Jagannath Mandir Ranchi:- रथ यात्रा भारत का एक बहुत बड़ा पर्व है, इसमें भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथ में बैठाकर एक विशाल शोभा यात्रा निकाला जाता है। उड़ीसा राज्य के पुरी में विश्व के सबसे बड़ा रथ यात्रा निकाला जाता है, कहा जाता है कि सबसे पहले पुरी की रथ यात्रा शुरू होती है, उस रथ का चलने के बाद ही पूरे विश्व में जितने जगह रथ यात्रा होती हैं।
उड़ीसा के पुरी की तरह ही झारखंड के रांची जिला के बड़कागढ़ (जगरनाथपुर), धुर्वा में भी दूसरा सबसे बड़ा रथ यात्रा निकाला जाता है। पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi से तीनों भाई-बहनों के लिए अलग-अलग रथ रहता है लेकिन रांची में एक ही रथ में बैठाकर नगर भ्रमण करवा कर मौसी घर ले जाया जाता है।
आज के इस Article में जानेंगे कि:-
- जगरनाथपुर (बड़कागढ़) का नाम कैसे पड़ा?
- जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कहां स्थित है?
- जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का निर्माण कब और किसने करवाया था?
- जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कैसे पहुंचे?
- जगरनाथपुर (बड़कागढ़) की इतिहास क्या है?
जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi
Temple Name | Jagannath Mandir Ranchi |
God | Lord Jagannath |
Place Types | Landmark & Historical Place |
Address | Jagannath Mandir Marg, Jagannathpur Chowk Khataal, Sector 1, Dhurwa, Ranchi, Jharkhand, India, 834004 |
Locality/City/Village | Jagannathpur, Badkagarh, Dhurwa |
Dist | Ranchi |
State | Jharkhand |
Country | India |
Official Website | https://ranchi.nic.in/ |
Coordinate | 23.3170241066, 85.2818425984 |
Phone | +91 1124626966 |
Temple Timings | 5:00 AM to 12:10 PM & 3:00 PM to 7:30 PM |
जगरनाथपुर (बड़कागढ़) का नाम कैसे पड़ा?
जगरनाथपुर का ही पुरना नाम है बड़कागढ़ जो राँची के धुर्वा थाना क्षेत्र में स्थित है। पहले इस क्षेत्र के राजा नागवंशी राजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव हुआ करते थे। जिनको 97 गांव (गढ़) मिले थे जो एक काफी बड़ा क्षेत्र होता है। इसी कारण से इस क्षेत्र को बड़कागढ़ कहा जाता है और जब से यहां पर जगन्नाथ मन्दिर बना तब से इस क्षेत्र को जगरनाथपुर कहा जाने लगा।
जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कहां स्थित है?
झारखण्ड के रांची से करीब 10 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा धुर्वा थाना में स्थित जगरनाथपुर (बड़कागढ़) है और यहीं पर भगवान जगन्नाथ मंदिर स्थित है यहीं पर रथ यात्रा का आयोजन होता है।

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जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Mandir Ranchi) का निर्माण कब और किसने करवाया था?
रांची के बड़कागढ़ में स्थित भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र ही नहीं बल्कि आदिवासी और सदान के सम्मिलित विश्वास का भी प्रतीक है। इस आस्था की चौखट पर न धर्म-संप्रदाय का कोई महत्व है और ना ही किसी जातियों का यह हमेशा सब के लिए हमेशा खुला हुआ है। आदिवासी भी उतने ही भक्ति के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं जितना सदान या अन्य धर्मावलंबी के लोग करते हैं।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास (History of Jagannath Temple) क्या है?
जगन्नाथ मंदिर का नींव किसने और कब रखा?
जगन्नाथ मंदिर की नींव वैष्णववाद एवं इसके संस्थापक चैतन्य महाप्रभु ने रखी थी। कहा जाता है कि जब 16वीं शताब्दी के आस पास बहुत सारे लोगों ने हिंदू धर्म को छोड़कर अन्य धर्म में धर्मांतरण कर रहे थे। तब हिंदू धर्म के धर्म गुरुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा और पहचान को बचाए रखने के लिए भगवान जगन्नाथ मंदिर जैसे कई अन्य प्राचीन मंदिरों का निर्माण शुरू कर दिया था।
जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कब और किसने किया?
