी बेटी को ससुराल से घर लाते हैं तब बहुत ही आदर – सत्कार से लाते हैं। ठीक उसी तरह जिनी बूढ़ी को भी लाया जाता है और वही रात में टुसू थापना भी किया जाता है। टुसू थापना में जो कुंवारी लड़की होती हैं वे लोग टुसू की पुरानी सखी होती हैं। टुसू को एक मास तक सेवा तथा पूजा किया जाता है।

टुसू पर्व को संपन्नता का प्रतीक क्यों माना जाता है?

टुसू पर्व कृषकों के घरों में संपन्नता का प्रतिक है, कारण इस समय किसानों के घरों में धन-धान्य से भरे हुए होते हैं। किहीं को खाने-पीने का तकलीफ नहीं होता है। कोई भी व्यक्ति इस समय भूखा नहीं सोता है। सारे लोग खुशीपूर्वक तथा चिंता फिक्र छोड़ कर रहते हैं। 

इस पर्व के साथ कोई सामाजिक परंपराएं जुड़ी हुई हैं, जिसके कारण सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से टुसू पर्व का महत्व है। एक सती स्त्री के रूप में भी टुसू की पूजा-अर्चना की जाती है। यह पर्व पूरे पौष/पुस महीना तक मनाया जाता है और माह के अंतिम दिन यानी मकर सक्रांति के दिन टुसू का विसर्जन किया जाता है।

किसान अपनी खेत-खलियान का कार्य समाप्त करने के बाद इस पर्व को बड़ी ही खुशी पूर्वक मनाया जाता है। पांच परगना और मानभूम के क्षेत्र में इस पर्व को “पुस परब या टुसू परब”  कहा जाता है। इस पर्व पर विशेष रूप से तैयार किए गए पिठा को “पुस पिठा/गुड़ पिठा” कहा जाता है। 

टुसू पर्व में कौन-कौन से व्यंजन और पकवान बनाये जाते हैं?

पुस पर्व पांच परगना के प्रत्येक घरों में गुड़ पिठा/आरसा पिठा, चीनी पिठा, मसला पिठा, खापरा पिठा, फुकरइन, पकौड़ी, आलू चाॅप, गुलगुला, मुढ़ी, तील कुट, खस्सी मांस, देसी मुर्गा, मांस चारपा, छिलका पिठा आदि अनेक तरह के पकवान बनते हैं। मकर पर्व के दिन लोग सुबह में ही नदी, तालाब आदि जगहों में नहा धोकर नया वस्त्र धारण करते हैं और अपने घर में बने हुए भगवान को आराम से धूप में बैठकर खाते हैं।

पांच परगना और मानभूम क्षेत्र में 11 जनवरी को “चावल भिंगा/अरवा चावल धोवन”, 12 जनवरी को “गुंड़ी कुटा”, 13 जनवरी को “बांउड़ी”, 14 जनवरी को “मकर सक्रांति/दही-गुड़-चुउरा”, 15 जनवरी को “आखाइन जातरा” होता है। आखाइन जातरा के दिन हार घुरा, गोबर काटना, बैल का पैर धोना, घर गाड़ी, शादी-ब्याह के लिए वर-कन्या देखा – देखी आदि अनेक शुभ कार्य होते हैं तथा इसके बाद कोई भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। 

आखाइन जातरा के बाद से ही नवीन धान में अगले धान को सृजित करने की शक्ति का प्रवेश भी इसी के बाद आरंभ होता है, जो कि अगली बारिश और मिट्टी का संपर्क पाते ही प्रस्फुटित हो जाती है और मानव कल्याण के साथ-साथ ही समस्त जीव कल्याण में अपना अमूल्य योगदान देती है। 

पुस पर्व या टुसू पर्व को सभी जाति और धर्म के लोग बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते हैं। बांउड़ी, मकर और आखाइन जातरा का सुयोग पाकर इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। पांच परगना और मानभूम के इलाके में अगहन मास (दिसंबर) से लेकर माघ मास (फरवरी) तक टुसू मेला इधर-उधर लगते रहते हैं। यहां के हर एक मेले का अलग-अलग खासियत होता है।

कुछ प्रसिद्ध टुसू मेला :- सतीघाट मेला, हरिहर मेला (कोंचो मेला), रामकृष्ण मेला, शिव टांगरा मेला, नीलगिरी मेला, सूर्य मंदिर मेला, हाराडीह – बूढ़ाडीह मेला, देलघाटार मेला, पानला मेला, राजा मेला, हाई टेंशन मेला, मोराबादी मेला, जोबला मेला, हुंडरू मेला, जोन्हा मेला, घुरती सतीघाट मेला, सिरगिटी मेला, बाड़ू मेला, बेनिया टुंगरी मेला, कुलकुली मेला, घोड़ा/पेंड़ाईडीह मेला, लांदुपडीह मेला, झारखंड मेला, ताऊ मेला, साड़ मेला, पागला बाबा मेला, साड़ मेला, जयदा मेला, सुभाष (सुइसा) मेला, मुरी टुंगरी मेला आदि बहुत सारे सारे टुसू मेला लगते हैं।  

टुसू पर्व कुंवारी कन्याओं की अहमियत बताता है।

सू पर्व को नारियों का सम्मान के रूप में भी मनाया जाता है। लगभग माह तक चलने वाला इस पर्व लगभग एक महीना तक चलने वाला है इस पर्व के दौरान कुंवारी कन्याओं की भूमिका सबसे अधिक होती है। कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं और उसकी सेवा-भावना, प्रेम-भावना, शालीनता के साथ पूजा करती हैं। पूजा के दौरान लड़कियां विभिन्न प्रकार के टुसू गीत भी गाते हैं। इसमें कुंवारी लड़कियों की मां, चाची, बुआ, मौसी, भाभी आदि सहयोग करती हैं।

मकर सक्रांति के एक दिन पहले पुरुषों के द्वारा बिना बाजी का मुर्गा लड़ाई यानी मुर्गा उत्सव मनाया जाता है, जिसे “बांउड़ी” कहा जाता है। इस उत्सव से लौटने के उपरांत सारी रात लोग नाचते – गाते – बजाते हैं। फिर अहले सुबह सभी ग्रामीण मकर स्नान के लिए अपने आस-पास के नदी पहुंचते हैं। मकर स्नान के दौरान गंगा माई का नाम लेकर मिठाई – इलायची दाना को अपने पीछे की ओर फेंकता है और उसके पीछे एक लड़का रहता है जो उसको कैच करता है उसके बाद उस प्रसादी को वही खाता है।‌ फिर नहा – धोकर नए वस्त्र पहनते हैं उसके सब अपने – अपने घर आते हैं। फिर अपने घर आकर घर में बने हुए पकवान को बड़े ही चाव से अपने आंगन के धुप में बैठे कर खाते हैं। फिर दोपहर में मांस-भात खाकर सभी कोई गांव के बाहर फोदी खेलने के लिए निकल जाते हैं। फोदी एक तरह का खेल है जो  एक बड़ा डंडा और बांस का बनाया हुआ गेंद (बांस के गांठ को काट कर छोटा गेंद बनाया जाता है) का खेल खेला जाता है।

“टुसू पर्व एक सांस्कृतिक पर्व है ये हमारे संस्कार से जुड़ा हुआ है। हालांकि जो उमंग, उत्साह और उल्लास 17-18 साल पहले था अब वह देखने को नहीं मिलता है। एक तरह से कह सकते हैं कि धीरे-धीरे यह पर्व भी औपचारिकता यानी नाम मात्र भर ही रह गया है।”

Tusu Parv

निष्कर्ष :-

आज के इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि – झारखंड की संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक टुसू पर्व, टुसू पर्व की विशेषता, टुसू थापना गीत, टुसू विसर्जन गीत, टुसू की कहानी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार टुसू पर्व की कहानी, टुसू की स्थापना अगहन संक्रान्ति में ही क्यों किया जाता है? तथा कुंवारी कन्याओं की अहमियत बताता है टुसू पर्व आदि अनेक सारी जानकारियां जो आपको जानने लायक हो।

आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें Comment करके ज़रूर बताएं तथा अगर कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वो भी Comment में लिख कर बताएं ताकि हम उसे सुधार कर इससे और भी बेहतर कर सकें।

लेखक :- हेमंत अहीर

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची, झारखंड

FAQs

टुसू कौन थी?

टुसू को लेकर दो – तीन तरह के प्रचलित कहानियाँ हैं, जिसमें से एक है – टुसू एक गरीब किसान की बेटी थी, जो अपने राज्य के क्रूर राजा से लड़ाई की और अंत मे स्वर्णरेखा नदी मे कूद कर जान दे दी। दूसरी है – टुसू राजा की बेटी थी जिसका शादी बारेंदा गाँव राजा के पुत्र के साथ शादी हुआ था। उसके पति के आकस्मिक निधन के कारण टुसू भी जलते हुये चीते मे जलकर सती हो गई। तीसरा है – टुसू कोई राजा की बेटी या कोई सुंदर लड़की नहीं थी। हमारे संस्कृति तथा आर्थिक रूप से जो धन है वो है धान यानि धान का ही नाम टुसू है, जिसे हमलोग अन्न के रुप में ग्रहण करते हैं।

टुसू पर्व कब से कब तक मनाया जाता है?

टुसू पर्व अगहन संक्रांति ( दिसम्बर) से शुरू होती है और मकर सक्रांति (जनवरी) में खत्म होती है लेकिन आजकल पूरे माघ महिना तक चलता है।

टुसू पर्व में कौन – कौन मेला लगता है?

सतीघाट मेला, हरिहर मेला (कोंचो मेला), रामकृष्ण मेला, शिव टांगरा मेला, नीलगिरी मेला, सूर्य मंदिर मेला, हाराडीह – बूढ़ाडीह मेला, देलघाटार मेला, पानला मेला, राजा मेला, हाई टेंशन मेला, मोराबादी मेला, जोबला मेला, हुंडरू मेला, जोन्हा मेला, घुरती सतीघाट मेला, सिरगिटी मेला, बाड़ू मेला, बेनिया टुंगरी मेला, कुलकुली मेला, घोड़ा/पेंड़ाईडीह मेला, लांदुपडीह मेला, झारखंड मेला, ताऊ मेला, साड़ मेला, पागला बाबा मेला, साड़ मेला, जयदा मेला, सुभाष (सुइसा) मेला, मुरी टुंगरी मेला आदि बहुत सारे सारे टुसू मेला लगते हैं।  

टुसू गीत कब गया जाता है?

टुसू गीत अगहन मास से माघ मास तक गया जाता है।

टुसू को क्या – क्या चढ़ाया जाता है?

बांस के टुपला को फूल – मालाओं से सजाकर और गोबर लाडू़, धूप – धुना, अगरबती, लड्डू, इलाइची दाना, चुउरा आदि का प्रसाद चढ़ाते हैं।

टुसू पर्व कहाँ – कहाँ मनाया जाता है?

टुसू पर्व खासकर झारखण्ड, पश्चिम बंगाल इलाके में मनाया जाता है।

टुसू पर्व में कौन-कौन से पकवान बनाये जाते हैं?

टुसू पर्व में खासकर गुड़ पीठा बनाया जाता है साथ ही इसके आलावे बहुत तरह के पकवान बनते हैं।

टुसू विसर्जन गीत कैसा होता है?

टुसू विसर्जन के गीत करुणा भाव से ओत-प्रोत और बड़े ही मार्मिक होते है।

टुसू पर्व कैसा पर्व है?

टुसू पर्व एक सांस्कृतिक पर्व है ये हमारे संस्कार से जुड़ा हुआ है। जो उमंग, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

Blue Pond रांची की सबसे खूबसूरत जगह जहां एकबार सभी जाना चाहेंगे

Blue Pond Ranchi, Jharkhand :- झारखण्ड को प्रकृति ने बड़ी ही फुर्सत से बनाया है, जिसके चलते यहां पर तरह – तरह के नदी – नाले, पहाड़ – पर्वत तथा झरना – बांध आदि भरा हुआ है। वैसे तो झारखंड को खनिजों का राज्य कहा जाता है और साथ ही काला हीरा का राज्य भी कहा जाता है।

 पुरे भारत में झारखंड के खुबसूरती तथा यहां के खनिज – संपदाओं के बारे में चर्चा करते हुए नहीं थकते हैं। झारखण्ड की प्रकृति हमें बहुत ही मजबूती से जोड़े हुए रखती है। झारखंड में बहुत सारे ऐसा रहस्य छुपा हुआ है जो कई लोगों को पता नहीं है। वैसे ही एक Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi जो पिछले Lockdown से काफी चर्चित है। 

Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi

Blue Pond Ranchi, Jharkhand

Tourist PlaceBlue Pond Ranchi, Jharkhand
Place TypeLandmark & Historical Place
AddressTupudana Ring Road, Balisiring, Ranchi, Jharkhand, India, 834004
Locality/City/VillageTupudana Ring Road, Balisiring
DistRanchi
StateJharkhand
CountryIndia
Official Websitehttps://ranchi.nic.in/
Coordinate23.35062, 85.31378
Rating4
Hashtag#bluepond
Timings08 Am – 04 Pm

क्या है ब्लू पॉण्ड का रहस्य?

सुबह – सुबह Blue Pond आने का मजा कुछ ओर ही है, यहां की ताजी – ताजी हवा और यहां का बिल्कुल साफ और स्वच्छ पारदर्शी पानी को देखकर आप मंत्रमुग्ध हुए बिना रह नहीं सकते। Blue Pond का पानी इतना नीला क्यों है? यही जिज्ञासा हर किसी को यहां पर खींच कर ले आती है।

Blue Pond रांची की सबसे खूबसूरत जगह जहां एकबार सभी जाना चाहेंगे
Blue Pond रांची की सबसे खूबसूरत जगह जहां एकबार सभी जाना चाहेंगे

Blue Pond Ranchi, Jharkhand एक ऐसा स्थान है, जिसे प्रकृति ने नहीं बल्कि खुद मनुष्यों ने बनाया है। जी हां, इसे आम लोगों ने पिछले 8-10 सालों में इस पठार के पत्थरों लिए यहां Blast तथा खुदाई कर जो बड़ा सा गड्ढा बन गया है। उसमें पानी भरते – भरते बड़ा तालाब का रूप ले लिया है और धीरे – धीरे पानी का जमाव से यहां पर काफी पानी जमा हो गया है।  

वैसे Blue Pond एक पत्थरों का खादान (झारखंड का खनन क्षेत्र – Mining Area of Jharkhand) है, यहां के पत्थर से गिट्टी – चिप्स आदि चीजें बनती है। यहां पर पत्थरों की कटाई ऐसा किया हुआ कि बीच में बांध और इसके चारों ओर दीवार की भांति बन गया है, जो इस जगह को एक अद्भुत सुन्दरता प्रदान करती है।

Blue Pond की गहराई लगभग 150-200 फीट है और इसकी आकार काफ़ी बड़ा है, जो एक विशाल तालाब की भांति है। इस पत्थर के खादान में पानी काफ़ी भरा हुआ है, जो देखने में काफ़ी डरवाना है।

यहां पत्थरों की कटाई के कारण चारो ओर दीवार सी बन गई है जो जिसे देखने में काफी मनमोहक लगता है । इस नीले जल ने Blue Pond को जन्म दिया है। यहां के जल को देखने से ही स्वच्छ और निर्मल लगता है, जो मन को शीतल कर देता है।

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Blue Pond नाम क्यों पड़ा?

Blue Pond का नाम Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi इसीलिए पड़ा क्योंकि इसका पानी बिलकुल Blue यानि नीला है। इस तालाब की गहराई ज्यादा और इसमें काफी पानी है जो कि बिलकुल साफ़ है।

ब्लू पॉण्ड का पानी बिलकुल स्वच्छ और निर्मल होने के कारण इसमें नीले आकाश की किरणें पानी में Reflect होकर पत्थर से टकराती है और फिर पत्थर से लगकर पानी में पहुंचती है। यही कारण है कि इस बांध का पानी बिलकुल नीला – नीला दिखाई देता है, जिसके चलते ही इसे Blue Pond कहा जाता है।

ब्लू पॉण्ड का पानी नीला ही क्यों दिखाई पड़ता है?

Blue Pond का पानी इतना नीला क्यों है?, कैसे है? आदि सवालों का उत्तर जानने के लिए लोग यहां पर दूर – दराज से खींचे चले आते हैं। इस जगह पर आने के बाद आपको लगेगा कि वाकई में ये काफी खूबसूरत भी है। Blue Pond के आस – पास काफी हरियाली भी है, जो आंख और मन को शांति प्रदान करती है।

अक्सर आपके मन में एक सवाल आता होगा आखिर Blue Pond का पानी नीला रंग का ही क्यों है?, काला या हरा रंग का क्यों नहीं है? अगर आपके मन में ऐसे प्रश्न ख्याल आ रहे हैं तो आपको बताते चलें कि इस Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi का गहराई बहुत ज्यादा है और बहुत ही साफ है।

पानी साफ होने के कारण आकाश का Reflection होता है, जिससे इसका पानी Blue दिखाई पड़ता है। कभी – कभी आकाश का रंग काला होता है तो पानी का रंग भी काला होता है। वैसे ही बरसात का दिन में इसके आस-पास का क्षेत्र हरियाली से भरा होता है, जिसके Reflection के चलते यहां का पानी हरा भी दिखाई देता है।

ब्लू पॉण्ड कहां पर स्थित है?

Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi, झारखण्ड के रांची शहर से 20 KM दूर तुपुदाना थाना क्षेत्र Ring Road के ठीक सामने बालसिरिंग गांव के बाहर एक विशाल पत्थर के खादान पर स्थित है। इसके आस – पास कई क्रसर मशीन लगा हुआ, जिससे गिट्टी और चिप्स बनता है।

क्या Blue Pond को Picnic Spot के रूप में विकसित किया जा सकता है?

जी, हां Blue Pond को Picnic Spot के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसके आस – पास खाने – पीने का व्यवस्था करके किया जा सकता है। इस गांव के लोग को बताना होगा कि अगर आप लोग यहां पर नाश्ता का दुकान आदि लगाते हैं तो आप लोगों का रोजमर्रा की खर्चा आसानी से निकल जाएगा जिससे आप लोगों को इधर – उधर काम पर नहीं जाना पड़ेगा।

रांची आस – पास के बहुत सारे लोग यहां घूमने तथा नहाने आते हैं। यहां पर स्थानीय लोग तैराकी (Swimming) और छलांग (Jumping) का आनंद लेते हैं। अगर इस जगह में तैराकी प्रशिक्षण दिया जाएगा तो आने वाले दिन में आस – पास के सुदूर गांवों से Commonwealth Games जैसे खेलों में यहां के बच्चे भी पहुंचेंगे।

अगर आप ब्लू पॉण्ड घूमने का Plan कर रहे हैं तो यहां आने का सबसे अच्छा समय सुबह 7 बजे से शाम 5 तक है, अंधेरा होने से पहले यहां से चलें जाएं। यहां पर आप कभी भी अकेले न आएं, हमेशा से अपने ग्रुप के साथ ही आएं। अगर आपको अच्छी तैराकी नहीं आती है तो आप भूलकर भी पानी में न उतरें, क्योंकि ये बहुत गहरा है। 

Blue Pond को किसने खोजा है?