राँची के बड़कागढ़ स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर निर्माण 25 दिसंबर 1691 ईस्वी में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण बड़कागढ़ के महाराजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव के द्वारा किया था। जगन्नाथ मंदिर और गर्भगृह का सम्पूर्ण निर्माण संगमरमर के पत्थरों से किया गया है, जिसमें मंदिर के संस्थापक और स्थापना वर्ष के बारे में बताया गया है।
जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का निर्माण बड़कागढ़ के एक छोटी पहाड़ी (टुंगरी) पर किया गया है, जिसकी ऊँचाई लगभग 85-90 मीटर है। मंदिर परिसर में कई तरह के पेड़-पौधे लगाए गए हैं, जो इसके वातावरण को सुंदर और भी शुद्ध बनाते हैं। मंदिर निर्माण काल से लेकर आज तक मंदिर की संरचना तथा मंदिर परिसर में कई तरह के बदलाव किए गए हैं। वर्त्तमान समय में यहां अपनी वाहन लेकर सीधे मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंच सकते हैं।
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जगन्नाथ मंदिर किसके तर्ज पर बनाया गया है?
रांची के जगन्नाथ मंदिर को पुरी के जगन्नाथ मंदिर के स्थापत्य कला की तर्ज पर बनाया गया है। इस मंदिर में भोग गृह के पहले गरुड़ मंदिर स्थिर है, जहां बीच में गरुड़ जी महाराज विराजमान हैं। गरुड़ मंदिर के आगे चौकीदार मंदिरस्थित है इन सभी मन्दिरों का निमार्ण एक साथ ही हुआ है। इन मंदिरों के आगे जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति की देख-रेख में 1987 में एक विशाल छज्जे का निर्माण किया गया। अब इस जगह एक विशाल भवन बनाया गया है।
जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi की विधि-व्यवस्था क्या है?
ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने जगन्नाथ मंदिर की विधि – व्यवस्था के लिए अपने 194 मौजों में से जगन्नाथपुर,आनि एवं भुसुर नामक तीन गांव मंदिर के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर अपनी उदारता का परिचय दिया था । इन तीनों मौजों के लगान एवं उपज से मंदिर का सारा खर्च चलता था लेकिन अभी के समय में तो यहां पर बहुत सारे पर्यटक तथा श्रद्धालु आते हैं और अच्छा-खासा दान-दक्षिण देकर चले जाते हैं। यही सारे पैसों से मंदिर का सारा खर्च चलता है।

पहले तीनों मौजों से जो सारा सामान आता था उसका हिसाब-किताब तथा मंदिर की देख-रेख में वे लोग किसी तरह से हस्तक्षेप नहीं करते थे। अंग्रेजों के शासन काल में मंदिर की विकट स्थिति हुई। मंदिर का काम तथा पूजा-पाठ सुचारू रूप से चले इसीलिए अंग्रेजी सरकार ने अपने ही पुलिस बल के जवान पंडित गंगाराम तिवारी को जगन्नाथ मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया।
एक समय गंगाराम तिवारी का भेंट मध्य प्रदेश से आए एक पंडित लेदूराम तिवारी से हुआ। उनलोगों में अच्छी दोस्ती हो गई तब गंगाराम तिवारी ने अपने दोस्त लेदूराम को भी अपने साथ देने को कहा यानि साथ में पूजा करने को क्योंकि उनका काम ज्यादा हो रहा था। बाद में गंगाराम तिवारी अपने बेटी की शादी के लिए अपने गांव पियरी चले गए और कभी वापस नहीं आए, तब से जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी लेदूराम तिवारी हो गए।
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जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति का गठन कैसे हुआ था?