इस जगह को पिछले कोरोनाकाल में खोजा गया और उसी समय से ये काफी प्रचलित हुआ। कोरनाकाल में खाली पड़े गांव के लोग इधर – उधर घूमते हुए Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi की खोज किए।ब्लू पॉण्ड को Social Media में खूब जगह मिला, जिससे ये बहुत जल्द काफी वायरल हो गया।

ये जगह गांव के बाहर होने के कारण लोग बिंदास अपने दोस्तों के साथ पार्टी और मस्ती कर सकते हैं। अभी तो यहाँ पर लोग अपने परिवार – रिश्तेदारों के साथ भी पिकनिक मनाने आ रहे हैं। 

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Blue Pond को Bike Riders & Cycling वाले काफ़ी पसन्द करते हैं, क्योंकि ये रांची शहर दूर एक शांत गांव में है। इस जगह को Adventures के लिए भी बेहद पसंद किया जा रहा है।

अगर आप पिकनिक मनाने के लिए ब्लू पॉण्ड आते हैं तो यहां किसी तरह का गंदगी न फैलाएं, बेहतर है जो भी कचड़ा होगा अपने साथ अपने साथ लेते जाएं या यहीं एक जगह इकट्ठा कर जला दें।

अगर हर कोई कचड़ा फैलाना शुरू कर देते हैं तो कुछ दिनों में यहां से सभी सुंदरता और शीतलता गायब हो जाएगी। फिर शायद ही कोई लोग ऐसी जगहों पर जाना चाहेगा, इसीलिए हमें ऐसी प्राकृतिक सुंदरता को बचाना होगा।

Blue Pond कैसे पहुंचे?

Blue Pond Ranchi, Jharkhand – The Hinden Beauty of Ranchi जाने के लिए आपको रांची के बिरसा चौक से खुंटी रोड में जाना होगा और चलते -चलते आपको Ring Road तक जाना है। अब Right Side मूढ़कर Ring Road में 5-7 KM जाना है और जैसे ही बालसिरिंग पहुंचते हैं, फिर उस जगह Left ले लेना है। करीब 1 KM रोड के अंदर घूसने के बाद आप पहुंच जाएंगे Blue Pond जो एक उबरता हुआ पर्यटक स्थल है।

Blue Pond Ranchi, Jharkhand

साधननजदीक स्थानदुरी/समय
By AirBirsa Munda International Airport, Ranchi13 Km/(28 min)
By Train Ranchi Railway Station
Hatia Railway Station
19 Km/(38 min)
11 Km/(23 min)
By BusBirsa Munda Bus Terminal, Khadgarha, Ranchi 21 Km/(40 min)
By BusGovt Bus Stand, Ranchi18 Km/(33 min)

Local Transport :- Blue Pond जाने के लिए आप अपने निजी वाहन, Ola, Uber, Auto Ricksha से बिलकुल आसानी से पहुंच सकते हैं। वहां जाने के लिए आपको ये सब गाड़ी को Booking कर सकते क्योंकि उधर भाड़ा वाला कोई गाड़ी नहीं चलता है।

Blue Pond में जाने से क्या – क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

अगर आप Blue Pond जाते हैं तो ध्यान में रखें कि वहां कभी अकेले न जाएं हमेशा से ग्रुप में जाएं क्योंकि ये गांव के बाहर सुनसान जगह में एक टुंगरी में स्थित है। अगर आप Blue Pond में नहाने का Plan बनाते हैं तो हमारा आग्रह है कि आप गहरे पानी में न जाएं क्योंकि यहां पर वैसा कोई सुविधा नहीं है, जिसमें आपको तुरंत बचाया जा सके।

यहां के ग्रामीणों से पूछताछ करके ही पानी में उतरें और साथ ही इनका कहना माने। ग्रामिणों से किसी तरह से कोई झगड़ा न करें, आप जितना इन्हें Coperate करेंगे आपको ये एक Tourist Guide की तरह हर चीज बताने का काम करेंगे।

Conclusion

आज के इस आर्टिकल में हमने जाना कि :- क्या है Blue Pond का रहस्य?, Blue Pond नाम क्यों पड़ा?, Blue Pond कहां पर स्थित है?, Blue Pond में जाने से क्या – क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? तथा इसके अलावे अनेकों जानकारियां जो आपको जाननी चाहिए। 

तो ये जानकारी आपको कैसी लगी आप हमें Comments में बता सकते हैं तथा पसंद आई तो अपने दोस्तों को भी Share कर सकते हैं। साथ ही साथ हमारी हर Post की जानकारी सबसे पहले पाने के लिए Subscribe Box में अपना Email Id डाल कर Subscribe कर सकते हैं। 

हम आपके राय की प्रतीक्षा करेंगे।

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FAQs

 Blue Pond जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक आप वहां रह सकते हैं, इससे शाम या सुबह में न जाएं।

Blue Pond की गहराई कितनी है?

करीब 150-200 फीट 

Blue Pond की खोज कब हुई?

पिछले कोरोनाकाल में Blue Pond की खोज हुई।

Blue Pond किस जगह है?

तुपुदाना थाना क्षेत्र के अंतर्गत बालसिरिंग गांव में स्थित है।

क्या Blue Pond घूमने रात में जा सकते हैं?

हरगिज नहीं

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2.Blogging से पैसे कैसे कमायें? | Online Paise Kaise Kamaye

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3.Affiliate Marketing से पैसे कैसे कमायें? | Online Paise Kaise Kamaye

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Source By:- Naukri.com

4.Ebook से पैसे कैसे कमायें? | Online Paise Kaise Kamaye

अगर आपमें है अपने शब्दों से लोगों को आकर्षित करने की क्षमता तो आप Online बहुत ही आसानी से Earning कर सकते हैं। आज के समय में लोगों के पास किताबें पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है ऐसे में लोग Digital Books यानि E book पढ़ना बहुत ही अधिक पसंद कर रहे हैं।

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5.Freelancing से पैसे कैसे कमायें? | Online Paise Kaise Kamaye

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Freelancing आप अपने Laptop से अभूत आसानी से कर सकते हैं और ऑनलाइन Payment आसानी से पा सकते हैं। इस काम में मजे की बात ये है की आप अपने हिसाब से काम कर सकते हैं और पैसे भी अपने अनुसार कमा सकते हैं।

Top 10 Freelancing Websites in India:-

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1Fiverr
2Toptal
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4Freelancer.com
5Upwork
6Flexjobs
7SimplyHired
8Guru
9LinkedIn
10Behance
Source By:- Hostinger

Conclusion:-

आज के इस आर्टिकल में हमने जाना कि – Online Paise Kaise Kamaye 5 Asan Tarike, YouTube से पैसे कैसे कमायें?, Blogging से पैसे कैसे कमायें? आदि बहुत सारी जानकारियां आपके साथ साझा किए जो आपको जानने लायक हो। जानकारी कैसी लगी आप हमे Comments में बता सकते हैं।

अगर आप हमें कुछ सुझाव या प्रतिक्रिया देना चाहते हैं तो आप Comments में या Instagram में बता सकते हैं , हमें आपके सुझावों और प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।

FAQs :-

ऑनलाइन हर महीने कितने पैसे कमाए जा सकते हैं?

आप एक महीना में 50-60 हजार तक कमा सकते हैं।

Online Paise Kaise Kamaye आसान तरीके?

YouTube, Blogging, Instagram, Facebook से Online पैसे कमाये जा सकते हैं।

क्या YouTube से Online Earning किया जा सकता है?

हाँ, YouTube पर Video बनाकर और Sponsership से लाखों रूपये कमा सकते हैं।

Blogging कैसे पैसे कमा सकते हैं?

Blog लिखकर Adsense से हजारों रूपये कमा सकते हैं।

क्या Ebook से पैसे कमा सकते हैं?

Ebook को Online Selling कर हजारों रूपये महीने का कमा सकते हैं।

सहजन की खेती से पैसे कैसे कमायें?

सहजन की खेती से पैसे कैसे कमायें:- हम सभी इस बात से भली – भांति परिचित हैं कि पिछले 2 सालों से कोरोना की महामारी से पूरे विश्व भर के लोग अस्त-व्यस्त पूरी तरह से त्रस्त थे। कितने लोगों की नौकरी चली गयी और कितने छोटी-बड़ी कंपनियां बंद हो गई। ऐसे समय में लगभग सभी लोग अपने खाने-कमाने के नये-नये तरीके ढूंढने लगे। बहुत सारे लोगों ने तो अपना खुद का छोटा – मोटा Business शुरू किया। जैसे – खेती, ठेला, दुकान, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन, बतख पालन आदि।

अगर आप भी कोरोना महामारी के चलते नौकरी से हाथ धो चुके हो और अभी तक कोई भी नया काम शुरू नहीं किए हैं, तो आपके लिए एक बहुत अच्छा समय हैं एक छोटा सा खुद का Business शुरू करने का। जी हां, आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे आप अपने गांव – घर में सहजन की खेती कर सकते हैं और हजारों रूपये कमा सकते हैं। वह भी बस थोड़े पैसे लगा कर।

सहजन क्या है? | What is Drumstick?

सहजन पौष्टिकता से भरपूर एक बहुउद्देशीय वृक्ष है। सहजन वृक्ष के फल, फूल, बीज, तना, जड़ तथा पत्ते किसी न किसी तरह से लोगों तथा जानवरों द्वारा उपयोग में लाया जाता है। यह पेड़ बहुत ही लाभकारी तथा गुणकारी होता है। आर्युवेद में इसका प्रयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। 

सहजन की खेती से पैसे कैसे कमायें?
सहजन की खेती से पैसे कैसे कमायें?

सहजन, भारतीय आदिवासी मूल का “मोरिन्गासाए परिवार” का ही एक सदस्य है। इसका वनस्पतिक नाम “मोरिंगा ओलीफेरा (Moringa Oleifera)” है। इसे अंग्रेजी में ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick Tree) कहते हैं। सहजन भारत तथा अन्य कई देशों में पाया जाता है और इसे सभी जगह अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे सहजन, मुनगा, ड्रमस्टिक, सजना, सुजना, सहजना, सेंजन आदि नामों से जाना जाता है। 

सहजन पेड़ में अनेक औषधीय गुण होते हैं साथ में पोषक तत्व भी बहुत सारे होते हैं। इसमें मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रट, वसा, प्रोटीन, पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व, मैगनीशियम, मैगनीज, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, एमिनो एसिड, विटामिन बी, बीटा कैरोटिन आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं। अगर इसे कोई भी आदमी खाता है तो उसे ये सारे पोषक तत्व मिलते हैं। 

सामान्य तौर पर सहजन एक बहुवर्षिक, कमजोर तना और छोटी-छोटी पत्तियों वाला लगभग दस-बीस मीटर लम्बाई वाला वृक्ष है। यह कमजोर तथा पथरीले जमीन पर भी बिना सिंचाई के सालों भर हरा-भरा और तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है। 

सहजन एक Medicinal Plants है जो कि बहुत ही कम समय में किसान को लाखों रुपया का लाभ दिलाता है। इस की खेती का खासियत यह है कि इसे बार-बार नहीं लगना पड़ता है। इसकी छंटाई साल में 4 बार करना चाहिए हां लेकिन शुरू में 5-6 महीना लग जाते हैं। अगर सहजन को एक बार लगाया जाता है तो लगभग 4-5 साल तक ये आपको फायदा देता रहेगा।

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सहजन की खेती (Sahjan ki kheti) कैसे करें?

अगर आपको सहजन की खेती करना हो तो आपको सबसे पहले एक 10-20 डिसमिल या 1 एकड़ जमीन का चुनाव करना होगा। उस जमीन की मिट्टी को जांच करवाना होगा कि इस जमीन में सहजन की खेती किया जा सकता है कि नहीं, क्योंकि कोई भी खेती करने से पहले हमेशा जमीन की मिट्टी की जांच करा लेना चाहिए ताकि आप जो भी फ़सल उसमें उगाना चाहते बिना नुकसान का और आसानी से उगा सकते हैं। 

सहजन की खेती के लिये जलवायु एवं मृदा का चयन करें :-

सहजन की खेती शुष्क वह गर्म जलवायु में आसानी से होती है। इसकी बढ़ोत्तरी के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान को उपयुक्त माना जाता है, लेकिन यह पौधा 10 डिग्री सेल्सियस तापमान से लेकर 50 डिग्री सेल्सियस तापमान तक भी आसानी से फल – फूल सकता है। 

सहजन उत्पादन या सहजन की खेती के लिए विशेष प्रकार की मृदा/मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। यह लगभग हर तरह के मिट्टी में आसानी से उग जाता है। सहजन बालुई, चिकनी मिट्टी, अम्लीय मिट्टी, काली मिट्टी, रुगड़ी/पथरीली मिट्टी आदि में अच्छी तरह से बढ़ता है। इस पौधे में 21 मिली सेंटीमीटर तक लवणता तथा 5 से 8 तक P.H मान सहन करने की क्षमता होती है।

सहजन पौधे लगाने की विधि :-

सहजन के पौधों की रोपनी एक गड्ढा बनाकर किया जाता है। इसे अपने खेत या बाड़ी में लगाने के लिए सबसे पहले आपको उस खेत या बाड़ी को अच्छा से जोतना पड़ेगा और सारा खरपतवार हटाना पड़ेगा। फ़िर उसमें 2.5 × 2.5 मीटर की दूरी – दूरी में गड्ढा खोदना पड़ेगा। सभी गड्ढा का आकार 45 x 45 x 45 सेंमी. होना चाहिए। 

गड्ढा खोदने के बाद आपको उस गड्ढे के उपरी मिट्टी के साथ 10 किलोग्राम सड़ा हुआ गोबर का खाद मिलाकर उस गड्ढे को भरना होगा। अब इस पर आप सहजन के पौधे लगा सकते हैं। सहजन के पौधे को ज्यादा देखभाल नहीं करना पढ़ता है, इसे हल्का – हल्का पानी देना होता है।

सहजन की उन्नत किस्म को चयन करें :-

सहजन (Moringa Oleifera) की उन्नत किस्में खुली विद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों, ICAR अनुसंधान केंद्रों आदि द्वारा विकसित की गई जिनकी उत्पादन क्षमता, पक्का अवधि, गुणवाता आदि की बातें ध्यान में रखने के लिए उन्नत किस्मों का विकास किया जो सभी के लिए लाभदायक होती है।

सहजन के उन्नत किस्मों में निम्न किस्में है जो अधिक उत्पादन देती है :-

क्रम संख्याकिस्म का नाम
1P.K.M – 1
2P.K.M – 2
3O.D.C
4C.O – 1

सहजन की खेती करने का सही समय :-

सहजन को साल भर में किसी भी समय में लगाया जा सकता है। बशर्तें उस समय ज्यादा बारिश का और ज्यादा ठंड का मौसम न हो। सहजन के पौधे बीज द्वारा तथा उसके डाली को काट कर भी लगाया जाता है। कहा जाता है कि बीज द्वारा उगाए गए पौधे ज्यादा गुण वाले होते हैं, उसके जड़ें भी बहुत मज़बूत होते हैं। लेकिन जिस सहजन को डाली काटकर लगाया जाता है उसमें जल्दी ही फूल – फल आ जाते हैं।

सहजन की खेती (Sahjan ki kheti) के लिए खाद एवं उर्वरक का चयन :-

सहजन की जैविक खेती के लिए नीचे दिए गए खादों एवं उर्वरकों की आवश्यकता होती है।

  1. वर्मी कंपोस्ट/ केंचुए का खाद – यह बहुत ही अच्छा जैविक खाद है, जिसे डालने से मात्र 5 मिनट में पोषक तत्वों की पूर्ति होती है।
  2. ट्राईकोडर्मा पाउडर – इसे फफूंद नाशक खाद के नाम से जाना जाता है जो जमीन में मौजूद हानिकारक फफूंद को नष्ट कर देता है।
  3. नीम केक / नीम की खली – यह एक ऐसा खाद है जो कीटनाशक है, जिसे जमीन में डालने से जमीन में मौजूद कीड़े या उनके अंडे नष्ट होते हैं।
  4. जिप्सम – यह एक ऐसा खाद है जिसे मृदा अनुकूलक या सॉइल कंडीशनर से भी जाना जाता है, जो मिट्टी को भुरभुरा एवं हवादार बना देता है।

इन सभी खाद एवं उर्वरकों को अलग-अलग मात्रा में समय – समय में डालना जरूरी है। जिससे हमारे पौधे को उपयोगी पोषक तत्व और सहयोग मिलता है।  

सहजन के बीज लगाने का तरीका :-

सहजन की पत्तों की खेती के लिए 1 एकड़ में लगभग 6.5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। पत्तों की खेती में बीज को डेढ़ फीट की दूरी पर लगाया जाता है, जिससे जब वो पौधे बड़ा होगा तब वो अपना डाली चारों ओर फैला सके। इस प्रकार से 1 एकड़ में लगभग 1,200-1,500 पौधे लगाए जा सकते हैं। बीज को लगाने से पहले उनको उपचारित किया जाना जरूरी है।

सहजन के बीज का उपचार :-

सहजन के बीज ऊपर से कठोर होता है इसलिए इसे लगाने से पहले बीज को उपचारित किया जाता है। इसको उपचारित करने से 2 फायदे होते हैं – पहला फायदा इसका जर्मीनेशन परसेंटेज बढ़ जाता है और दूसरा फायदा बीज को हानिकारक जंतुओं से मुक्त किया जाता है। 

सहजन के बीज का उपचार विधि :-

  • सहजन के बीजों को जैविक तरीके से उपचारित करने के लिए सबसे पहले एक 10 लीटर आकार वाला बर्तन ले लें।
  • उसमें 5 लीटर पानी डालें, उसी पानी में 2 लीटर देसी गाय का गोमूत्र और 100 ग्राम ट्राइकोडरमा पाउडर मिलाएं।
  • इन सभी सामग्री को अच्छी तरह से मिलाएं तत्पश्चात उसमें बीज को डालें और उस पानी में बीजों को लगभग 5 से 6 घंटे रहने दें।
  • बीजों को 6 घंटे बाद उस मिश्रण में से निकाल लें और उसे सूती के कपड़े में डालें।
  • कपड़े की गांठ बांधे और उस पोटली को रात भर या 12 घंटे तक एक जगह पर लटका दें।
  • बीच-बीच में इस पोटली पर पानी का छिड़काव करते रहें।
  • सुबह पोटली को खोल कर उसमें से सहजन के बीज को निका दें।
  • यह बीज अब बोने के लिए तैयार हो गए।

सहजन की खेती करने (Sahjan ki kheti) के लाभ :-

आजकल सहजन की खेती (Sahjan Farming/Drumstick Farming) पर लोगों का ध्यान बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। उसका पहला कारण है कि इसमें कई सारे लाभकारी गुण मौजूद हैं और दूसरा इसकी खेती आसानी से कहीं भी की जा सकती है। इस खेती को शुरू कर आप आसानी से लगभग 5-6 लाख सालाना यानी 50 हजार रुपए महीना तक कमा सकते हैं।

सहजन एक औषधीय पौधा भी है जिसके कारण इसका डिमांड दुनिया भर के अंतराष्ट्रीय बाजारों में भी काफ़ी बढ़ा है। विश्व भर के लोग आयुर्वेदिक उपचार तथा आयुर्वेदिक दवाओं का फायदा कोरोना काल से ज्यादा जानने लगे हैं। 

सहजन की खेती करने का लाभ निम्नलिखित हैं :-

  1. सहजन की खेती काफी आसान पड़ती है, इसकी खेती में पानी की बहुत जरूरत नहीं होती और रख – रखाव भी कम करना पड़ता है।
  2. आप इसे बड़े पैमाने नहीं करना चाहते तो अपनी सामान्‍य फसल के साथ भी इसकी खेती कर सकते हैं।
  3. यह गर्म इलाकों में आसानी से फल – फूल जाता है, लेकिन सर्द इलाकों में इसकी खेती बहुत Profitable नहीं हो पाती क्‍योंकि इसका फूल खि‍लने के लि‍ए 25 से 30 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
  4. यह सूखी बलुई या चिकनी बलुई मिट्टी में तेज़ी से बढ़ता है।  
  5. आमतौर पर एक पेड़ 5 साल तक अच्‍छा उत्‍पादन करता है। 
  6. सहजन के फूल-फल-पत्ती-बीज आदि सभी का कुछ न कुछ उपयोग होता ही है। जैसे – फूल, फल और पत्ते को सब्जी बनाकर खा सकते हैं तथा उसके बीज से तेल निकाला जाता है।
  7. दावा किया जाता है कि सहजन के इस्तेमाल से करीब 300 से अधिक रोगों से बचा जा सकता है।
  8. सहजन में 92 विटामिन, 46 एंटी ऑक्सीडेंट, 36 पेन किलर और 18 तरह के एमिनो एसिड आदि पाए जाते हैं।

सहजन की खेती से पैसे कैसे कमायें?

अगर आपके पास 1 एकड़ जमीन है तो आप उसमें करीब 1,200-1,500 पौधे लगा कर सहजन की खेती सकते हैं। 1 एकड़ भूमि में सहजन का पौधा लगाने का खर्च करीब 50 से 60 हजार रुपये आएगा। सहजन की सिर्फ पत्तियां बेचकर आप सालाना 50 – 60 हजार रुपये तक कमा सकते हैं। वहीं, सहजन के फूल, फल, पत्ती आदि चीजों को बेचते हैं तो आप सालना 5-6 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई कर सकते हैं।

एक रिर्पोट के आधार पर “अमेरिका में सहजन के पत्ती और फल लगभग 50-60 हज़ार रुपए किलो में बिकता है।” अगर आप भारत से इसका निर्यात विदेशों में कर सकते हैं तो समझ लीजिए आप कितना कमा सकते हैं।

सहजन से स्वास्थ्य में क्या-क्या फायदा होता है?

सहजन में बहुत सारे विटामिन, एमिनो एसिड, भरपूर मात्रा में प्रोटीन, बहुत सारे मात्रा में अलग-अलग एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं। यह दर्द निवारक (पेन किलर) की तरह भी काम करता है तथा इसके अलावा बहुत सारा गुण भरा हुआ है। जिसके कारण आज देश – विदेश के लोग इसे बहुत ही तेजी से अपना रहे हैं। 

सहजन से स्वास्थ्य लाभ कुछ इस प्रकार है :-

  • सहजन के पत्तियां में मेंथॉल अर्क (Menthal Arc) पाया जाता है, जो डायबिटीज (Diabeties) को कंट्रोल करने में बहुत ही महत्वपूर्ण है। 
  • सहजन में Anti-Diabetic गुण भी पाया जाता है।
  • सहजन के बीजों से तेल निकाला जाता है, जो जड़ों के दर्द के लिए बहुत ही लाभकारी है।
  • सहजन में ग्लुटामिक एसिड (Gulatamic Acid) पाया जाता है, जो अमोनिया के दुष्प्रभाव को रोकने का काम करता है। साथ में उसमें बहुत सारे एक्टिव न्यूरोट्रांसमीटर (Active Neurotransmitter) तत्व भी होते हैं, जो हमारी मेमोरी और एकाग्रता को बढ़ाता है।
  • सहजन खाने से मानव की शुक्राणु में वृद्धि होती है। इसी तरह वह प्रजनन शक्ति बढ़ाने के लिए भी बहुत ही उपयोगी है।
  • सहजन खाने से हमारे शरीर के चमड़ी में भी खिलावट आ जाता है यानि ये हमारे रक्त को भी शुद्ध कर देता है। साथ ही इसके रेजुवेनेट (Rejuvenate) करने का भी गुण है।
  • अगर आपके शरीर में फोड़े – फुंसी होते हैं तो सहजन सेवन कर सकते हैं। इसे खाने से जल्दी ही वो ठीक हो जाएंगे।   
  • सहजन हमारे शरीर की ऊतकों (Tissue) के विकास में भी मदद करता है।
  • सहजन के फूल, फल और पत्तियों को खाने से हमारे शरीर के हानिकारक कृमि मर जाते हैं।  
  • सहजन में बहुत सारे प्रोटीन, विटामिन, मिनरल, एंटी ऑक्सीडेंट होने की वजह से ये हेल्थी प्रेगनेंसी में भी काफ़ी लाभदायक है।

सहजन का पोषण मूल्य (Nutrition Value) प्रति 100 ग्राम में :-

सहजन में बहुत सारी मात्रा में गुण पाया जाता है।

Nutrition ValueVitaminsMinerals
Energy 64 kcal
Carbohydrates 8.28 g
Dietary fiber 2.0 g
Fat 1.40 g
Protein 9.40 g
Vitamin A 378 μg
Thiamine (B1) 0.257 mg
Riboflavin (B2) 0.660 mg
Niacin (B3) 2.220 mg
Pantothenic acid (B5) 0.125 mg
Vitamin B6 1.2 mg
Folate (B9) 40 μg
Vitamin C 51.7 mg
Calcium 185 mg
Iron 4.00 mg
Magnesium 147 mg
Manganese 0.36 mg
Phosphorus 112 mg
Potassium 337 mg
Sodium 9 mg
Zinc 0.6 mg

* Source As Per The USDA

सहजन कहां-कहां मिलता है? 

सहजन भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी पाया जाता है। यह भारत, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको, मलेशिया, कंबोडिया, फिलिंपिंस, जमैका आदि देशों में पाया जाता है। इसे भारत के लगभग सारे इलाके में पाया जाता है। भारतीय लोग सहजन के फूल, फल और पत्तियों को अलग – अलग तरीकों से सब्जी बनाकर खाया जाता है। 

सहजन बारिश और धूप से भी नहीं होता नुकसान :-

सहजन की खेती को ज्यादा बारिश और ज्यादा धूप भी नुकसान नहीं पहुंचा पाता है, इसीलिए इसे ज्यादा लोग पसंद करते हैं। यह विभिन्न पारिस्थितिक अवस्थाओं में भी उगने वाला पौधा है यानि इसे आप एक तरह की ढीठ पौधा भी कह सकते हैं। सहजन की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। चाहे वो बेकार बंजर भूमि हो या कम उर्वरा वाला भूमि हो या फिर पथरिली भूमि सभी तरह के भूमि में इसे खेती कर सकते हैं।   

सहजन को दवा के रूप में भी उपयोग किया जाता है:-

सहजन की फूल, फल, बीज, तना, जड़ और पत्तियों सभी को दवा के रूप में उपयोग किया जाता है। सहजन से आयुर्वेदिक तथा एलोपैथिक दवाई भी बनाई जाती है। इसके बीज से तेल भी निकला जाता है और साथ ही इसके पत्ती तथा बीज को सुखाकर उसको चूर्ण भी बनाया जाता है। 

इसके तेल लगाने से जड़ों का दर्द दूर होता है तथा इसके पत्तियों को उबालकर इसके पानी को पीने से डाईबेटिज तथा बल्ड प्रेशर जैसे बीमारी भी दूर होती है। सहजन के साग को आप भूंज के भी खा सकते हैं, इसमें भी काफी सारे फायदे होते हैं। 

सहजन के पौधे को कीड़ों से कैसे बचाएं:-

सहजन के पौधे और उसके पत्तियों में बहुत सारे कीड़े लग जाते हैं अगर आप इसे सही तरीके से नहीं दवा लगाते हैं तो आपको काफी नुकसान होगा। भुआ पिल्लू, पातछेरकी तथा टिड्डा जैसे कीड़े मूनगा/सहजन पर बहुत जल्दी लग जाते हैं। ये अगर एक बार आपके खेती के अटैक करते हैं तो वो सारे पत्ते को खा जाते हैं।  

अगर इसे सही समय में नियंत्रित नहीं किया जाय तो यह सम्पूर्ण पौधे की पत्तियों को खा जाते हैं तथा आस-पास के पौधे में भी फ़ैल जाते हैं। ये कीड़े इतना खतरनाक होते हैं कि ये अपना अंडा उसी पेड़ – पौधे में देते हैं और वो कीड़ा जब अंडा से निकलने लगते हैं तो अपने भोजन के लिए पूरे पेड़ में फैल जाते हैं, जिससे सही में रोकना बहुत जरूरी होता है।

कीड़ों को नियंत्रण करने के लिए सरल और देशज उपाय है। अगर कीट – पतंग को नवजात अवस्था में ही मारना हो तो आपको सर्फ को घोलकर बनाकर पौधों के ऊपर आप छिड़क देते हैं तो वो सारे कीड़े मर जाते हैं। अगर आपके पेड़ – पौधे में जो कीड़े लग गए वो वयस्क अवस्था में होते हैं और जब वो लगभग सम्पूर्ण पौधों पर फ़ैल जाते हैं तो उसके लिए एकमात्र दवा है – “डाइक्लोरोवास (नूभान)” 0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करने से तत्काल ये सारे कीड़े – पतंग मर जाते हैं, जिससे आप ज्यादा नुकसान होने से बच जाते हैं। 

Conclusion:-

आज के इस आर्टिकल में हमने जाना कि – सहजन की खेती (Sahjan ki kheti) से पैसे कैसे कमायें?, सहजन क्या है?, सहजन की खेती कैसे करें?, सहजन से क्या – क्या लाभ है, सहजन की खेती से कितना पैसा कमा सकते हैं?, तथा सहजन की खेती को कीड़ों से कैसे बचाएं? आदि बहुत सारी जानकारियां आपके साथ साझा किए जो आपको जानने लायक हो। जानकारी कैसी लगी आप हमे Comments में बता सकते हैं।

अगर आप हमें कुछ सुझाव या प्रतिक्रिया देना चाहते हैं तो आप Comments में या Instagram में बता सकते हैं , हमें आपके सुझावों और प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।

FAQs :-

सहजन की खेती से कितने पैसे कमाए जा सकते हैं?

सहजन की खेती से आप 5-6 लाख कमा सकते हैं यानि आप एक महीना में 50-60 तक कमा सकते हैं।

सहजन की खेती कहां किया जा सकता है?

सहजन एक ऐसा पेड़ है इसे कहीं भी लगाया जा सकता है लेकिन इसे अच्छी तरीके से खेती करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको बालुई, चिकनी मिट्टी, अम्लीय मिट्टी, काली मिट्टी, रुगड़ी/पथरीली मिट्टी की ज़रूरत होगी। 

सहजन में कीड़े लगने से कैसे बचाएं?

सहजन को कीड़े लगने से बचाने के लिए आपको समय – समय में गौमूत्र का छिड़काव करना होगा। अगर आपके पेड़ – पौधे में ज्यादा कीड़े लग हैं तो उसके लिए आपको “डाइक्लोरोवास (नूभान)” 0.5 मिली. एक लीटर पानी में घोलकर उस पर छिड़काव करना होगा इससे वो कीड़े तुरंत मर जाते हैं।

क्या सहजन को दवा के रूप में उपयोग किया जाता है?

जी हां, इसे आयुर्वेदिक तथा एलोपैथिक दवाई भी बनाई जाती है। इसके तेल को लगाने से जड़ों का दर्द दूर होता है और इसे इसके पत्तियां को उबालकर पीने से डाईबेटिज तथा बल्ड प्रेशर जैसे बीमारी भी दूर होती है।

सहजन की पत्तियों को कितने दामों तक बेच सकते हैं?

अगर आप इसे लोकल के बाजारों में बेचते हैं तो ₹40-50 /- किलो में बेच पाएंगे। यही अगर आप इसे विदेशों में सप्लाई करने सकते हैं, जैसे आप अगर इसे अमेरिका में बेचते हैं तो आपको एक किलो का 50-60 हजार रुपए मिलेगा।

सहजन की खेती शुरु करने के लिए कितना रूपया लगना होगा?

शुरूआती समय में आपको लगभग 40-50 हज़ार रुपए तक लगेगा। इतना पैसा से आप 1 एकड़ से में सहजन की खेती कर सकते हैं।

सहजन का पौधा कितने दिनों में उगना शुरू हो जाता है?

सहजन का पौधा बीज बोने के 10-12 दिन के बाद निकालना शुरु हो जाता है।

सहजन को कब-कब सिंचाई करना चाहिए?

सहजन को कभी भी ज्यादा सिंचाई नहीं करनी चाहिए कारण इसके पौधा बहुत जल्दी सड़ जाते हैं। अगर इसके पौधे 10 फुट हो जायेंगे तो आपको सप्ताह में 1-2 बार पानी डालने सभी चलेगा।

क्या सहजन की खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ता है?

जी हां, इसकी खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची

Jagannath Mandir Ranchi:- रथ यात्रा भारत का एक बहुत बड़ा पर्व है, इसमें भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथ में बैठाकर एक विशाल शोभा यात्रा निकाला जाता है। उड़ीसा राज्य के पुरी में विश्व के सबसे बड़ा रथ यात्रा निकाला जाता है, कहा जाता है कि सबसे पहले पुरी की रथ यात्रा शुरू होती है, उस रथ का चलने के बाद ही पूरे विश्व में जितने जगह रथ यात्रा होती हैं।

उड़ीसा के पुरी की तरह ही झारखंड के रांची जिला के बड़कागढ़ (जगरनाथपुर), धुर्वा में भी दूसरा सबसे बड़ा रथ यात्रा निकाला जाता है। पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi से तीनों भाई-बहनों के लिए अलग-अलग रथ रहता है लेकिन रांची में एक ही रथ में बैठाकर नगर भ्रमण करवा कर मौसी घर ले जाया जाता है।

आज के इस Article में जानेंगे कि:-

  • जगरनाथपुर (बड़कागढ़) का नाम कैसे पड़ा?
  • जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कहां स्थित है?
  • जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का निर्माण कब और किसने करवाया था?
  • जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कैसे पहुंचे?
  • जगरनाथपुर (बड़कागढ़) की इतिहास क्या है?

जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi

Temple NameJagannath Mandir Ranchi
GodLord Jagannath
Place TypesLandmark & Historical Place
AddressJagannath Mandir Marg, Jagannathpur Chowk Khataal, Sector 1, Dhurwa, Ranchi, Jharkhand, India, 834004
Locality/City/VillageJagannathpur, Badkagarh, Dhurwa 
DistRanchi
StateJharkhand
CountryIndia
Official Websitehttps://ranchi.nic.in/
Coordinate23.3170241066, 85.2818425984
Phone+91 1124626966
Temple Timings5:00 AM to 12:10 PM & 3:00 PM to 7:30 PM

जगरनाथपुर (बड़कागढ़) का नाम कैसे पड़ा?

जगरनाथपुर का ही पुरना नाम है बड़कागढ़ जो राँची के धुर्वा थाना क्षेत्र में स्थित है। पहले इस क्षेत्र के राजा नागवंशी राजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव हुआ करते थे। जिनको 97 गांव (गढ़) मिले थे जो एक काफी बड़ा क्षेत्र होता है। इसी कारण से इस क्षेत्र को बड़कागढ़ कहा जाता है और जब से यहां पर जगन्नाथ मन्दिर बना तब से इस क्षेत्र को जगरनाथपुर कहा जाने लगा।

जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कहां स्थित है?

झारखण्ड के रांची से करीब 10 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा धुर्वा थाना में स्थित जगरनाथपुर (बड़कागढ़) है और यहीं पर भगवान जगन्नाथ मंदिर स्थित है यहीं पर रथ यात्रा का आयोजन होता है।

Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची
Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची

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जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Mandir Ranchi) का निर्माण कब और किसने करवाया था?

रांची के बड़कागढ़ में स्थित भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र ही नहीं बल्कि आदिवासी और सदान के सम्मिलित विश्वास का भी प्रतीक है। इस आस्था की चौखट पर न धर्म-संप्रदाय का कोई महत्व है और ना ही किसी जातियों का यह हमेशा सब के लिए हमेशा खुला हुआ है। आदिवासी भी उतने ही भक्ति के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं जितना सदान या अन्य धर्मावलंबी के लोग करते हैं।  

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (History of Jagannath Temple) क्या है?

जगन्नाथ मंदिर का नींव किसने और कब रखा?

जगन्नाथ मंदिर की नींव वैष्णववाद एवं इसके संस्थापक चैतन्य महाप्रभु ने रखी थी। कहा जाता है कि जब 16वीं शताब्दी के आस पास बहुत सारे लोगों ने हिंदू धर्म को छोड़कर अन्य धर्म में धर्मांतरण कर रहे थे। तब हिंदू धर्म के धर्म गुरुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा और पहचान को बचाए रखने के लिए भगवान जगन्नाथ मंदिर जैसे कई अन्य प्राचीन मंदिरों का निर्माण शुरू कर दिया था। 

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कब और किसने किया?

राँची के बड़कागढ़ स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर निर्माण 25 दिसंबर 1691 ईस्वी में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण बड़कागढ़ के महाराजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव के द्वारा किया था। जगन्नाथ मंदिर और गर्भगृह का सम्पूर्ण निर्माण संगमरमर के पत्थरों से किया गया है, जिसमें मंदिर के संस्थापक और स्थापना वर्ष के बारे में बताया गया है। 

जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का निर्माण बड़कागढ़ के एक छोटी पहाड़ी (टुंगरी) पर किया गया है, जिसकी ऊँचाई लगभग 85-90 मीटर है। मंदिर परिसर में कई तरह के पेड़-पौधे लगाए गए हैं, जो इसके वातावरण को सुंदर और भी शुद्ध बनाते हैं। मंदिर निर्माण काल से लेकर आज तक मंदिर की संरचना तथा मंदिर परिसर में कई तरह के बदलाव किए गए हैं। वर्त्तमान समय में यहां अपनी वाहन लेकर सीधे मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंच सकते हैं।

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जगन्नाथ मंदिर किसके तर्ज पर बनाया गया है?

रांची के जगन्नाथ मंदिर को पुरी के जगन्नाथ मंदिर के स्थापत्य कला की तर्ज पर बनाया गया है। इस मंदिर में भोग गृह के पहले गरुड़ मंदिर स्थिर है, जहां बीच में गरुड़ जी महाराज विराजमान हैं। गरुड़ मंदिर के आगे चौकीदार मंदिरस्थित है इन सभी मन्दिरों का निमार्ण एक साथ ही हुआ है। इन मंदिरों के आगे जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति की देख-रेख में 1987 में एक विशाल छज्जे का निर्माण किया गया। अब इस जगह एक विशाल भवन बनाया गया है।

जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi की विधि-व्यवस्था क्या है?

ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने जगन्नाथ मंदिर की विधि – व्यवस्था के लिए अपने 194 मौजों में से जगन्नाथपुर,आनि एवं भुसुर नामक तीन गांव मंदिर के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर अपनी उदारता का परिचय दिया था । इन तीनों मौजों के लगान एवं उपज से मंदिर का सारा खर्च चलता था लेकिन अभी के समय में तो यहां पर बहुत सारे पर्यटक तथा श्रद्धालु आते हैं और अच्छा-खासा दान-दक्षिण देकर चले जाते हैं। यही सारे पैसों से मंदिर का सारा खर्च चलता है।

Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची
Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची

पहले तीनों मौजों से जो सारा सामान आता था उसका हिसाब-किताब तथा मंदिर की देख-रेख में वे लोग किसी तरह से हस्तक्षेप नहीं करते थे। अंग्रेजों के शासन काल में मंदिर की विकट स्थिति हुई। मंदिर का काम तथा पूजा-पाठ सुचारू रूप से चले इसीलिए अंग्रेजी सरकार ने अपने ही पुलिस बल के जवान पंडित गंगाराम तिवारी को जगन्नाथ मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया। 

एक समय गंगाराम तिवारी का भेंट मध्य प्रदेश से आए एक पंडित लेदूराम तिवारी से हुआ। उनलोगों में अच्छी दोस्ती हो गई तब गंगाराम तिवारी ने अपने दोस्त लेदूराम को भी अपने साथ देने को कहा यानि साथ में पूजा करने को क्योंकि उनका काम ज्यादा हो रहा था। बाद में गंगाराम तिवारी अपने बेटी की शादी के लिए अपने गांव पियरी चले गए और कभी वापस नहीं आए, तब से जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी लेदूराम तिवारी हो गए।

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जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति का गठन कैसे हुआ था?