1857 क्रान्ति में (जिसे आजादी की पहली लड़ाई भी कहते हैं) बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने छोटानागपुर में अपनी नेतृत्व किया था। आख़िर 16 अप्रैल 1858 को उन्हें पकड़कर फांसी दे दी गई। साथ में मुख्य पुजारी लेदूराम तिवारी को भी गिरफ्तार किया और राजा के सभी 97 गांव को भी सरकार ने जब्त कर लिया फिर बड़कागढ़ का नाम बदलकर “खास महल” कर दिया गया। बाद में अपील करने के बाद सरकार ने जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi के मुख्य पुरोहित को वापस कर दिया।
जगन्नाथ मंदिर हमेशा से पारिवारिक तथा वंशानुवाद के कारण विवादों में घिरा हुआ है और यह विवाद आज भी थमा नहीं, लेकिन फिलहाल सरकार ने इसे कानूनी रूप से सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर दी है। 1964 में धार्मिक न्यास परिषद की ओर से जगन्नाथ मंदिर को सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर दी गई। उसके बाद पटना उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर भी लगा दी और आखिर 1977 में जगन्नाथपुर न्यास समिति का गठन किया गया।
पहली गठित जगन्नाथपुर न्यास समिति के पदाधिकारी का नाम :-
मंदिर का नाम | जगन्नाथ मंदिर रांची, Jagannath Mandir Ranchi |
अध्यक्ष | रामरतन राम |
पदेन सचिव | डीसी रांची |
कोषाध्यक्ष | राधेश्याम नाथ शाहदेव |
पदेन सचिव | एच. ई. सी. , सी. एम. डी. |
सदस्य | बी. राम सम्पर्क पदाधिकारी, चीफ़ ऑफ पुलिस, जगदीश शुक्ला, अधिवक्ता बलराम ठाकुर, गोपी कृष्ण महेश्वरी, सरस्वती कच्छप, एवं बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद पटना पदेन सदस्य। |
जगन्नाथपुर न्यास समिति के गठित हो जाने के बाद मंदिर अब सुचारू रूप से चल रहा है तथा उसके साथ उसका निर्माण कार्य भी हो रहा है। मंदिर समिति मंदिर की जमीन को पाने का प्रयास कर रही है। जो उस समय एच.ई.सी के लिए बिहार सरकार ने देवोत्तर भूमि (मंदिर का जमीन) का भी अधिग्रहण किया था।
जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का स्थापना दिवस कब मनाया जाता है?
हर साल जगन्नाथपुर में 25 दिसंबर को मंदिर प्रांगण में जगन्नाथ मंदिर स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में 1 लाख विष्णु लाक्षार्चना का विशेष पाठ होता है, जिसमें सैकड़ों – हज़ारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस विशेष पाठ में पुरुष धोती तथा महिलाएं साड़ी पहनकर पूजा-अर्चना करतीं हैं। इस दिन सुबह 6 से लेकर दिन 12 बजे तक यह अनुष्ठान होता है फिर उसके बाद भंडारे का आयोजन होता है। यहां आए हुए सभी लोग भंडारे में बना हुआ भोग का खाते हैं।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़े लोककथा एवं किंवदंतीयां क्या-क्या हैं?