1857 क्रान्ति में (जिसे आजादी की पहली लड़ाई भी कहते हैं) बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने छोटानागपुर में अपनी नेतृत्व किया था। आख़िर 16 अप्रैल 1858 को उन्हें पकड़कर फांसी दे दी गई। साथ में मुख्य पुजारी लेदूराम तिवारी को भी गिरफ्तार किया और राजा के सभी 97 गांव को भी सरकार ने जब्त कर लिया फिर बड़कागढ़ का नाम बदलकर “खास महल” कर दिया गया। बाद में अपील करने के बाद सरकार ने जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi के मुख्य पुरोहित को वापस कर दिया। 

जगन्नाथ मंदिर हमेशा से पारिवारिक तथा वंशानुवाद के कारण विवादों में घिरा हुआ है और यह विवाद आज भी थमा नहीं, लेकिन फिलहाल सरकार ने इसे कानूनी रूप से सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर दी है। 1964 में धार्मिक न्यास परिषद की ओर से जगन्नाथ मंदिर को सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर दी गई। उसके बाद पटना उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर भी लगा दी और आखिर 1977 में जगन्नाथपुर न्यास समिति का गठन किया गया।

पहली गठित जगन्नाथपुर न्यास समिति के पदाधिकारी का नाम :-

मंदिर का नाम जगन्नाथ मंदिर रांची, Jagannath Mandir Ranchi
अध्यक्षरामरतन राम
पदेन सचिवडीसी रांची
कोषाध्यक्षराधेश्याम नाथ शाहदेव
पदेन सचिवएच. ई. सी. , सी. एम. डी.
सदस्यबी. राम सम्पर्क पदाधिकारी, चीफ़ ऑफ पुलिस, जगदीश शुक्ला, अधिवक्ता बलराम ठाकुर, गोपी कृष्ण महेश्वरी, सरस्वती कच्छप, एवं बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद पटना पदेन सदस्य।

जगन्नाथपुर न्यास समिति के गठित हो जाने के बाद मंदिर अब सुचारू रूप से चल रहा है तथा उसके साथ उसका निर्माण कार्य भी हो रहा है। मंदिर समिति मंदिर की जमीन को पाने का प्रयास कर रही है। जो उस समय एच.ई.सी के लिए बिहार सरकार ने देवोत्तर भूमि (मंदिर का जमीन) का भी अधिग्रहण किया था। 

जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का स्थापना दिवस कब मनाया जाता है?

हर साल जगन्नाथपुर में 25 दिसंबर को मंदिर प्रांगण में जगन्नाथ मंदिर स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में 1 लाख विष्णु लाक्षार्चना का विशेष पाठ होता है, जिसमें सैकड़ों – हज़ारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस विशेष पाठ में पुरुष धोती तथा महिलाएं साड़ी पहनकर पूजा-अर्चना करतीं हैं। इस दिन सुबह 6 से लेकर दिन 12 बजे तक यह अनुष्ठान होता है फिर उसके बाद भंडारे का आयोजन होता है। यहां आए हुए सभी लोग भंडारे में बना हुआ भोग का खाते हैं।

जगन्नाथ मंदिर से जुड़े लोककथा एवं किंवदंतीयां क्या-क्या हैं?

भगवान जगन्नाथ मंदिर के निर्माण की लोककथा/किंवदंती सैकड़ों सालों से सुनते आ रहे हैं ये कथाएं काफ़ी प्रचलित तथा बेहद ही रोचक है, जिसे हमें अवश्य जानना चाहिए। बहुत समय पहले की बात है रांची के बड़कागढ़ क्षेत्र पर नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव का शासन हुआ करता था। ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव जब अपने बुढ़ापे में पहुंच गए तो उनकी संसार की मोह माया खत्म हो गई थी। अब बस उन्हें भक्ति में लीन रहने तथा चारों धाम की यात्रा करने का मन करने लगा।

Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची
Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची

एक दिन नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर की दर्शन करने का मन बनाया और अपने साथी, नेता – मंत्री, नौकर – चाकर, सैनिक तथा खाने – पीने का सामान को लेकर पुरी यात्रा के लिए निकल पड़े। उस समय की यात्रा आज की तरह सुगम नहीं था, उन्हें रास्ता में जल – जंगल, पहाड़ – पर्वत, नदी – नाला को पार करना पड़ा और वे लोग आखिर पुरी जगन्नाथ मंदिर पहुंच गए।

वहां पहुंचकर उन्होंने अपना टेंट ⛺ लगाया और समुन्द्र में नहा धोकर स्वामी जगन्नाथ का दर्शन तथा पूजा – अर्चना करने के लिए मंदिर गए। मंदिर में पूजा करने के बाद सभी अपने टेंट पर आ गए कोई लोग तो मंदिर प्रांगण में ही विश्राम करने लगे। राजा का मन अब यहां से जाने का नहीं होने लगा, इसीलिए वह पूजा – पाठ में समय व्यतीत करने लगा। सोते-जागते उसकी जुबान पर बस महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी का ही नाम सुनाई देने लगा। आस्था और भक्ति की गंगा में वह इस तरह से डूब गया कि जिसका व्याख्या करना मुश्किल है। उसे लगने लगा कि भगवान जगन्नाथ स्वामी से उसका सीधा मिलन हो गया। 

लेकिन उनके साथ गए हुए उरांव सेवक/नौकर का दिक्कत होने लगा कारण वो मंदिर में बना हुआ भोग भात खाने से मना कर दिया था। राजा ने उसे कहा कि यहां बिना भेदभाव किए भगवान जगन्नाथ स्वामी का प्रसाद सभी कोई ग्रहण कर रहा है इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो रहा है फिर तुम्हें क्यों हो रहा है। ये सब बातें सुनकर भी उरांव सेवक वहां खाना खाने के लिए मना कर दिया और वो उपवास/भूखा ही रहने लगा।

 वो लगातार एक सप्ताह तक तो ठीक तरह से खाली पेट रहा लेकिन सातवीं रात में वो भूख से खलबलाने लगा और बोलने लगा कि अगर वास्तव में भगवान जगन्नाथ स्वामी यहां पर हैं तो मेरे उदर (पेट) की भूख को क्यों नहीं मिटा रहें हैं। तभी थोड़ी देर बाद में वो देखा कि उसके सामने से एक बूढ़ा ब्राह्मण एक सोने का थाली में कुछ लेकर आ रहा है। वो सोने की थाली में भात – सब्जी लेकर आया था, वो सामने आकर बोला कि तुम बहुत भूखे हो लो थोड़ा खाना खा लो और सो जाओ। इतना कहकर वो बूढ़ा आदमी वहां से चला गया।

खाना खाकर उसका मन तृप्त हो गया तथा उसे अपार संतुष्टि मिली। आखिर उसे सात दिनों की भूख शांत हुई। खाना खाकर जब वो सो गया तब उसे सपने में भगवान श्री कृष्ण अपने बारे बताया बोला की वो बूढ़ा ब्राह्मण व्यक्ति मैं ही था। तुम बहुत बड़ा सौभाग्य वाले हो जो मुझे साक्षात दर्शन किया। अगले दिन महाराजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने उरांव सेवक के पास सोने का थाली देखी तो उसके बारे उसे पूछताछ करने लगे। उरांव सेवक ने अपनी सारी बातें राजा साहब को बताया। 

पूरी कहानी सुनने के बाद खुद राजा को अपमान सा लगने लगा। उनके मन में आया कि मैं इतने दिनों से रात – दिन भगवान जगन्नाथ स्वामी की भक्ति में लीन होने पर भी मुझे ऐसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ लेकिन इस साधारण सा सेवक को आसानी से भगवान जगन्नाथ का दर्शन हो गया। ठीक उसी रात महाराजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव को स्वप्न आया कि जिसमें भगवान कृष्ण ने उसे कहा कि तुम अब वापस अपना घर, अपना राज्य चले जाओ वहीं पर भगवान जगन्नाथ स्वामी यानी मेरा एक मंदिर का स्थापना करना। वहीं पर मैं तुम्हें साक्षात दर्शन दूंगा। इसे राजा ने भगवान का आदेश मानकर वे अपने सारे साथी, नेता – मंत्री, नौकर – चाकर, सैनिक के साथ वापस अपनी राजधानी सतरंजी लौट आए।

नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव अपनी राजधानी लौटने के बाद सुबह – शाम मंदिर निर्माण की ही बात सोचते थे। आखिर उन्होंने अपने पूरे परिवार, शुभचिंतकों, सरदारों, गुरुओं आदि से विचार – विमर्श किया और मंदिर निर्माण करने का सही स्थान का चयन किया। उन्होंने आदेश दिया कि पुरी की तरह ही भगवान जगन्नाथ स्वामी का भव्य मंदिर बनवाया जाए। इसके बाद मराठी राजगुरु हरिनाथ चारी के तत्वाधान में 1691 में जगन्नाथ मंदिर बनकर तैयार हो गया। तब बड़कागढ़ का इलाका जंगलों से घिरा हुआ था।

जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi में हर जाति के लोगों के लिए काम तय है।

कहा जाता है कि उसी समय नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने यह भी तय कर दिया कि भगवान जगन्नाथ स्वामी की सेवा सभी जाति के लोग कर सकते हैं। इस मंदिर में घंटी बजाने और तेल-भोग चढ़ाने की जिम्मेदारी आदिवासी उरांव परिवार की होगी। वहीं, आदिवासी मुंडा परिवार के लोग यहां झंडा फहराएंगे तथा पगड़ी देंगे। साथ ही मुंडा परिवार के लोग ही वार्षिक पूजा भी करेंगे। 

Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची
Jagannath Mandir Ranchi | जगन्नाथ मंदिर रांची

जबकि, रजवार और यादव(अहीर) जाति के लोग भगवान जगन्नाथ स्वामी को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाएंगे। फिर, बढ़ई परिवार के लोग मंदिर आदि का रंग-रोगन तथा लकड़ी का सारा काम करेंगे। वहीं, लोहरा समुदाय के लोग भगवान जगन्नाथ स्वामी के रथ की मम्मत करेंगे। इसी तरह, कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी का बर्तन, दीया आदि बनाकर उपलब्ध कराएंगे। आज भी इस परंपरा का यहां निर्वहन होता है।

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एक छोटी-सी पहाड़ी (टुंगरी) पर भगवान जगन्नाथ स्वामी का मंदिर स्थित है।

वर्ष 1691 में बना भगवान जगन्नाथ स्वामी का यह मंदिर रांची के बड़कागढ़ (जगन्नाथपुर), धुर्वा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण एक छोटी-सी एक पहाड़ी (टुंगरी) पर किया गया है। यह मंदिर दिखने में बिल्कुल जगन्नाथ मंदिर पुरी की तरह ही प्रतीत होता है यहां पर हर साल विशाल रथ यात्रा का आयोजन होता है जो कि पुरी के रथ यात्रा जैसा ही होता है। 

पहले बड़कागढ़ का इलाका एक रियासत का हिस्सा था। ये इलाका राजा के 97 गावों में से एक था जो कि काफी खास था। जगन्नाथ मंदिर के आस – पास काफ़ी घना जंगल था तथा इसके चारों ओर हरियाली ही हरियाली था, जो किसी को भी अपने ओर आकर्षित करती थी। इस टुंगरी की ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है। दर्शक या श्रद्धालु को इस मंदिर में चढ़ने के लिए कोई दिक्कत न हो इसीलिए मंदिर में सीढ़ी का निर्माण किया गया।

भगवान जगन्नाथ स्वामी की नेत्र दान की पूजा होती है।

रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर के तत्कालीन मुख्य पुजारी रामेश्वर पाढ़ही के अनुसार नेत्रदान की पूजा का मतलब भगवान जगन्नाथ स्वामी के नेत्र के श्रृंगार से जुड़ा हुआ है। उनके अनुसार भगवान का अज्ञातवास ज्येष्ठ पूर्णमासी के दिन ही शुरू होता है। पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को स्नान कराने के लिए विशेष जल से मिट्टी के घड़े एकत्रित किया जाता है। इस जल से भगवान को नहलाने के बाद भगवान का तबीयत खराब हो जाती है और जिसके बाद वो बीमार हो जाते हैं। बीमार होने के कारण भगवान अज्ञातवास में चले जाते हैं, यही कारण है कि उस समय वे किसी को दर्शन नहीं देते हैं।

जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ स्वामी 16 दिनों तक गर्भ गृह में अज्ञातवास में रहते हैं। फिर वह 16 दिनों के बाद शाम में भगवान जगन्नाथ स्वामी को अज्ञातवास से बाहर निकालते हैं। बाहर निकालने के बाद नेत्रदान की पूजा की जाती है। उसके बाद भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाता है। नेत्र दान के दिन से ही यहां पर श्रद्धालुओं का आने जाने का तांता लगा हुआ रहता है। 

नेत्र दान की पूजा के बाद भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा निकाली जाती है, जहां नवनिर्मित 36-40 फीट ऊंचे रथ पर भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ विराजमान होते हैं। तीनों भाई – बहन रथ में बैठकर मुख्य मंदिर से मौसीबाड़ी तक जाते हैं।

जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का धार्मिक महत्व क्या है?

रांची के जगन्नाथपुर में स्थित जगन्नाथ मंदिर की पूजा अन्य हिंदू मंदिरों से काफी भिन्न होता है। यहां के पुजारियों को पांडा के नामों से जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ के भक्त नदी, तालाब या घर से ही स्नान करके जाते हैं और उनका दर्शन तथा पूजा – पाठ करते हैं। पूजा की शुरुआत भगवान जगन्नाथ को फूल-फल और भोजन/भोग चढ़ाने से होती है। 

देवताओं को सुबह, दोपहर तथा रात का भोजन भी दिया जाता है, जिसे भोग के नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ मंदिर में तीन बार आरती होती है – सुबह, दोपहर और रात। पुरी के रथ यात्रा के समान ही इस मंदिर में भी आषाढ़ के महीने में एक वार्षिक मेले के साथ रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। 

ये मेला 10 दिनों तक लगता है, जिसमें न केवल रांची से बल्कि पूरे झारखंड तथा पड़ोसी गांवों और कस्बों से भी हजारों आदिवासी और गैर-आदिवासी श्रद्धालु यहां पर भगवान जगन्नाथ स्वामी का दर्शन करने आते हैं। यहां पर रथ यात्रा को बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi की भौगोलिक स्थिति क्या है?

भगवान जगन्नाथ का मंदिर एक पहाड़ी/टुंगरी की चोटी पर स्थित है, जिसकी उंचाई करीब 85-90 मीटर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु/दर्शक सीढ़ियां से जा सकते हैं या तो जिसे सीढ़ी चढ़ने के लिए दिक्कत होती है वो सड़क मार्ग से घूमकर किसी भी वाहन या पैदल ऊपर तक जा सकते हैं। 

मंदिर पहुँचने के लिए लगभग 100-200 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। अगर आप पैदल मंदिर तक जाते हैं तो बीच में रुक कर आराम भी कर सकते हैं। जैसे ही आप मंदिर तक पहुँच जाते हैं, जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए ताजे पानी की व्यवस्था किया गया है। उसमें आप अपना हाथ – पैर धो सकते हैं, पानी पी सकते हैं तथा जल चढ़ाने के लिए भी ले जा सकते हैं। मंदिर के चारों ओर पेड़ – पौधों से भरा हुआ जिसके ठंडी छाया में बैठकर अपनी थकान दूर कर सकते हैं। 

मंदिर तक चढ़ने के बाद आप चारों ओर का नज़ारा देख सकते हैं, जो देखने में काफी सुन्दर और मनमोहक होता है। यहां से आप पहाड़ी मंदिर, विधानसभा भवन, धुर्वा डैम, JSCA स्टेडियम आदि का नज़ारा देख सकते हैं। यहां से काफ़ी सुंदर दृश्य आने के कारण लोग यहां पर फ़ोटोशूट, वीडियो शूट, वैडिंग फ़ोटोशूट, वीडियो शूट, नागपुरी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा वाला वीडियो शूटिंग करते हैं।

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जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi की वास्तुकला कैसी है?

रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर, बड़कागढ़ में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण उड़िसा/उत्कल के कलिंग शैली की वास्तुकला के अनुसार किया गया है। मंदिर की बनावट उड़ीसा के पुरी में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर जैसा ही है। हालांकि, इस मंदिर का आकार में पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तुलना से छोटा है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। 

सभी देवताओं को नीम की लकड़ी से उकेरा/बनाया गया है। जगन्नाथ मंदिर को जटिल नक्काशी के साथ बड़े ही सुन्दर तरीके बनाया गया है। इस मंदिर को रंगों के अनूठे मिश्रण के साथ सजाया गया है, जिससे मंदिर देखने में और भी आकर्षक लगता है। मंदिर के अंदरूनी हिस्से को एक किले के रूप में बनाया गया है, जिसके चलते श्रद्धालुओं को पूजा करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। मंदिर के भीतर एक लंबा गर्भगृह है, भगवान अपने अज्ञातवास में यहीं पर रहते हैं। 

जगन्नाथ मंदिर परिसर में जगमोहन मंदिर,नट मंदिर, विष्णु मंदिर, शिव मंदिर, काली मंदिर और हनुमान जी का मंदिर भी स्थित है। जबकि मंदिर के बाहर प्रांगण में गरुड़ की मूर्ति विराजमान हैं। जगन्नाथ मंदिर, वैष्णव पंथ से संबंधित भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 

जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi के खुलने का समय क्या है?

भगवान जगन्नाथ स्वामी जी के मंदिर सुबह 5:00 बजे तक खुल जाता है फिर प्रातः आरती 6:00 बजे किया जाता है। अन्न भोग का समय दोपहर 12:00 बजे है, जिसमें भगवान को हर दिन दोपहर का भोजन दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ स्वामी जी भोजन करने के बाद दोपहर 12:10 बजे से 3:00 बजे तक अपने शयनकछ में सोने के लिए चले जाते हैं, इसका मतलब इस समय आप भगवान का दर्शन नहीं कर सकते हैं। 

पुनः मंदिर का मुख्य दरवाजा शाम के 3:00 बजे खुलता है। मंदिर का पट खुलने के बाद संध्या कालीन मंगल आरती 3:00 बजे की जाती है। शरद कालीन के समय शाम के 5:30 से 6:30 बजे माइक के द्वारा भजन गाया जाता है, वहीं ग्रीष्म कालीन का समय शाम के 6:00 से 7:00 बजे तक है। शरद कालीन के समय शयन आरती शाम के 7:00 बजे होता है उसके बाद भगवान का पट 7:30 बजे तक बंद कर दिया जाता है यानि भगवान अब सोने चले जाते हैं। वहीं ग्रीष्म कालीन का समय शयन आरती शाम के 7:30 बजे होता है फिर भगवान 8 बजे तक सोने के लिए चले जाते हैं यानी मंदिर का पट बंद हो जाता है।

नोट :- हर दिन भगवान जगन्नाथ स्वामी जी का दर्शन प्रातः 5:00 बजे से दोपहर के 12:10 तक होता रहेगा। फिर 3:00 बजे अपराह्न से लेकर रात्रि 7:30 बजे प्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी जी का दर्शन होगा।

जगन्नाथ मंदिर रांची में कैसे पहुंचे? (How to reach Jagannath Temple Ranchi?)

रांची के जगन्नाथ मंदिर का शानदार सौंदर्य और दृश्य सभी प्रकार के श्रद्धालुओं/आगंतुकों/पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पर लोग रिक्शा, ई – रिक्शा, साइकिल, मोटरसाइकिल, कार, बस, ऑटो रिक्शा, टैक्सी, Ola, Uber, Rapido आदि के माध्यम से आसानी से आ सकते हैं।

देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी आने वाले श्रद्धालुओं/आगंतुकों/पर्यटकों रांची शहर में स्थित बिरसा मुंडा हवाई अड्डा/रांची हवाई अड्डे तथा रांची रेलवे स्टेशन या हटिया रेलवे स्टेशन या फिर खादगाढ़ा बस स्टैंड में उतर कर आसानी से मन्दिर तक पहुंच सकते हैं।

साधननजदीक स्थानदुरी/समय
By AirBirsa Munda International Airport, Ranchi07 Km/(15 min)
By Train Ranchi Railway Station
Hatia Railway Station
8.7 Km/(20 min)
5.7 Km/(13 min)
By BusBirsa Munda Bus Terminal, Khadgarha, Ranchi 11 Km/(30 min)
By BusGovt Bus Stand, Ranchi08 Km/(20 min)

Local Transport :- Jagannath Mandir Ranchi जाने के लिए आप अपने निजी वाहन, Ola, Uber, ऑटो रिक्शा, ई रिक्शा, साइकिल, पैदल से बिलकुल आसानी से पहुंच सकते हैं।

जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का पुरा पता क्या है?

GodLord Jagannath
Temple NameJagannath Mandir Ranchi
Place TypesLandmark & Historical Place
AddressJagannath Mandir Marg, Jagannathpur Chowk Khataal, Sector 1, Dhurwa, Ranchi, Jharkhand, India, 834004
Locality/City/VillageJagannathpur, Badkagarh, Dhurwa 
DistRanchi
StateJharkhand
CountryIndia
Coordinate23.3170241066, 85.2818425984
Phone+91 1124626966
Temple Timings5:00 AM to 12:10 PM & 3:00 PM to 7:30 PM

जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi की किन-किन नामों से जाना जाता है?

Jagannath Mandir को जगन्नाथ मंदिर पहाड़ी, बड़कागढ़ पहाड़ी, जगन्नाथपुर पहाड़ी, रथ मेला, रथ टुंगरी, जगन्नाथ टुंगरी, रथ यात्रा मेला के नामों से जाना जाता है।

Conclusion:-

आज के इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि – Jagannath Mandir Ranchi क्या है?, jagannath Mandir कहां स्थित है? तथा jagannath Temple /Jagannath Mandir Ranchi का इतिहास क्या है? आदि जैसे और भी बहुत कुछ जो आपको जानने लायक हो।

आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें Comment करके ज़रूर बताएं तथा अगर कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वो भी Comment में लिख कर बताएं ताकि हम उसे सुधार कर इससे और भी बेहतर कर सकें।

FAQs

जगरनाथपुर (बड़कागढ़) का नाम कैसे पड़ा?

जगरनाथपुर (बड़कागढ़) के कारण।

जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कहां पर स्थित है?

जगरनाथपुर,बड़कागढ़, धुर्वा, रांची

क्या Jagannath Mandir Ranchi में Entry Fee’s लगता है?

Fully Free लेकिन आप मंदिर में इच्छा पूर्ण दान कर सकते हैं।

क्या Jagannath Mandir से पूरी रांची देखा जा सकता है?

नहीं, लेकिन यहां से आस – पास के इलाका जैसे धुर्वा डैम, विधानसभा भवन, धुर्वा, हटिया स्टेशन, रांची हवाई अड्डा आदि देख सकते हैं।

Jagannath Mandir Ranchi जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

वैसे तो आप दिन के समय मंदिर में कभी भी पूजा के लिए आ सकते हैं लेकिन Morning 5-6 AM or Evening 5-6 PM यानि इस समय यहां पर प्रातः कालीन आरती तथा संध्या कालीन आरती होती है। अगर आप इस समय आते हैं तो आराम से पूजा के साथ आरती भी कर सकते हैं।

Jagannath Mandir Ranchi को किस नाम से जाना जाता है?

रथ मेला, बड़ाकगढ़ मेला, जगन्नाथ मेला, रांची रथ यात्रा मेला, बड़ाकगढ़ रथ यात्रा मेला आदि।

Jagannath Mandir को किसने बनवाया था?

बड़कागढ़ के नागवंशी राजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने 25 दिसम्बर 1691 में जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का निर्माण करवाया।

अभिलिप्सा पांडा का जीवन परिचय | Abhilipsa Panda Biography in Hindi

Abhilipsa Panda Biography in Hindi:- हर हर शंभू शिव महादेवा/Har Har Shambhu Shiva Mahadeva अभी के समय में भारत में एक बहुत ही Famous Trending Song है जो सोशल मीडिया में वायरल हो गया है। ये गाना हर किसी के होंठों पर छाया हुवा है। इस गाने को अपने सुमधुर आवाज से सजायी है उभरती हुई नई गायिका/गायक अभिलिप्सा पांडा/Abhilipsa Panda और Jitu Sharma/जितु शर्मा ने।

इस गाने को अभी लोग काफ़ी पसंद कर रहे हैं इसी के चलते अभी जारों से इन्टरनेट में Search किया जा रहा है आख़िर कौन है अभिलिप्सा पांडा, Abhilipsa Panda Biography in Hindi/अभिलिप्सा पांडा का जीवन परिचय आदि।

आज के Article में जानेंगे:-

  • अभिलिप्सा पांडा कौन हैं ?
  • अभिलिप्सा पांडा का प्रारंभिक जीवन कहां से शुरू हुई?
  • अभिलिप्सा पांडा का शैक्षणिक जीवन कहां से शुरू हुई?
  • अभिलिप्सा पांडा से जुड़े रोचक जानकारियाँ।
  • अभिलिप्सा पांडा का वायरल गीत से जुड़े रोचक जानकारियाँ। 

अभिलिप्सा पांडा कौन हैं? | Who is Abhlipsa Panda?

Abhilipsa Panda
नामअभिलिप्सा पांडा
पेशागायिका
पिता का नामअशोक पांडा
माता का नामपुष्पाश्री पांडा
दादा का नामरवि नारायण पांडा
बहन का नामआकांक्षा पांडा
जन्म तिथि30 नवंबर 2004
जन्म स्थानतेंतालबहल,देवगढ़,उड़ीसा
होम टाउनबड़बिल,क्योंझर,उड़ीसा
धर्महिन्दू
जातिब्राह्मण
शिक्षा12 वीं पास
ऊँचाई5 फीट 3 इंच
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
स्कूल का नामकेंद्रीय विद्यालय
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अभिलिप्सा पांडा भारत की बहुत ही Popular उभरती हुयी चर्चित नई गायिका हैं। अभी के समय में पूरे भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हर हर शंभु गाना लोगों के काफ़ी पसंद किया जा रहा है। गाने के शुरुवाती बोल हैं – हर हर शंभू शिव महादेवा/ Har Har Shambhu Shiva Mahadeva इस गाने को Social Media में काफ़ी पसंद किया जा रहा है, YouTube में काफी समय Trending ने No.1 रही।

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अभिलिप्सा पांडा एक Famous Singer के साथ – साथ बहुत अच्छी Dancer, Matial Arts Champian रही हैं। मार्शल आर्ट्स में अभिलिप्सा पांडा National Gold Medalist रह चुकी हैं।

अभिलिप्सा पांडा का प्रारंभिक जीवन कहां से शुरू हुई?

Abhilipsa Panda का जन्म 30 नवंबर 2004 में उड़ीसा के देवगढ़ जिला के तेंतालबहल गांव में एक ब्राह्मण पारिवार में हुआ। इसके पिता श्री अशोक पांडा, माता का नाम श्रीमती … देवी, बहन का नाम आकांक्षा पांडा तथा दादा जी का नाम रवि नारायण पांडा है। इनको गाने के शोक बचपन से ही है।

Abhilipsa Panda

अभिलिप्सा पांडा बचपन में अपने दादा के साथ गीत संगीत सीखा करती थी और अपनी नानी के साथ मंत्र जप करना सीखती थी। उनकी नानी के उसे मंत्र उच्चारण करना सिखाई जिसे धीरे – धीरे अभिलिप्सा ने मंत्रों को गाने के रूप में गाना शुरू किया जिसे उसके घर वाले लोग काफी पसंद करने लगे। अपने दादा के साथ वो शास्त्रीय संगीत और हरमोनियम बजाने सीखी तथा उनकी मां से क्लासिकल ओड़िसी डांस सीखी।

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अभिलिप्सा पांडा की मां भी एक समय की ओड़िशी नृत्यिका रह चुकी हैं। इन्होंने अपनी मां के साथ ही डांस सीखी है। इसकी बहन आकांक्षा पांडा भी बहुत अच्छी सिंगर है। सावन महीने में इन दोनों बहनों का एक नया गीत ;- सावन आयो अपने ही YouTube Channe – Rockstar Abhilipsa Panda में आया।

अभिलिप्सा पांडा का शैक्षणिक जीवन कहां से शुरू हुई?

अभिलिप्सा पांडा को जब स्कूल में दाखिला करा दिया उसी समय उसे कराटे क्लास तथा डांस क्लास में भर्ती करा दिया गया था। वो बचपन से ही गाने, नाचने, पढ़ने, योगा और कराटे में काफ़ी ध्यान देती थी। जिसके चलते ये इन सभी कार्यों में सफलता हासिल की। 

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Abhilipsa Panda शुरू से ही पढ़ने लिखने में बहुत ही अच्छी थी। उनके स्कूल में जो भी कार्यक्रम होते थे सभी में वो बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी। अभिलिप्सा पांडा 2022 में ही 12th की परीक्षा को अच्छे नंबरों से पास की है और अब आगे की पढ़ाई भी जारी है।

अभिलिप्सा पांडा का वायरल वीडियो/गीत (Abhilipsa Panda Viral Video/Song):-

Abhilipsa Panda अपने कैरियर की शुरूआत एक Music Album “मंजिल केदारनाथ/Manjil Kedarnath” से की थी। अभी 5 मई 2022 को एक गाना Har Har Shambhu Shiva Mahadeva/हर हर शंभू शिव महादेवा रिलीज हुआ जो अभी के समय में पुरे भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफ़ी प्रचलित गीत बन चुका है साथ ही साथ YouTube में Tranding में रहा है। 

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हर हर शंभू शिव महादेवा वीडियो में Abhilipsa Panda (अभिलिप्सा पांडा) के साथ Jitu Sharma (जीतू शर्मा) नजर आते हैं और इस गाने को दोनों ने ही गाया है। जीतू शर्मा ने ही इस गाने के Lyrics को तैयार किया है और इस गाने को संगीत से सजाया है आकाश देव ने । इस गाने को AD Studio Jamshedpur (Akash Dew) में रिकॉर्डिंग किया गया तथा इसे Jitu Sharma नाम के YouTube Channel में 5 May 2022 को Upload किया गया है।

Har Har Shambhu Shiva Mahadeva गाने को जीतू शर्मा ने दक्षिण अफ्रीका के महशुर भजन गायिका Achyut Gopi (अच्युत गोपी) के Bhaj Man Radhe Govinda के भारतीय Version के अनुसार बनाया है। परन्तु कुछ लोगों ने Fake Copyright देकर Video को Take Down करा दिया था उसके बाद Video को दोबारा YouTube में Publish कर दिया गया अब गाना YouTube पर Available है। इसके साथ ही फ़रमानी नाज़ से भी विवाद हो गया था परन्तु जीतू शर्मा और अभिलिप्सा पांडा का ही गाना Original है। 

अभिलिप्सा पांडा के गाने की सूची ( Abhilipsa Panda Songs List):-

क्रम संख्यागानों के नाम
1Manjil Kedarnath/मंजिल केदारनाथ
2Har Har Shambhu Shiva Mahadeva/हर हर शंभू शिव महादेवा 
3Shiva Rudrakashtam/शिव रुद्राकष्टम 
4Sawan Aayo/सावन आयो
5Naam Tera Bhole/नाम तेरे भोले
6Kalki Avatar/कल्कि अवतार
7Har Har Shambhu Lofi Mix/हर हर शंभू लोफी मिक्स
8Bholenath Ji Lofi/भोलेनाथ जी लाेफी
9Nam Tera Bhole/नाम तेरा भोले
10Mera Chhota Sa Sansar/मेरा छोटा सा संसार
11Hey Bhole Bhaba/हे भोले बाबा
12Bum Bholenath/बम भोलेनाथ 

Conclusion:-

आज के इस Article में हमने जाना कि – कौन है अभिलिप्सा पांडा?, अभिलिप्सा पांडा का प्रारंभिक जीवन कहां से शुरू हुई?, अभिलिप्सा पांडा का शैक्षणिक जीवन कहां से शुरू हुई?, अभिलिप्सा पांडा से जुड़े रोचक तथ्य, अभिलिप्सा पांडा का वायरल गीत आदि बहुत सारी जानकारियां आपके साथ साझा किए जो आपको जानने लायक हो।

आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें Comment करके ज़रूर बताएं तथा अगर कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वो भी Comment में लिख कर बताएं ताकि हम उसे सुधार कर इससे और भी बेहतर कर सकें।

FAQs:-

अभिलिप्सा पांडा कौन हैं?

भारत के उड़िसा राज्य के हैं Famous Singer Abhilipsa Panda जिन्होंने Trending Song Har Har Shambhu Shiva Mahadeva गाने में अपनी सुरीली आवाज दी हैं। यही गाने से उसे काफ़ी पसंद किया जा रहा है।

हर हर शंभू शिव महादेवा गाने की रिकॉर्डिंग कहां हुआ है?

इस गाने की रिकार्डिंग AD Studio Jamshedpur (Akash Dew), Jharkhand में हुआ है। 

अभिलिप्सा पांडा को क्या – क्या पुरस्कार मिला है?

Martial Arts में अभिलिप्सा पांडा National Gold Medal 🏅 तथा Odisha Super Singer Contestent में Governer Trophy 🏆 भी प्राप्त हुआ है।

अभिलिप्सा पांडा कौन से धर्म से है?

अभिलिप्सा पांडा हिंदू सनातन धर्म के ब्राह्मण जाति से हैं। वो हिंदू धर्म में बहुत विश्वास रखती हैं।

अभिलिप्सा पांडा के पिता का नाम क्या है?

अशोक पांडा

अभिलिप्सा पांडा के माता का नाम क्या है?

पुष्पाश्री पांडा

अभिलिप्सा पांडा के दादा का नाम क्या है?

रवि नारायण पांडा

अभिलिप्सा पांडा के बहन का नाम क्या है?

आकांक्षा पांडा

हर हर शंभु शिव महादेवा गाने को किसने गाया है?

अभिलिप्सा पांडा और जीतू शर्मा ने।

टैगोर हिल राँची | Tagore Hill Ranchi Jharkhand

Tagore Hill Ranchi:- झारखंड झाड़ – झाखंडो का प्रदेश कहा जाता है, एक ऐसा प्रदेश जहां जंगल, पठार, पहाड़, झाड़, नदी और झरने स्थित हों। झारखंड के क्षेत्र के आधार का निर्माण आर्कियन युग (दो सौ करोड़ पूर्व) की प्राचीन चट्टानों से हुआ है, जिसमें ग्रेनाइट, नीस, और आग्नेय अंतर्वेधन चट्टान प्रमुख हैं। 

टैगोर हिल राँची का एक बेहद ही खूबसूरत और रमणीय स्थल है जहाँ लोग अपने प्रियजनों के साथ या अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना पसन्द करते हैं। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता मन को सुकून का अहसास करता है। टैगोर हिल राँची के मोरहाबादी में स्थित एक सुन्दर पहाड़ी है। 

आज के इस Article में हम जानेंगे:-

  • टैगोर हिल क्या है?
  • टैगोर हिल कहां पर स्थित है?
  • टैगोर हिल का इतिहास क्या है?
  • टैगोर हिल कैसे पहुंचे?

टैगोर हिल क्या है?| What is Tagore Hill?

टैगोर हिल (Tagore Hill) को रांची के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है। टैगोर हिल झारखंड के प्रमुख भौगोलिक विशेषताओं में से एक है, जो इस जगह की सुंदरता में विविधता के साथ चार चांद लगाती है। यह एक पहाड़ी है जो हरे भरे पेड़-पौधों से सुसज्जित है,इस पहाड़ी की चोटी पर एक View Point बनाया हुआ है जहाँ से आस-पास के क्षेत्रों की झलक वास्तव में देखने लायक है, जिससे यहां आने वाले लोग आकर्षित हुए बिना नहीं रहते हैं।

Tagore Hill Ranchi Jharkhand

यह एक छोटी सी पहाड़ी है, जो दिखने में काफी सुन्दर है। इस पहाड़ी में काफी छोटे-बड़े पत्थर भरे पड़े हैं, जिस पर यहां जाने वाले लोग अपने दोस्त-यारों और प्रियजनों के साथ आराम से बैठकर बात-चीत करते हैं, साथ ही आस – पास के दृश्य का नज़ारा देखते हैं।

टैगोर हिल के चोटी से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखने लायक सबसे खूबसूरत चीजों में से एक है। टैगोर हिल एक पर्यटक स्थल/रमणीय स्थान बनने से पहले यहां गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्र नाथ टैगोर का आश्रम था और कहा जाता है की उससे पहले भी यह एक विश्राम गृह हुआ करता था।

टैगोर हिल कहां पर स्थित है? | Where is Tagore Hill?

टैगोर हिल, झारखण्ड की राजधानी रांची शहर के उत्तर छोर पर मोरहाबादी नामक स्थान पर स्थित है इस पहाड़ी की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 300 फीट ऊंची है. इसके समीप ही रामकृष्ण मिशन आश्रम, कृषि व्यवसायिक संस्थान, दिव्यायन केंद्र और मोरहाबादी मैदान, बिरसा फुटबॉल स्टेडियम भी स्थित है। यातायात के अच्छी सुविधा होने के कारण इस जगह कोई भी आसानी से ऑटो रिक्शा,कार,बस या साइकिल आदि से आना-जाना कर सकता है।

टैगोर हिल का इतिहास क्या है?| What is the history of Tagore Hill Ranchi?

Tagore Hill Ranchi एक ऐतिहासिक पहाड़ी है आइये अब हम इस पहाड़ी की इतिहास पर एक नज़र डालते हैं और इसके इतिहास को जानते हैं:-

Tagore Hill Ranchi का नामकरण कैसे हुआ?