भगवान जगन्नाथ मंदिर के निर्माण की लोककथा/किंवदंती सैकड़ों सालों से सुनते आ रहे हैं ये कथाएं काफ़ी प्रचलित तथा बेहद ही रोचक है, जिसे हमें अवश्य जानना चाहिए। बहुत समय पहले की बात है रांची के बड़कागढ़ क्षेत्र पर नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव का शासन हुआ करता था। ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव जब अपने बुढ़ापे में पहुंच गए तो उनकी संसार की मोह माया खत्म हो गई थी। अब बस उन्हें भक्ति में लीन रहने तथा चारों धाम की यात्रा करने का मन करने लगा।

एक दिन नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर की दर्शन करने का मन बनाया और अपने साथी, नेता – मंत्री, नौकर – चाकर, सैनिक तथा खाने – पीने का सामान को लेकर पुरी यात्रा के लिए निकल पड़े। उस समय की यात्रा आज की तरह सुगम नहीं था, उन्हें रास्ता में जल – जंगल, पहाड़ – पर्वत, नदी – नाला को पार करना पड़ा और वे लोग आखिर पुरी जगन्नाथ मंदिर पहुंच गए।
वहां पहुंचकर उन्होंने अपना टेंट ⛺ लगाया और समुन्द्र में नहा धोकर स्वामी जगन्नाथ का दर्शन तथा पूजा – अर्चना करने के लिए मंदिर गए। मंदिर में पूजा करने के बाद सभी अपने टेंट पर आ गए कोई लोग तो मंदिर प्रांगण में ही विश्राम करने लगे। राजा का मन अब यहां से जाने का नहीं होने लगा, इसीलिए वह पूजा – पाठ में समय व्यतीत करने लगा। सोते-जागते उसकी जुबान पर बस महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी का ही नाम सुनाई देने लगा। आस्था और भक्ति की गंगा में वह इस तरह से डूब गया कि जिसका व्याख्या करना मुश्किल है। उसे लगने लगा कि भगवान जगन्नाथ स्वामी से उसका सीधा मिलन हो गया।
लेकिन उनके साथ गए हुए उरांव सेवक/नौकर का दिक्कत होने लगा कारण वो मंदिर में बना हुआ भोग भात खाने से मना कर दिया था। राजा ने उसे कहा कि यहां बिना भेदभाव किए भगवान जगन्नाथ स्वामी का प्रसाद सभी कोई ग्रहण कर रहा है इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो रहा है फिर तुम्हें क्यों हो रहा है। ये सब बातें सुनकर भी उरांव सेवक वहां खाना खाने के लिए मना कर दिया और वो उपवास/भूखा ही रहने लगा।
वो लगातार एक सप्ताह तक तो ठीक तरह से खाली पेट रहा लेकिन सातवीं रात में वो भूख से खलबलाने लगा और बोलने लगा कि अगर वास्तव में भगवान जगन्नाथ स्वामी यहां पर हैं तो मेरे उदर (पेट) की भूख को क्यों नहीं मिटा रहें हैं। तभी थोड़ी देर बाद में वो देखा कि उसके सामने से एक बूढ़ा ब्राह्मण एक सोने का थाली में कुछ लेकर आ रहा है। वो सोने की थाली में भात – सब्जी लेकर आया था, वो सामने आकर बोला कि तुम बहुत भूखे हो लो थोड़ा खाना खा लो और सो जाओ। इतना कहकर वो बूढ़ा आदमी वहां से चला गया।
खाना खाकर उसका मन तृप्त हो गया तथा उसे अपार संतुष्टि मिली। आखिर उसे सात दिनों की भूख शांत हुई। खाना खाकर जब वो सो गया तब उसे सपने में भगवान श्री कृष्ण अपने बारे बताया बोला की वो बूढ़ा ब्राह्मण व्यक्ति मैं ही था। तुम बहुत बड़ा सौभाग्य वाले हो जो मुझे साक्षात दर्शन किया। अगले दिन महाराजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने उरांव सेवक के पास सोने का थाली देखी तो उसके बारे उसे पूछताछ करने लगे। उरांव सेवक ने अपनी सारी बातें राजा साहब को बताया।
पूरी कहानी सुनने के बाद खुद राजा को अपमान सा लगने लगा। उनके मन में आया कि मैं इतने दिनों से रात – दिन भगवान जगन्नाथ स्वामी की भक्ति में लीन होने पर भी मुझे ऐसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ लेकिन इस साधारण सा सेवक को आसानी से भगवान जगन्नाथ का दर्शन हो गया। ठीक उसी रात महाराजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव को स्वप्न आया कि जिसमें भगवान कृष्ण ने उसे कहा कि तुम अब वापस अपना घर, अपना राज्य चले जाओ वहीं पर भगवान जगन्नाथ स्वामी यानी मेरा एक मंदिर का स्थापना करना। वहीं पर मैं तुम्हें साक्षात दर्शन दूंगा। इसे राजा ने भगवान का आदेश मानकर वे अपने सारे साथी, नेता – मंत्री, नौकर – चाकर, सैनिक के साथ वापस अपनी राजधानी सतरंजी लौट आए।
नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव अपनी राजधानी लौटने के बाद सुबह – शाम मंदिर निर्माण की ही बात सोचते थे। आखिर उन्होंने अपने पूरे परिवार, शुभचिंतकों, सरदारों, गुरुओं आदि से विचार – विमर्श किया और मंदिर निर्माण करने का सही स्थान का चयन किया। उन्होंने आदेश दिया कि पुरी की तरह ही भगवान जगन्नाथ स्वामी का भव्य मंदिर बनवाया जाए। इसके बाद मराठी राजगुरु हरिनाथ चारी के तत्वाधान में 1691 में जगन्नाथ मंदिर बनकर तैयार हो गया। तब बड़कागढ़ का इलाका जंगलों से घिरा हुआ था।
जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi में हर जाति के लोगों के लिए काम तय है।
कहा जाता है कि उसी समय नागवंशी राजा ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने यह भी तय कर दिया कि भगवान जगन्नाथ स्वामी की सेवा सभी जाति के लोग कर सकते हैं। इस मंदिर में घंटी बजाने और तेल-भोग चढ़ाने की जिम्मेदारी आदिवासी उरांव परिवार की होगी। वहीं, आदिवासी मुंडा परिवार के लोग यहां झंडा फहराएंगे तथा पगड़ी देंगे। साथ ही मुंडा परिवार के लोग ही वार्षिक पूजा भी करेंगे।

जबकि, रजवार और यादव(अहीर) जाति के लोग भगवान जगन्नाथ स्वामी को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाएंगे। फिर, बढ़ई परिवार के लोग मंदिर आदि का रंग-रोगन तथा लकड़ी का सारा काम करेंगे। वहीं, लोहरा समुदाय के लोग भगवान जगन्नाथ स्वामी के रथ की मम्मत करेंगे। इसी तरह, कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी का बर्तन, दीया आदि बनाकर उपलब्ध कराएंगे। आज भी इस परंपरा का यहां निर्वहन होता है।
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एक छोटी-सी पहाड़ी (टुंगरी) पर भगवान जगन्नाथ स्वामी का मंदिर स्थित है।
वर्ष 1691 में बना भगवान जगन्नाथ स्वामी का यह मंदिर रांची के बड़कागढ़ (जगन्नाथपुर), धुर्वा में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण एक छोटी-सी एक पहाड़ी (टुंगरी) पर किया गया है। यह मंदिर दिखने में बिल्कुल जगन्नाथ मंदिर पुरी की तरह ही प्रतीत होता है यहां पर हर साल विशाल रथ यात्रा का आयोजन होता है जो कि पुरी के रथ यात्रा जैसा ही होता है।
पहले बड़कागढ़ का इलाका एक रियासत का हिस्सा था। ये इलाका राजा के 97 गावों में से एक था जो कि काफी खास था। जगन्नाथ मंदिर के आस – पास काफ़ी घना जंगल था तथा इसके चारों ओर हरियाली ही हरियाली था, जो किसी को भी अपने ओर आकर्षित करती थी। इस टुंगरी की ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है। दर्शक या श्रद्धालु को इस मंदिर में चढ़ने के लिए कोई दिक्कत न हो इसीलिए मंदिर में सीढ़ी का निर्माण किया गया।
भगवान जगन्नाथ स्वामी की नेत्र दान की पूजा होती है।
रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर के तत्कालीन मुख्य पुजारी रामेश्वर पाढ़ही के अनुसार नेत्रदान की पूजा का मतलब भगवान जगन्नाथ स्वामी के नेत्र के श्रृंगार से जुड़ा हुआ है। उनके अनुसार भगवान का अज्ञातवास ज्येष्ठ पूर्णमासी के दिन ही शुरू होता है। पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को स्नान कराने के लिए विशेष जल से मिट्टी के घड़े एकत्रित किया जाता है। इस जल से भगवान को नहलाने के बाद भगवान का तबीयत खराब हो जाती है और जिसके बाद वो बीमार हो जाते हैं। बीमार होने के कारण भगवान अज्ञातवास में चले जाते हैं, यही कारण है कि उस समय वे किसी को दर्शन नहीं देते हैं।
जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ स्वामी 16 दिनों तक गर्भ गृह में अज्ञातवास में रहते हैं। फिर वह 16 दिनों के बाद शाम में भगवान जगन्नाथ स्वामी को अज्ञातवास से बाहर निकालते हैं। बाहर निकालने के बाद नेत्रदान की पूजा की जाती है। उसके बाद भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाता है। नेत्र दान के दिन से ही यहां पर श्रद्धालुओं का आने जाने का तांता लगा हुआ रहता है।
नेत्र दान की पूजा के बाद भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा निकाली जाती है, जहां नवनिर्मित 36-40 फीट ऊंचे रथ पर भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ विराजमान होते हैं। तीनों भाई – बहन रथ में बैठकर मुख्य मंदिर से मौसीबाड़ी तक जाते हैं।
जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का धार्मिक महत्व क्या है?