भारत के श्रद्धेय कवि और एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव श्री रवींद्रनाथ टैगोर के साथ इस पहाड़ी का एक लंबा इतिहास जुड़ा रहा है। कई जगह पर इस पहाड़ी का उल्लेख है कि रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस पहाड़ी पर गीतांजलि का कुछ अंशों की रचना किये थे। टैगोर हिल पर गुरुदेव श्री रवींद्रनाथ टैगोर भी कुछ दिन प्रवास किये थे। 

Tagore Hill Ranchi Jharkhand

टैगोर हिल का नामकरण के पीछे रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर के साथ जुड़ा हुआ है। जो सबसे पहले 1 अक्टूबर 1908 को रांची आए थे और यहां आने के बाद उन्हें मोरहाबादी स्थित पहाड़ी काफ़ी पसंद आ गई तब ये जगह बिलकुल एकदम वीरान था।

क्योंकि उन दिनों राँची की आबादी उतनी अधिक नहीं थी। तब उन्होंने मोरहाहाबादी के जमींदार हरिहर नाथ सिंह से 290 रुपए के वार्षिक भाड़े पर मोराहाबादी पहाड़ी को लिए थे। बाद में पहाड़ी के साथ 15 एकड़ 80 डिसमिल जमीन को भी लिए और सबको एक साथ अपने नाम पर बंदोबस्ती करा लिए। इसके बाद उन्होंने वीरान पड़े टूटे – फूटे विश्राम गृह को अच्छा से बना कर इसमें रहने लगे।

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ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर की मृत्यु 4 मार्च 1925 ई. को अपने आश्रम में ही हुआ और उसका अंतिम संस्कार हरमू घाट/ हरमू मुक्तिधाम पर हुआ। बाद में उसका समाधि स्थल पहाड़ी के ऊपर ही बनाया गया। उनके निधन के बाद भी उनके परिवार के कई सदस्य वर्षों तक यहां आते-जाते रहे, जिसके कारण मोरहाबादी पहाड़ी का नाम टैगोर हिल (Tagore Hill) पड़ा। 

ज्योतिंद्रनाथ टैगोर ने मराठी गीता रहस्य को बांग्ला भाषा में रूपांतरित किया:-

ज्योतिंद्रनाथ टैगोर ने सन् 1924 में इसी पहाड़ी पर रह कर “बाल गंगाधर तिलक” द्वारा मराठी में लिखित “गीता रहस्य” को बांग्ला भाषा में अनुवाद किया था। यहां इस पहाड़ी पर बहुत ही शांत माहौल रहता था जिसके कारण उसे अनुवाद करने में कोई परेशानियां नहीं होती थीं।

टैगोर हिल पर Rest House के बनने की कहानी भी दिलचस्प है:-

टैगोर हिल के बारे में कहा जाता है कि रांची के अंग्रेज प्रशासक लेफ्टिनेंट कर्नल ए. आर. ऑस्ली ने सन् 1842 ई. में मोरहाबादी पहाड़ी पर गर्मियों में रहने के लिए एक छोटा और प्यारा सा विश्राम गृह (Rest House 🏡) बनवाया था। उन्होंने यहां पर सन् 1842-1848 ई. तक रहे, वे हर रोज सुबह में अपने काले घोड़े पर सवार होकर मोरहाबादी मैदान में टहलने के लिए जाते और फिर Rest House में आकर Rest किया करते थे।

वे यहां पर अपने भाई के साथ रहा करते थे जो किसी अज्ञात कारणों से इसी विश्राम गृह में आत्महत्या (Suicide) कर लिया। इसके बाद से कैप्टेन ऑस्ली का मन यहां पर नहीं लगने लगा, फिर वह यहां से छोड़कर चले गए और दुबारा कभी लौटकर नहीं आए। इसके बाद से ये पहाड़ी काफ़ी वीरान था।

ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर ने मोरहाबादी पहाड़ी को कब खरीदा?

Tagore Hill Ranchi के बारे में कहा जाता है कि रांची के अंग्रेज प्रशासक लेफ्टिनेंट कर्नल ए. आर. ऑस्ली ने सन् 1842 ई. में मोरहाबादी पहाड़ी पर गर्मियों में रहने के लिए एक छोटा और प्यारा सा विश्राम गृह (Rest House 🏡) बनवाया था। उन्होंने यहां पर सन् 1842-1848 ई. तक रहे, वे हर रोज सुबह में अपने काले घोड़े पर सवार होकर मोराबादी मैदान में टहलने के लिए जाते और फिर Rest House में आकर Rest किया करते थे।

Tagore Hill Ranchi Jharkhand

वे यहां पर अपने भाई के साथ रहा करते थे जो किसी अज्ञात कारणों से इसी विश्राम गृह में आत्महत्या (Suicide) कर लिया। इसके बाद से कैप्टेन ऑस्ली का मन यहां पर नहीं लगने लगा, फिर वह यहां से छोड़कर चले गए और दुबारा कभी लौटकर नहीं आए। इसके बाद से ये पहाड़ी काफ़ी वीरान था।

ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर ने मोरहाबादी पहाड़ी को कब खरीदा?

ज्योतिरिंद्रनाथ टैगोर की पत्नी जिनका नाम कादंबरी देवी था जिसकी मृत्यु 19 अप्रैल 1884 को आत्महत्या करने से हुई, जिससे वे काफी दुखी-दुखी रहने लगे। तब से वे अपना पैतृक निवास स्थान ठाकुरबाड़ी छोड़कर अपने बड़े भाई ब्रिटिश भारत के पहले I.C.S सत्येंद्रनाथ टैगोर के साथ कुछ दिन रहे। लेकिन फिर 1905 ई. में अपने पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर के मृत्यु के बाद उन्होंने कुछ समय एक वैरागी की तरह पूरे भारत का भ्रमण किया। 

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फिर वह शांति की खोज में रांची आए तब उन्होंने मोराबादी के जमींदार हरिहर नाथ सिंह से 290 रुपए के वार्षिक भाड़े पर मोराहाबादी पहाड़ी को लिए थे। बाद में पहाड़ी के साथ 15 एकड़ 80 डिसमिल जमीन को भी लिए और सबको एक साथ अपने नाम पर बंदोबस्ती करा लिए। इसके बाद उन्होंने वीरान पड़े टूटे-फूटे विश्राम गृह को अच्छा से बना कर इसमें रहने लगे।

टैगोर हिल पहाड़ी पर किस-किस चीज का निर्माण कराया गया है?

Tagore Hill Ranchi पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां, प्रवेश द्वार पर एक विशाल तोरण द्वार और साथ ही अनेक छोटा – छोटा मंदिर तथा आगंतुकों को बैठने के लिए चबूतरा का निर्माण कराया गया। द्वार के सामने ही विभिन्न प्रजातियों की चिड़ियां, हिरण, मोर आदि को रखने के लिए एक छोटा आश्रम का रूप दिया गया है।

वे ब्रह्मा समाजी थे, इसीलिए ध्यान-साधना के लिए एक खुला मंडप बनवाया, जिसका नाम है “शांतालय” रखा गया। ये मंडप चौकोर है, स्लैप बलुवा पत्थर का है, शिखर नागर शैली में बना है। पहाड़ी के नीचे एक सत्येंद्रनाथ ने एक घर बनावाया, जिसका नाम है “सत्यधाम” रखा गया।

ज्योतिंद्रनाथ टैगोर की डायरी से पता चलता है कि उन दिनों रांची के गण्यमान्य लोग उनके आश्रम आया करते थे तथा साहित्य, संगीत, उपासना आदि कार्यक्रमों में शामिल होते थे। वे यहां के आदिवासियों से काफी प्रेम करते थे, इसी कारण पहाड़ी पर होने वाले सभी प्रकार के कार्यक्रम में वे लोग अवश्य भाग लेते थे।

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अभी के समय में यहां पर बहुत ही सुंदर-सुंदर झारखंडी चित्रकला तथा मूर्ति कला टैगोर हिल के दीवारों में बनाया गया है, जो यहां के कला-संस्कृति को दिखाता है। यहां स्थित किला, दीवार, मंदिर, शांति स्थल आदि जगहों को बहुत ही अच्छे से रंगाई -पुताई किया गया है।

Tagore Hill Ranchi पर ब्रोकरों की थी नजर:-

एक बार 1980 में टैगोर हिल को ब्रॉकरों ने बेचने का प्लान बनाया था, इसे खरीदने के लिए कई बड़े-बड़े बिल्डर लोग खड़े हो गए थे। भूदान योजना समिति बनाम मंदोदरी देवी का मामला L.R.D.C Court में गया। माननीय उच्च न्यायालय ने दोनों के दावे को ख़ारिज कर दिया और कहा कि ये एक ऐतिहासिक स्थल है, इसीलिए इस पर कोई दावा नहीं कर सकता है।

टैगोर हिल तक कैसे पहुंचें?

Tagore Hill Ranchi का शानदार सौंदर्य और दृश्य सभी प्रकार के आगंतुकों/पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पर लोग रिक्शा, ई – रिक्शा, साइकिल, मोटरसाइकिल, कार, बस, ऑटो रिक्शा, टैक्सी, Ola, Uber, Rapido आदि के माध्यम से टैगोर हिल तक पहुंच सकते हैं। साथ ही देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी आने वाले लोग शहर में स्थित बिरसा मुंडा हवाई अड्डा/रांची हवाई अड्डे के माध्यम से भी इस शहर में पहुंच सकते हैं।

टैगोर हिल तक इन साधनों से आसानी से पहुँच सकते हैं:-

साधननजदीक स्थानदुरी/समय
By AirBirsa Munda International Airport, Ranchi13 Km/(31 min)
By Train Ranchi Railway Station6.7 Km/(22 min)
By BusBirsa Munda Bus Terminal, Khadgarha, Ranchi 5.6 Km/(24min)
By BusGovt Bus Stand, Ranchi6.7Km/(24min)

Local Transport :- Tagore Hill Ranchi जाने के लिए आप अपने निजी वाहन, Ola, Uber, ऑटो रिक्शा, ई रिक्शा, साइकिल, पैदल से बिलकुल आसानी से पहुंच सकते हैं।

टैगोर हिल की किन-किन नामों से जाना जाता है?

Tagore Hill Ranchi को मोरहाबादी पहाड़ी, मोरहाबादी हिल, टैगोर पहाड़ी के नामों से जाना जाता है। आप 200-250 सीढ़ियाँ चढ़कर शीर्ष पर पहुँच सकते हैं और नीचे शहर के आश्चर्यजनक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा, आप यहां ट्रेकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग और कई अन्य साहसिक खेलों और रोमांचकारी गतिविधियों में भी हाथ आजमा सकते हैं।

पहाड़ी की तलहटी में प्रसिद्ध रामकृष्ण आश्रम और दिव्ययान और कृषि व्यवसायिक संस्थान का केंद्र भी स्थित है। इसके अलावा, आप ऊपर की ओर से भी मंत्रमुग्ध कर देने वाले सूर्यास्त का आनंद ले सकते हैं।

टैगोर हिल को विकसित करने के लिए कई योजनाएं हुईं निष्फल:-

Tagore Hill Ranchi परिसर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कई योजनाएं बनाई गयीं, लेकिन सभी निष्फल हुईं। झारखण्ड पर्यटन विभाग की ओर से यहां पर रोप वे बनाने की योजना बनी थी परन्तु उस पर कोई काम नहीं हो सका।

Tagore Hill Ranchi Jharkhand

2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन मुंडा, शिक्षाविद् डॉ रामदयाल मुंडा के साथ टैगोर हिल का भ्रमण करने पहुंचे थे। तब डॉ रामदयाल मुंडा ने मुख्यमंत्री को यहां Open Theater बनवाने का प्रस्ताव दिया था। अर्जुन मुंडा ने इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए पर्यटन विभाग को कहा था, पर इस दिशा में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

Tagore Hill Ranchi राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए P.I.L भी हो चुका है :-

SPTN संस्था की ओर से 2017 में इस मामले में Jharkhand High Court में P.I.L दर्ज किया गया था। संस्था के अध्यक्ष अजय कुमार जैन ने बताया कि SAI की ओर से जवाब दिया गया कि Tagore Hill सन् 1925 में बना था और अभी 100 वर्ष पूरे नहीं हुए, इसलिए इसे राष्ट्रीय धरोहर (National Heritage) घोषित नहीं किया जा सकता। फिर एक और जानकारी के अनुसार अजय कुमार जैन ने कोलकाता के National Library में मौजूद “तत्वबोधिनी पत्रिका” के हवाले से बताया कि टैगोर हिल 1910 में बनाए जाने का प्रमाण है।

Tagore Hill Ranchi को धरोहर घोषित करने के लिए मांगा था एनओसी:-

Tagore Hill Ranchi को राष्ट्रीय धरोहर (National Heritage) घोषित करने के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच कई पत्राचार हुए, लेकिन आज तक टैगोर हिल राष्ट्रीय धरोहर घोषित नहीं हो सका। 2001 से प्राकृतिक सौंदर्य व आदिम संस्कृति सरंक्षण संस्थान (Natural Beauty and Primitive Culture Preservation Institute – NBPCPI) लगातार काम कर रहा है।

2008 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India – ASI) की ओर से दिल्ली केंद्रीय कार्यालय को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए पत्र लिखा गया था। 2013 में केंद्र से झारखंड सरकार को पत्र भेजा गया, जिसमें राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए No Objection Certificate – NOC मांगा गया था। 2014 में राज्य सरकार द्वारा ASI को NOC भी मिल गया था, लेकिन इसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

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टैगोर हिल को लोग क्यों पसंद करते हैं?

Tagore Hill Ranchi सुबह 5 बजे से शाम 6 बजे तक खुला हुआ रहता है, जिसका Entry Fee’s बिलकुल Free है। यहां से सुर्यादय और सुर्यास्त की लालिमा वाली दृश्य देखने लायक होती है। इस जगह पर लोग Morning Walk, Running, Rock Climbing, Advantures, Silent Mood, Time Spend, Meet-up करने के लिए आते हैं।

टैगोर हिल के चोटी पर चढ़ने के लिए लगभग 200-250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। यही कारण है कि यहां आने वाले लोग कहते हैं कि इससे हमारे घुटने, पैर मजबूत होता है। साथ Denfence की तैयारी करने वाले लड़के बताते हैं कि इस पहाड़ी से हमें बहुत ही अच्छे से तैयारी होती है, कारण यहां बहुत बड़ा – बड़ा चट्टान है जिससे उतरने और चढ़ने का अच्छा अभ्यास हो जाता है।

Tagore Hill Ranchi के Top View पर जाकर लगभग पुरे रांची की दर्शन कर सकते हैं। सुबह और शाम में आप शुद्ध और ताज़गी हवा ले सकते हैं साथ ही एक शांति का अनुभव कर सकते हैं। यहां आने से आपका मन एक दम शांत हो जायेगा क्योंकि पाहड़ी में चारों ओर हरियाली ही भरा है।

टैगोर हिल पर आप अपने परिवार वाले के साथ और दोस्तों के साथ घूमने या समय व्यतित करने के लिए जा सकते हैं। यहां आप आप छोटा सा पिकनिक भी कर सकते हैं लेकिन यहां खाना नहीं बना सकते हैं उसके लिए आपको खाना घर से लाना होगा और खाने के बाद कूड़ा – कचरा बकायदा तरीके से कूड़ेदान में डालना होगा। इस जगह पर आपको बिलकुल साफ – सुथरा दिखाई देगा क्योंकि यहां पर साफ – सफ़ाई पर बहुत ध्यान दिया जाता है।

Conclusion:-

आज के इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि – Tagore Hill Ranchi/टैगोर हिल क्या है?, टैगोर हिल कहां स्थित है? तथा टैगोर हिल/Tagore Hill Ranchi का इतिहास क्या है? आदि जैसे और भी बहुत कुछ जो आपको जानने लायक हो।

आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें Comment करके ज़रूर बताएं तथा अगर कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वो भी Comment में लिख कर बताएं ताकि हम उसे सुधार कर इससे और भी बेहतर कर सकें।

FAQs:-

टैगोर हिल का नाम कैसे पड़ा?

रविंद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्र नाथ टैगोर के नाम से मोराबादी पहाड़ी का नाम टैगोर हिल पड़ा।

टैगोर हिल कहां पर स्थित है?

मोरहाबादी,रांची,झारखण्ड

क्या Tagore Hill Ranchi में Entry Fee’s लगता है?

Fully Free

क्या Tagore Hill से पूरी रांची देखा जा सकता है?

जी हां, पुरे राँची को आसानी से देखा जा सकता है.

Tagore Hill Ranchi जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

Morning 5-6 A.M or Evening 5-6 यानि आप सूर्यदय और सूर्यास्त के समय इस जगह पर आ सकते हैं।

टैगोर हिल को किस नाम से जाना जाता है?

मोरहाबादी पहाड़ी

Tagore Hill Ranchi में Rest House 🏡 किसने बनवाया था?

अंग्रेज प्रशासक लेफ्टिनेंट कर्नल ए. आर. ऑस्ली ने सन् 1842 ई. में टैगोर हिल में Rest House House का निर्माण कराया।

Draupadi Murmu Biography in Hindi | द्रौपदी मुर्मू की जीवनी

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Draupadi Murmu Biography in Hindi :- देश के सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति (Persident) पद के लिए 18 जुलाई को मतदान होना है। जिसके लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के केन्द्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (National Democratic Alliance – NDA) सरकार के लोगों से मिलकर 21 जून 2022 (मंगलवार) को एनडीए के ओर से राष्ट्रपति पद के लिए झारखंड के पूर्व राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) का नाम रखा गया है।

फिलहाल रामनाथ कोविंद जी का कार्यकाल पूरा होने के बाद अब देश को नया राष्ट्रपति मिल जाएगा। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुवाई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA की ओर से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए महिला उम्मीदवार के रूप में चुनी गई हैं तो वहीं विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया है। अगर द्रौपदी मुर्मू जी जीत जाती हैं तो वो देश के दूसरी महिला तथा देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी।

तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हमलोग जानेंगे कि इस समय देश के बहुचर्चित नाम द्रौपदी मुर्मू के बारे में (About of Draupadi Murmu), द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय (Draupadi Murmu Biography), द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन (Political life of Draupadi Murmu) आदि बहुत सारी जानकारियां जानेंगे जो आपको जानने लायक हो।

द्रौपदी मुर्मू का परिचय :-

नामद्रौपदी मुर्मू
पति का नामश्याम चरण मुर्मू
पिता का नामबिरंची नारायण टुडू
माता का नामकिनगो टुडू
जन्म20 जून 1958
समुदायसंथाली आदिवासी
वैवाहिक स्थितिविधवा
बच्चों की संख्या3
दसवीं की पढ़ाईK.B. High School, Mayurbhanj
इण्टर की पढ़ाईRama Devi Women’s University, Vidya Vihar, Bhubaneswar, Odisha
ग्रेजुएशन की पढ़ाईRama Devi Women’s University, Vidya Vihar, Bhubaneswar, Odisha
नौकरीJunior Assistant ( 1979-1983 )
अध्यापनShri Aurobindo Integral Education and Research, Rairangpur
राजनीतिक कैरियरपंचायत काउंसलर
2 बार विधायक ( 2000, 2004 )
पुरस्कारनीलकण्ठ पुरस्कार ( Best MLA of Odisa, 2007 )
राज्यपालझारखण्ड ( 15 मई 2015 से लेकर 12 जुलाई 2021 तक )
WikipediaDraupadi Murmu

द्रौपदी मुर्मू का प्रारंभिक जीवन (Early life of Draupadi Murmu) :-

द्रौपदी मुर्मू का जन्म भारत देश के उड़ीसा राज्य के मयूरभंज जिले रायरंगपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर सुदूरवर्ती गांव बैदापोसी के ऊपर बेड़ा में 20 जून 1958 को संताली आदिवासी परिवार में हुई थी। ये काफ़ी गरीब परिवार में जन्मी थी। इनका लालन पालन बहुत ही कम संसाधनों हुआ था। उनके पिता और दादा दोनों ही उनके पैतृक गांव के प्रधान थे।

द्रौपदी मुर्मू / Draupadi Murmu के पिताजी का नाम बिरंची नारायण टुडू तथा माता जी का नाम किनगो टुडू था। इनके पिता एक गांव के किसान था, जो खेतीबारी कर अपने परिवार का भरण – पोषण करता था। ये अपनी पिताजी के तीन संतानों (2 बेटा और 1 बेटी) में से तीसरी और सबसे छोटी थी। पहला बेटा – भगत टुडू व दूसरा बेटा का नाम – सारणी टुडू तथा बेटी का नाम – द्रौपदी मुर्मू है।

द्रौपदी मुर्मू की शुरुआती शिक्षा ( Draupadi Murmu’s Early Education ) :-

बिरंची नारायण टूडू के तीनों बेटा – बेटियों की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुआ। इसके बड़े भाइयों की आगे की पढ़ाई तो आर्थिक तंगी की वजह से रुक गई। लेकिन द्रौपदी मुर्मू ने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाही, क्योंकि वो पढ़ने लिखने में ठीक – ठाक थी। इनकी पढ़ाई – लिखाई का योगदान सबसे ज्यादा उनकी दादी का हाथ था। द्रौपदी मुर्मू की दादी जो चक्रधरपुर की रहने वाली थी। वह इनको पढ़ने के लिए काफी प्रेरित की, इनकी दादी तब के समय में हिंदी और इंग्लिश भी बोल लेती थी।

द्रौपदी मुर्मू के गांव में कुछ सरकारी अधिकारी व मंत्री जी का दौरा हुआ। द्रौपदी मुर्मू ने उनके सामने अपनी आगे की पढ़ाई – लिखाई जारी रखने की इच्छा प्रकट की। उनकी मदद से उनका दाखिला मयूरभंज के K.B. High School में हो गया। इसके बाद वो उसी विद्यालय से 10वीं की परिक्षा उड़ीसा बोर्ड से दी। इसे आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए वो भूवनेश्वर चली गई।

फिर उन्होंने 12वीं कला (I.A) की पढ़ाई “Rama Devi Women’s University, Vidya Vihar, Bhubaneswar, Odisha” से की और इंटर की परीक्षा उड़ीसा बोर्ड से दी। इन्टर पास करने के बाद उन्होंने उसी कॉलेज से कला (B.A) से स्नातक (Graduation) की ।

द्रौपदी मुर्म ने Junior Assistant के रूप में की काम।

शिक्षा पूरी करने के बाद उनका एक ही सोच था कहीं नौकरी करे और अपने परिवार का आर्थिक रूप से मदद कर सके। इसीलिए उन्होंने स्नातक पूरी करने के बाद इन्हें उड़ीसा सरकार में ही बिजली विभाग में Junior Assistant के तौर पर नौकरी प्राप्त हुआ। बिजली विभाग में इन्होंने 1979 से लेकर साल 1983 तक Junior Assistant के तौर पर कार्यरत रही।

द्रौपदी मुर्मू का वैवाहिक जीवन (Draupadi Murmu’s Married Life) :-

5 साल नौकरी करने के बाद उनकी शादी हो गई, फिर उनके ससुराल वालों ने उसे नौकरी नहीं करने दिया। क्योंकि उनकी नौकरी को लेकर परिवार में दिक्कतें शुरू हो गई। यही कारण से ससुराल वालों का मानना था कि दोनों लोगों के नौकरी करने की वजह से बच्चों की परवरिश पर बुरा असर पड़ेगा। वो नौकरी को पुरी तरह से छोड़ी नहीं थी यानि वो त्यागपत्र नहीं दी थी।

Draupadi Murmu's Married Life

द्रौपदी मुर्मू स्नातक / Graduation की पढ़ाई पूरी करके नौकरी कर रही थी उसी बीच शादी सेट होने के कारण वो अपनी गांव चली आई। उनके लिए घरवाले एक अच्छा – खासा लड़का देखकर कर रखा था। द्रौपदी मुर्मू / Draupadi Murmu की शादी 1983 में मयूरभंज जिले में ही श्याम चरण मुर्मू से हुआ था जो एक बैंक अधिकारी थे। वे गांव की एक सबसे ज्यादा पढ़ी – लिखी लड़की थी, क्योंकि उस समय गांव में इतना पढ़ाई – लिखाई कोई भी व्यक्ति नहीं करता था

इन दोनों का वैवाहिक जीवन काफी सुन्दर तरीके से चल रहा था किसी में कोई दिक्कत नहीं था। दोनों ने तीन संतानों का जन्म दिया, जिसमें से 2 बेटा और 1 बेटी थी। पहला बेटा का नाम – राम मुर्मू और दूसरा बेटा का नाम – लक्ष्मण मुर्मू तथा बेटी का नाम – इतिश्री मुर्मू है। पति – पत्नी मिलकर मिलकर अपने बाल बच्चों की देखभाल बहुत अच्छे तरीके से कर रहे थे। तीनों बेटा – बेटी को भुवनेश्वर के अच्छा विद्यालय में नामांकरण भी करवा दिया।

द्रौपदी मुर्मू के बच्चों के नाम :-

क्रम संख्यानाम
1राम मुर्मू
2लक्ष्मण मुर्मू
3इतिश्री मुर्मू

बिना वेतन लिए पढ़ाने लगीं एक संस्था में।

द्रौपदी मुर्मू वैसे भी घर में बैठ कर रहना नहीं चाहती थी और घरवाले उसे दुबारा नौकरी करने नहीं देते, जिसको देखकर वो एक सामाजिक संस्था से जुड़ गई। इस संस्था से जुड़ने का एक ही लक्ष्य था वो अपने गांव और समाज को आगे बढ़ाना और जागरूक करना। वे लोगों को घर – घर जाकर समझती थी और बताती थी की ये काम अच्छा है और ये काम बुरा है।

एक निर्धन परिवार से संबंध रखने वाली द्रौपदी मुर्मू कभी भी अपने लक्ष्य से नहीं भटकी और हमेशा आगे की ओर अग्रसर होती रही। उनके बारे में कहा जाता है कि आर्थिक तंगी से जूझते हुए भी लोगों को शिक्षित और जागरूक करने का भार लिया और बिना वेतन के ही द्रौपदी मुर्मू ने Aurobindo Integral Education and Research, Rairangpur में सहायक शिक्षिका के तौर पर भी काम की।

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द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन (Political Life of Draupadi Murmu) :-

द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1997 से हुआ। वह भाजपा से रायरंगपुर में पहली बार पार्षद चुनी गईं। इसके बाद उन्हें भाजपा की उड़ीसा इकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया। वे 2002 से लेकर 2009 तक मयूरभंज की भाजपा जिलाध्यक्ष रहीं।

पदअवधि
उड़ीसा सरकार में (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में ट्रांसपोर्ट एवं वाणिज्य विभाग के राज्यमंत्री
2000-2004
मयूरभंज विधानसभा से भाजपा का विधायक
2000-2005
उड़ीसा सरकार में पशुपालन और मत्स्य पालन विभाग के राज्यमंत्री
2002-2004
भाजपा के ST मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य
2002-2009
मयूरभंज विधानसभा से भाजपा का विधायक
2005-2009
भाजपा के ST मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष
2006-2009
ST मोर्चा भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य
2013-2015
झारखंड की राज्यपाल2015-2021

द्रौपदी मुर्मू को सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार से सम्मानित :-

द्रौपदी मुर्मू को उड़ीसा के मयूरभंज विधानसभा ने 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए “नीलकंठ पुरस्कार” से सम्मानित किया था।

झारखंड के पहली महिला राज्यपाल बनी :-

द्रौपदी मुर्मू , झारखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में कार्य की। वे झारखंड की सबसे लंबी अवधि तक रहने वाली 9वीं राज्यपाल थीं। और पहली ऐसी राज्यपाल थीं जिन्होंने पूरा 5 साल तक रहने के बावजूद वह अपने पद पर आसीन रहीं। उनका का कार्यकाल का समय 18 मई 2015 से लेकर 12 जुलाई 2021 तक रहा यानि कुल 6 साल 1 महीना और 18 दिन तक था.

वैसे तो इनका कार्यकाल 5 साल का था लेकिन बीच में वैश्विक महामारी कोविड – 19 आने के कारण राष्ट्रपति इनका कार्यकाल बड़ा कर 6 साल का कर दिया। वह 6 साल 1 माह 18 दिन तक झारखंड की राज्यपाल रहीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने झारखंड के सभी विश्वविद्यालयों के लिए Chancellor Portal शुरू कराया।

अपने राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान कभी भी विवादों में नहीं रहीं, जो इन्हें बहुत ही अदभुत बनाता है। अपने पद पर रहते हुए हमेशा आदिवासियों, बालिकाओं तथा अन्य समुदायों के हित की बात करती थीं और सजग रहती थीं। इन्हें राज्यपाल रहते हुए लगभग 100 से अधिक पुस्तकें उपहार के रूप में मिली, जिसे ये काफ़ी संभाल के रखी हुई है।

झारखंड में भाजपा और झामुमो, कोंग्रेस सरकार के कई विधेयकों को किया वापस :-

द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान झारखंड के विश्वविद्यालयों में एक नया प्रयास किया, जिसका लाभ विद्यार्थियों को मिला। उन्होंने कई विधेयकों को लौटाने का निर्णय भी लिया। भाजपा के रघुवर दास सरकार में ही सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक – 1908 (CNT-SPT Amendment Bill – 1908) सहित कई विधेयकों को सरकार को वापस लौटाने का कड़ा कदम भी उठाया।

हेमंत सोरेन की झामुमो सरकार में भी उन्होंने कई आपत्तियों के साथ जनजातीय परामर्शदातृ समिति के गठन से संबंधित फाइलें लौटा दीं। खूंटी में पत्थलगड़ी की समस्या के समाधान को लेकर वहां के परंपरागत ग्राम सभाओं, मानकी, मुंडा व अन्य प्रतिनिधियों को राजभवन बुलाकर उनके साथ रायशुमारी ली। इन सभी कार्यों के चलते उनकी एक अच्छी पहल भी मानी जाती है।

द्रौपदी मुर्मू की संघर्ष, दुखों और समर्पण से भरी रही जिंदगी।

द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी काफ़ी संघर्ष, दुखों और समर्पण से भरी रही है, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने सभी बाधाओं को धीरे – धीरे पार कर उस कठिन परीक्षा से पास की। उनके जीवन में ऐसा समय भी आया, जिसमें काफ़ी तनावग्रस्त हो गई। ऐसा लग रहा था मानो वो अब नहीं बचेगी।

जिसका सबसे पहला कारण था द्रौपदी मुर्मू का सबसे बड़ा बेटा राम मुर्मू का वर्ष 25 अक्टूबर 2010 में 25 साल की उम्र में असमय मृत्यु हो गई। डिप्रेशन से बाहर निकलने के लिए उन्होंने अध्यात्म (Spirituality) का रास्ता को पकड़ ली, जिसके लिए वह ब्रह्मकुमारी संस्था से जुड़ गई। वह जब धीरे – धीरे डिप्रेशन से बाहर आ ही रही थी, कि तभी 02 जनवरी 2013 में एक सड़क दुर्घटना में उनके दूसरे बेटे लक्ष्मण की भी मृत्यु हो गई।

द्रौपदी मुर्मू के जीवन का कठिन दौर यहीं नहीं रुका। उनके बेटे की मृत्यु के कुछ ही दिन बाद उनकी मां किनगो टुडू की भी मृत्यु हो गई। अपनी मां की मृत्यु के कुछ दिन बाद ही उनके बड़े भाई भगत टुडू का भी मृत्यू हो गया। इसी तरह से उन्होंने मात्र 1 महीने के अन्दर ही अपने परिवार के 3 लोगों को खो दिया। इन सभी दुःख की घड़ी से निकल ही रही थी कि तभी उसके सामने एक बहुत बड़ा पहाड़ टूट गया वर्ष 2014 में उनके पति श्याम चरण मुर्मू का भी आकस्मिक निधन हो गया।

उनके पति के देहांत होने के बाद द्रौपदी मुर्मू का सामान्य जीवन में वापस लौटना बहुत ही मुश्किल हो गया था। लेकिन उन्होंने ब्रम्हाकुमारी में अध्यात्म के साथ-साथ योग की भी शुरुआत की। जिससे वो अपनी डिप्रेशन से धीरे – धीरे बाहर निकलने लगी। और एक समय ऐसा आया कि वो इस बुरे दौर को पराजित कर अपनी जीत हासिल की।

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द्रौपदी मुर्मू का समाजसेवी जीवन (Draupadi Murmu’s Social Life) :-

द्रौपदी मुर्मू ने समाज सेवा के क्षेत्र में काफ़ी बहुमूल्य योगदान दिया। उन्होंने अपने आसपास के गांव घूम – घूम कर शिक्षा का अलख जगाने का काम किया। उन्होंने कई विद्यालय विद्यालय जा – जाकर बिल्कुल मुफ्त में शिक्षा बांटने का काम किया। इसके साथ ही अपने आदिवासी समुदाय को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने और अपने समाज के प्रति जागरूक करने का काम किया।

द्रोपदी मुर्मू अपने क्षेत्र में अच्छे ढंग से काम करने के लिए कई अशासकीय संस्था (Non-Governmental Organization – NGO) के संपर्क में आई। जिसके लिए वह गांव – गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाया। इस अभियान के तहत उन्होंने आदिवासियों का खान – पान , रहन – सहन, पढ़ाई – लिखाई, नाच – गान, कमाने – खाने का जरिया आदि उन सभी चीजों के बारे में बताया गया। जिससे कि जगंल – पहाड़ में तथा सुदूरवर्ती गांवों में रहने वाले आदिवासियों का किसी तरह से दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़े।

आदिवासियों के प्रति इतना समर्पण की भावना को देखते हुए। उनसे कई राजनीतिक दल के लोग मिले और उनसे कहने लगे कि आप बहुत ही अच्छा काम कर रही हो। क्यों न आप राजनीति के क्षेत्र में आएं। सभी लोगों के विचारों को सुनकर द्रोपदी मुर्मू ने सोचा कि सही बात है अगर मैं राजनीति के क्षेत्र में आ गई तो इन सभी कार्यों को और भी अच्छे ढंग से कर सकती हूं।

द्रौपदी मुर्मू ने अपने ससुराल की जमीन एक विद्यालय के नाम कर दिया है, जिसमें अब छात्र एवं छात्राओं के लिए छात्रावास बने हुए हैं। फिलहाल उस विद्यालय में लगभग 100 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं वहीं छात्रावास में रहकर वो भी बिलकुल मुफ़्त। विद्यालय में बच्चों की संख्या हर साल बढ़ते ही जा रही है।

यूं ही द्रौपदी को रायरंगपुर के लोग सिर आंखों पर नहीं बिठाते। कुछ तो बात होगी। पति और दो बेटों की मौत के बाद द्रौपदी ने अपने ससुराल पहाड़पुर की सारी जमीन ट्रस्ट बनाकर स्कूल के नाम कर दी। ट्रस्ट का नाम पति और बेटों के नाम पर एसएलएस ट्रस्ट रखा। चार एकड़ में फैला यह स्कूल रेसिडेंसियल है और इसमें कक्षा छह से दसवीं तक की पढ़ाई होती है।

द्रौपदी मुर्मू की झारखंड के कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों के विधि – व्यवस्था को सुधारा।

बालिकाओं की शिक्षा को लेकर चिंता दिखानेवाली द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के कुल 302 कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों (Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya (KGBV) का भी भ्रमण किया। इस दौरान छात्राओं से रूबरू होते हुए उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास किया। बाद में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, झारखंड सरकार (Department of School Education and Literacy, Government of Jharkhand) को आवश्यक निर्देश देते हुए उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया।

द्रौपदी मुर्मू ने झारखण्ड राजभवन में मांसाहार पर रोक लगाई थी।

द्रौपदी मुर्मू ने अपनी कार्यकाल में राजभवन को पूरी तरह से सादगी बनाकर रखा। वे खुद एक शुद्ध शाकाहारी व्यक्तित्व के लोग हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान पूरे राजभवन परिसर में मांसाहार पर रोक लगाई। राजभवन में रहते हुए भी उनकी सादगी की चर्चा हमेशा से होती रही और आगे भी अपनी सादगी के लिए भी याद की जाएंगी।

द्रौपदी मुर्मू राज्य के सभी लोगों के साथ संविधानिक रूप से मुलाकात करती थी।

द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल जितना दिन भी रहा उतना दिन तक झारखंड के सभी लोगों के साथ संवैधानिक रूप से मुलाकात करती थी। वे प्रतिदिन विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों तथा अन्य कोई भी लोग किसी समस्या लेकर उनके पास आते थे तो वे सभी लोगों के समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयास करते थे।

द्रौपदी मुर्मू अभी बेटी और दामाद के साथ रहती हैं।

द्रौपदी मुर्मू अपनी बेटी इति श्री को अच्छा से पढ़ाई – लिखाई करवाकर एक बैंक अधिकारी बनवाई। फिलहाल इतिश्री भुवनेश्वर में यूको बैंक में मैनेजर के तौर पर काम करती हैं। उनकी शादी गणेश हेमब्रम के साथ 6 मार्च 2015 को हुई थी। अभी इन दोनों की एक बेटी है जिसका नाम आद्याश्री है।

द्रौपदी मुर्मू अपनी आंखें दान में दी।

द्रौपदी मुर्मू ने साल 2016 में रांची के Kashyap Memorial Eye Hospital द्वारा आयोजित किए गए Run Of Vision कार्यक्रम में अपनी आंखें दान करने की घोषणा भी की थी।

देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति होंगी द्रौपदी मुर्मू :-

द्रौपदी मुर्मू अगर राष्ट्रपति का चुनाव जीतती हैं तो वे देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनेंगी। इससे पहले प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जो कि देश की एकमात्र महिला राष्ट्रपति रही हैं। वह साल 2007 से 2012 तक भारत के राष्ट्रपति के पद पर रही थीं। द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रह चुकी हैं।

द्रौपदी मुर्मू का साक्षात्कार (Interview of Draupadi Murmu)

द्रौपदी मुर्मू ने अपने एक इंटरव्यू में बताई कि :-

मैं एक आदिवासी संथाली समाज से आती हूं। मेरा जन्म अत्यंत ही गरीब परिवार में हुआ। हमलोग 3 भाई – बहन थे, जिसमें से मैं सबसे छोटी थी। मेरे पिताजी और दादाजी गांव के प्रधान हुआ करते थे। मेरी दादी थोड़ी बहुत पढ़ी हुई थी, जिसे से वो हल्की – हल्की हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बोल लेती थी। उनकी दादी चक्रधरपुर की रहनेवाली थीं ।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

मैं ने अपनी शुरुवाती पढ़ाई गांव के विद्यालय से ही की। बाद में कुछ सरकारी आधिकारियों के सहयोग से मयूरभंज के एक उच्च विद्यालय में दाखिला हो गया। वहीं से मैं अपनी 10वीं की परीक्षा उड़ीसा बोर्ड से दी फिर मैं ने आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए राज्य की राजधानी भूवनेश्वर चली गई। वहां से मैंने Rama Devi Women’s College में 12वीं उड़ीसा बोर्ड से कला (I.A) तथा कला से स्नातक (B.A) की पढ़ाई पूरी की।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

फिर मैं कुछ साल उड़ीसा सरकार में सिंचाई एवं बिजली विभाग में Junior Assistant Clerk के रूप में कार्य कर रही थी। क्योंकि मेरा मकसद था पैसा कमाकर अपने परिवार को आर्थिक सहायता कर सकूं। फिर एक दिन मेरी शादी हो गयी । मेरे पतिदेव सराकारी बैंक अधिकारी थे। हम दोनों का 3 बेटा – बेटी हुए। शादी के बाद मुझे नौकरी करने नहीं दिया गया कारण ससुराल वालों का मानना था कि अगर दोनों लोग नौकरी करोगे तो अपने बाल – बच्चों का लालन – पालन अच्छे ढंग से नहीं कर सकते।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

मुझे ऐसे ही घर बैठे मन नहीं लगता था तो मैं एक गांव के पास ही एक संस्था Aurobindo Integral Education and Research, Rairangpur से जुड़ गई। फिर मैंने बच्चों को फ्री में पढ़ाना शुरू की। वहीं से मैं समाज सेवा कार्य करने लगी। मुझे देखकर गांव के लोग अपने बेटी को पढ़ना – लिखना शुरू किया और यही कारण है आज उड़ीसा में महिलाओं को 50% का आरक्षण प्राप्त है।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

मैं 1997 में पहली बार रायरंगपुर नगर पंचायत के काउंसलर का चुनाव लड़ी जीत गई। फिर मुझे मयूरभंज विधानसभा से दो बार विधायक का टिकट मिला 2000 और 2004 में दोनों बार मुझे जीत हासिल हुई। इसके बाद मुझे BJD और BJP गठबंधन के मंत्री भी बनाया गया। फिर मैंने तीसरी बार BJP से 2009 में चुनाव लड़ी उस समय BJD अकले ही लड़ा और उस समय मुझे हार का सामना करना पड़ा।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

मैं चुनाव हारने के बाद गांव आ गई। मगर इसी बीच 2010 में मेरे बड़े बेटे की संदेहास्पद मौत हो गई, जिससे मैं काफ़ी डिप्रेशन में चली गई। 2013 में दूसरे बेटे की हादसे में मौत हो गई और 2014 में पति को भी खो दिया। इसके बाद पूरी तरह से टूट गई पर हिम्मत जुटा कर खुद को समाज सेवा में झोंके रखा।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

फिर मुझे 2015 में झारखंड के 9वीं राज्यपाल के रूप में कार्य करने का मौक़ा मिला जिससे मैं बड़ी ही अच्छे तरीके से कार्य को किया। अब मुझे सूबे के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रपति पद के लिए चुना जिससे मैं कभी नहीं भुला सकती। अगर मैं चुनाव जीत जाती हूं तो देश की सेवा बहुत ही निष्ठा पूर्वक करूंगी।

द्रौपदी मुर्मू , पूर्व राजयपाल ,झारखण्ड

निष्कर्ष (Conclusion)

आज के इस आर्टिकल में हमने जाना कि – द्रौपदी मुर्मू के बारे में (About of Draupadi Murmu), द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय (Draupadi Murmu Biography), द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन (Political life of Draupadi Murmu) आदि बहुत सारी जानकारियां जो आपको जानने लायक हो।

जानकारी कैसी लगी आप हमे Comments में या Instagram में बता सकते हैं। अगर आप हमें कुछ सुझाव या प्रतिक्रिया देना चाहते हैं तो आप Comments में या Instagram में बता सकते हैं , हमें आपके सुझावों और प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।

Draupadi Murmu’s FAQ’s :-

द्रौपदी मुर्मू कौन हैं ?

द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा राज्य के मयूरभंज जिले के संथाली आदिवासी परिवार में जन्मी एक बहुत चर्चित महिला का नाम है। जिन्होंने एक बार पार्षद, दो बार विधायक तथा एक बार झारखंड की राज्यपाल बनी और अब राष्ट्रपति पद के लिए नामित हैं।

द्रौपदी मुर्मू कौन से धर्म से सम्बन्ध रखती हैं ?

सारना धर्म जिसको हिन्दू धर्म का ही एक अंग माना जाता है।

द्रौपदी मुर्मू के गांव का नाम क्या है?

बैदापोसी (उपरबेड़ा), रायरंगपुर, मयूरभंज

द्रौपदी मुर्मू का Postal Address क्या है?

At – Baidaposhi, Ward No-2, P.O – Rairangpur, Dist – Mayurbhanj, State – Odisha, Pin Code – 757043

द्रौपदी मुर्मू के पिताजी और माताजी का क्या नाम है?

पिताजी – बिरंची नारायण टुडू और माताजी – किनगो टुडू

द्रौपदी मुर्मू का संपति कितना है?

लगभग 10 करोड़ रुपए

द्रौपदी मुर्मू ने कब राज्यपाल के पद पर शपथ ग्रहण की?

18 मई 2015

द्रौपदी मुर्मू किस राजनितिक पार्टी से जुड़ी हुईं हैं?

भारतीय जनता पार्टी (BJP)

द्रौपदी मुर्मू का उम्र क्या है?

64 साल

द्रौपदी मुर्मू का जन्म कब हुआ था ?

20 जून 1958

भारत की पहली महिला राष्ट्रपति कौन हैं ?

प्रतिभा देवी सिंह पाटिल

द्रौपदी मुर्मू के पति का क्या नाम है?

श्याम चरण मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू की बेटी का क्या नाम है?

इति श्री

सरहुल पर्व का महत्त्व और इतिहास | Sarhul Parv

सरहुल पर्व का महत्त्व और इतिहास :- झारखंड राज्य एक प्रकृति उपासक और पूजक राज्य है, यहां सभी प्रकृति से जुड़े चीज़ों की भगवान के रूप में पूजा की जाती है। सरहुल पूजा भी प्रकृति से जुड़ा हुआ पर्व है इसमें साल ( सखूवा ) के पेड़ की पूजा की जाती है।

यह पूजा खास कर आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है। लेकिन इस पर्व को सिर्फ़ आदिवासी ही नहीं बल्कि झारखण्ड के सभी लोग भी बड़ी आस्था और विश्वास के साथ मनाते हैं।

सरहुल पर्व (Sarhul Parv) कब मनाया जाता है?

सरहुल पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया दिन से मनाया जाता है। इस समय बसंत ऋतु चल रहा होता है जिसके कारण पृथ्वी के सभी पेड़ – पौधे में नए – नए फूल – पत्ते से भर जाते हैं। इस समय पूरी पृथ्वी रंग – बिरंगे रंगों से सजी हुई रहती है। ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने धरती का श्रृंगार किया हो।

हमारे देश में बसंत ऋतु को खुशियों का संदेश माना जाता है, क्योंकि इस पुरी पृथ्वी में एक नये उमंग का संचार होता है। सभी के घर फसलों से और जंगल फलों और फूलों से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय प्रकृति अपने गोद में बसे किसी जीव – जंतु को भूखा नहीं रहने देती है। सरहुल नए साल का शुरुआत का प्रतीक है, इस पर्व को मनाने के बाद ही आदिवासी – मुलवासी समुदाय के लोग पेड़ – पौधे में आए नए फल – फूल – पत्तियों का सेवन करते हैं।

सरहुल पर्व पर मछली और केकड़ा का क्या महत्व है?

सरहुल पूजा के ठीक एख दिन पहले मछली और केकड़ा पकड़ने का रीति – रिवाज है, इसको घर के दामाद या बेटा पकड़ कर अपने घर लाते हैं और उसे पूजा वाले स्थान में आरवा धागा से बांध कर टांगा दिया जाता है। धान बुआई के समय मछली और केकड़ा के चूर्ण को गोबर के साथ मिलाकर बिहन गाड़ी (जिस जगह धान बोया जाता है) में छितरा दिया जाता है।

यह मान्यता है कि जिस तरह केकड़े और मछली के असंख्य बच्चे होते हैं ठीक उसी तरह धान की बालियां भी असंख्य होंगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार मछली और केकड़ा पृथ्वी के पूर्वज है। समुन्द्र के मिट्टी को ऊपर लाकर ही हमारी पृथ्वी बनी है, जिसका प्रयास मछली और केकड़ा ने भी किया था। इसीलिए सरहुल का पहला दिन उनके सम्मान के लिए समर्पित होता है।

सरहुल पर्व (Sarhul Parv) कैसे और क्यों मनाया जाता है?

सरहुल पूजा के पूर्व संध्या से पूजा के अंत तक पाहान उपवास करता है। पूजा के एक सप्ताह पहले ही गाँव की “डाड़ी/चूआं (एक तरह का छोटा कुआं)” की साफ – सफाई की जाती है तथा उसके ऊपर ताजा सखुवा की डालियों को काट कर डाल दिया जाता है, जिससे पक्षियाँ और जानवर वहाँ से जल न पी सकें और ये जल बिलकुल शुद्ध रहे।

सरहुल पर्व का महत्त्व और इतिहास

पूजा के दिन भोर में ही यानि मुर्गा बांगने के पहले ही पहान दो नये घड़ों में “डाड़ी/चूआं ” का शुद्ध जल भर कर बिना किसी से बात किए सबकी नजरों से बचाकर गाँव को रक्षा करने वाली सरना मां के चरणों में रखता है। फिर सुबह में गाँव के नवयुवक सांढ़ा (मुर्गा) लेकर आते हैं, इन सभी मुर्गों का रंग नियम के अनुसार अलग-अलग होते हैं।

सृष्टिकर्ता सिंग बोंगा के लिए – सफ़ेद मुर्गा, हातु बोंगा (ग्राम देवता) के लिए – लाल मुर्गा, इकिर बोंगा (दरहा – देशाउली) के लिए – माला मुर्गा, भूत – प्रेत के लिए – काला मुर्गा और हड़म बूढ़ी (पूर्वजों) के लिए – रंगीली मुर्गे का बलि दी जाती है।

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गांव के पाहान सरना पूजा स्थल में बैठकर पूजा करते हैं। गाँव के पाहान के सहयोगियों द्वारा पासवान के माथे पर सिंदुर का तिलक लगाया है, उसके बाद पानी के घड़ा को पाहन देख कर बताते हैं कि इस साल कैसी बारिश होगी। ठीक उसके बाद सभी लोग “बरसो-बरसो” कहकर शोर करते हैं, बोला जाता है कि यह धरती और आकाश के बीच शादी का प्रतीक है।

पूजा में पाहान एक – एक करके सारे मुर्गों को बलि चढ़ते हैं। पहान सखूआ/सरई गाछ को सिंदुर लगाता और अरवा धागा से तीन बार लपेटता है, जो शादी के वस्त्र देने का प्रतीक है। सभी मुर्गे का खिचड़ी बनाया जाता है, जिसे “मुर्गा खिचड़ी” कहते हैं। खिचड़ी तथा हड़िया परसाद के रुप में वहां उपस्थित सभी लोगों को बांटा जाता है।

वहां उपस्थित सभी लोग साल फूल के छोटी – छोटी डालियां अपने – अपने घर ले जाते हैं और उसको दरवाज़ा में लगा देते हैं। फिर सभी लोग शाम में सरना स्थल के आखाड़ा में ढोल – नगाड़े – मंदार के साथ जमा होते हैं और रात भर नाच – गान का माहौल बना रहता है। तीसरे दिन पाहान के द्वारा फुलखोंसी का कार्यक्रम चलाया जाता है, जिसमें पाहान गांव के प्रत्येक घर जाकर सभी को सरई फूल कान में और माथा पर सिंदुर का टीका लगता है।

फिर शाम में विसर्जन जुलूस निकाला जाता है, जिसमें सभी कोई नाचते – गाते निर्धारित स्थान में जाते हैं उसके बाद नजदीकी तालाब, नदी में सभी पूजा सामग्री को प्रवाहित कर दिया जाता है। चौथे दिन के शाम को सभी आखाड़ा स्थल में आकर आखाड़ा मिटाने के नाम से नाच – गान करके त्योहार समाप्ति की घोषणा किया जाता है।

सरहुल पर्व (Sarhul Parv) में सरई फूलों का प्रयोग क्यों किया जाता है?

सरहुल प्रकृति से जुड़ा हुआ एक बहुत बड़ा पर्व है, जिसमें मुख्य रुप से साल/सरई के पेड़ को पूजा किया जाता है। आदिवासियों का मानना है कि इस पर्व को मुख्य रूप से सरई फूलों के साथ मनाया जाता है। पतझड़ के मौसम में पेड़ों के टहनियां पर नए – नए पत्ते और फूल खिलते हैं। इस दौरान साल के पेड़ों पर खिलने वाले फूलों का विशेष महत्व है। यह पर्व मुख्यतः 4 दिनों तक मनाया जाता है, जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया से प्रारंभ होता है।

सरहुल पर्व का महत्त्व और इतिहास

सरहुल दो शब्दों से मिलकर बना है :- सर और हूल जिसे अंग्रेजी में andlsquo और andrsquo कहते हैं। जिसमें सर का अर्थ है:- सरई फूल और हूल का अर्थ है क्रांति, इसका मतलब सरई फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया। झारखंड के आदिवासी-मूलवासी के जन – जीवन में साल/सखुआ पेड़ की अति महत्त्व है। सरई की पत्ती, टहनी, डालियाँ, तने, छाल, फल, फूल आदि सब कुछ प्रयोग में लाए जाते हैं। सरई पत्तियों का उपयोग पत्तल, दोना, पोटली आदि बनाने में होता है।

साथ ही दातवुन, जलावन, मड़वा-छमड़ा, शादी-बिहा, भाग्य देखने आदि में सखुए की डाली, टहनी, पत्ता, लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग के बिना आदिवासी – मूलवासी का जन- जीवन की कल्पना करना लगभग असम्भव-सा है। आदिवासी – मूलवासी के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु के बाद भी सरई पेड़ का विशेष स्थान है। पारखी मीकर रोशनार के द्वारा लिखा गया पुस्तक “द फ़्लाइंग हॉर्स ऑफ धर्मेस” जिसमें आदिवासी जनजीवन और खानपान के ऊपर है। सरई का पेड़ आदिवसियों के लिए सुरक्षा, शांति, खुशहाल जीवन का प्रतीक माना गया है।

सरहुल को किस-किस भाषा में क्या-क्या बोला जाता है?

सरहुल पर्व को झारखण्ड के अलग -अलग भाषा में इन नामों से जाना जाता है :-

भाषापर्व का नाम
मुण्डारीबा या बाहा
संथालीबा या बाहा
कुड़ुखखद्दी या खे़खे़ल बेंजा
खड़ियाजोनकोर
पंचपरगनियासरहुल
कुड़मालीसरहुल
खोरठासरहुल
नागपुरीसरहुल

सरहुल में हड़िया का क्या महत्व है?

सरहुल पुजा के लिए आदिवासी समाज के प्रत्येक घर से हड़िया बनाने के लिए 3-4 दिन पहले ही चावल जमा किए जाते हैं ताकि पूजा के दिन से हड़िया पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाए। यही हड़िया पूजा के दिन सबसे पहले सरना मां को चढ़ा कर फिर सबको परसाद के रूप में दिया जाता है।

सरहुल कौन समुदाय के लोग मानते हैं?

सरहुल पूजा खास कर आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। लेकिन इस पर्व को आदिवासी समुदाय के लोगों के आलावा झारखण्ड सभी मूलवासी लोग भी बड़ी धूम – धाम से मानते हैं।

सरहुल में पूजा कौन करता है?

गांव के मुख्य पाहान के द्वारा सरहुल पूजा किया जाता है। सभी धार्मिक अनुष्ठान पहान के द्वारा संचालित किया जाता है।

सरहुल में लाल और सफ़ेद रंग का क्या महत्व है?

झारखंडी भाषा-संस्कृति के प्रति अभिमान पैदा करनेवाले डॉ रामदयाल मुंडा के द्वारा कहा गया कथन – “जे नाची से बांची” यानि जो नाचेगा वही बचेगा क्योंकि नृत्य ही संस्कृति है। सरहुल पर्व में पूरे झारखंड में जगह-जगह नाच गाना का माहौल होता है, जिसमें सभी लोग झूमते गाते रहते हैं।

इस पर्व में लड़की तथा महिलाएं लाल पाढ़ साड़ी पहनती हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि सफेद रंग पवित्रता और शालीनता का प्रतीक, वहीं लाल रंग संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। सफेद रंग आदिवासियों का सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा और लाल रंग बुरुबोंगा का प्रतीक है। यही कारण है कि सरना झंडा का रंग भी लाल और सफेद ही होता है।

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मुंडारी में एक कथन है – ” सेनगे सुसुन, काजिगे दुरंग ” जिसका अर्थ – चलना ही नृत्य और बोलना गीत है, यही आदिवासियों का जीवन है। झारखंड के सभी लोग बहुत ही सीधा – साधा और मेहनती होते हैं, ये लोग किसी के वश में रहना नहीं जानते हैं।

सरहुल पर्व में प्रयुक्त कुछ प्रतीकों पर गौर किया जाए तो आपको पता चलेगा कि आदिवासियों की प्रकृति प्रेमी, अध्यात्मिकता, सर्वव्यापी ईश्वरीय उपस्थिति का एहसास, ईश्वरीय उपासना में सृष्टि की सब चीजों, जीव- जन्तुओं आदि का सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्वा का मनोभाव निखर उठता है।

मुंडारी समाज के लोग बहा पोरोब में क्या करते हैं?

मुंडा समाज में बहा पोरोब का विशेष महत्व है। मुंडा लोग प्रकृति के पुजारी हैं। सखुआ या सरजोम वृक्ष के नीचे मुंडारी खूंटकटी भूमि पर मुंडा समाज का पूजा स्थल सरना होता है। सभी धार्मिक नेग नियम इसी सरना स्थल पर पाहान द्वारा संपन्न किया जाता है।

जब सरई पेड़ की डालियों पर सरई फूल भर जाते हैं, तब गांव के लोग एक निर्धारित तिथि पर बहा पोरोब मनाते हैं। बहा पोरोब के पूर्व से पाहान पुजार उपवास रखता है। यह पर्व विशेष तौर पर पूर्वजों के सम्मान में मनाते हैं, धार्मिक गति विधि के अनुसार सबसे पहले सिंगबोगा परम परमेश्वर को फिर पूर्वजों और ग्राम देवता की पूजा की जाती है। पूजा की समाप्ति पर पाहन को सरहुल गीत गाते हुए नाचते-गाते उसके घर तक लाया जाता है।

क्या सरहुल पूजा में मौसम की भविष्‍यवाणी होती है?

सरहुल पर्व के दिन सृष्टि के दो महान स्वरूप शक्तिमान सूर्य एवं कन्या रूपी धरती का विवाह होता है। उरांव संस्कृति में सरहुल पूजा के पहले तक धरती कुंवारी कन्या की भांति देखी जाती है। इससे पहले धरती से उत्पन्न नए फल-फूलों का सेवन बिलकुल वर्जित होता है, इस नियम को कठोरता से पालन किया जाता है। इसी दिन सरना स्थल में पूजा करने वाले पाहान के द्वारा घड़े का पानी देखकर बारिश की भविष्यवाणी करते हैं, जो बिलकुल सच साबित होता है।

सरहुल का संदेश :- परबों का सिरोमणि – सरहुल, हम सबके लिए नवजीवन, आशा, खुशी, सम्पन्नता, पवित्रता और एकता का त्यौहार बनकर आता है। सरहुल का पर्व हमें पर्यावरण को बचाने का संदेश देता है। आदिवासियों के पर्यावरण संरक्षण संबंधित पर्व – त्योहार से पूरी दुनिया को सीख लेने की जरूरत है।

निष्कर्ष:-

आज के इस Article में हमने जाना कि – सरहुल पर्व कब मनाया जाता है?, सरहुल पर्व कैसे और क्यों मनाया जाता है?, मुंडारी समाज के लोग बहा पोरोब में क्या करते हैं? आदि बहुत सारी जानकारियां आपके साथ साझा किए जो आपको जानने लायक हो।

आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें Comment करके ज़रूर बताएं तथा अगर कोई सुझाव देना चाहते हैं तो वो भी Comment में लिख कर बताएं ताकि हम उसे सुधार कर इससे और भी बेहतर कर सकें।

FAQs:-

सरहुल पर्व (Sarhul Parv) कब मनाया जाता है?

सरहुल पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीया दिन से मनाया जाता है।

Sarhul Parv पर मछली और केकड़ा का क्या महत्व है?

यह मान्यता है कि जिस तरह केकड़े और मछली के असंख्य बच्चे होते हैं ठीक उसी तरह धान की बालियां भी असंख्य होंगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार मछली और केकड़ा पृथ्वी के पूर्वज है। समुन्द्र के मिट्टी को ऊपर लाकर ही हमारी पृथ्वी बनी है, जिसका प्रयास मछली और केकड़ा ने भी किया था। इसीलिए सरहुल का पहला दिन उनके सम्मान के लिए समर्पित होता है।

सरहुल में पूजा कौन करता है?

गांव के मुख्य पाहान के द्वारा सरहुल पूजा किया जाता है। सभी धार्मिक अनुष्ठान पहान के द्वारा संचालित किया जाता है।

सरहुल कौन समुदाय के लोग मानते हैं?

सरहुल पूजा खास कर आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। लेकिन इस पर्व को आदिवासी समुदाय के लोगों के आलावा झारखण्ड सभी मूलवासी लोग भी बड़ी धूम – धाम से मानते हैं।