रांची के जगन्नाथपुर में स्थित जगन्नाथ मंदिर की पूजा अन्य हिंदू मंदिरों से काफी भिन्न होता है। यहां के पुजारियों को पांडा के नामों से जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ के भक्त नदी, तालाब या घर से ही स्नान करके जाते हैं और उनका दर्शन तथा पूजा – पाठ करते हैं। पूजा की शुरुआत भगवान जगन्नाथ को फूल-फल और भोजन/भोग चढ़ाने से होती है।
देवताओं को सुबह, दोपहर तथा रात का भोजन भी दिया जाता है, जिसे भोग के नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ मंदिर में तीन बार आरती होती है – सुबह, दोपहर और रात। पुरी के रथ यात्रा के समान ही इस मंदिर में भी आषाढ़ के महीने में एक वार्षिक मेले के साथ रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
ये मेला 10 दिनों तक लगता है, जिसमें न केवल रांची से बल्कि पूरे झारखंड तथा पड़ोसी गांवों और कस्बों से भी हजारों आदिवासी और गैर-आदिवासी श्रद्धालु यहां पर भगवान जगन्नाथ स्वामी का दर्शन करने आते हैं। यहां पर रथ यात्रा को बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi की भौगोलिक स्थिति क्या है?
भगवान जगन्नाथ का मंदिर एक पहाड़ी/टुंगरी की चोटी पर स्थित है, जिसकी उंचाई करीब 85-90 मीटर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु/दर्शक सीढ़ियां से जा सकते हैं या तो जिसे सीढ़ी चढ़ने के लिए दिक्कत होती है वो सड़क मार्ग से घूमकर किसी भी वाहन या पैदल ऊपर तक जा सकते हैं।
मंदिर पहुँचने के लिए लगभग 100-200 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। अगर आप पैदल मंदिर तक जाते हैं तो बीच में रुक कर आराम भी कर सकते हैं। जैसे ही आप मंदिर तक पहुँच जाते हैं, जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए ताजे पानी की व्यवस्था किया गया है। उसमें आप अपना हाथ – पैर धो सकते हैं, पानी पी सकते हैं तथा जल चढ़ाने के लिए भी ले जा सकते हैं। मंदिर के चारों ओर पेड़ – पौधों से भरा हुआ जिसके ठंडी छाया में बैठकर अपनी थकान दूर कर सकते हैं।
मंदिर तक चढ़ने के बाद आप चारों ओर का नज़ारा देख सकते हैं, जो देखने में काफी सुन्दर और मनमोहक होता है। यहां से आप पहाड़ी मंदिर, विधानसभा भवन, धुर्वा डैम, JSCA स्टेडियम आदि का नज़ारा देख सकते हैं। यहां से काफ़ी सुंदर दृश्य आने के कारण लोग यहां पर फ़ोटोशूट, वीडियो शूट, वैडिंग फ़ोटोशूट, वीडियो शूट, नागपुरी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषा वाला वीडियो शूटिंग करते हैं।
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जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi की वास्तुकला कैसी है?
रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर, बड़कागढ़ में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण उड़िसा/उत्कल के कलिंग शैली की वास्तुकला के अनुसार किया गया है। मंदिर की बनावट उड़ीसा के पुरी में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर जैसा ही है। हालांकि, इस मंदिर का आकार में पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तुलना से छोटा है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है।
सभी देवताओं को नीम की लकड़ी से उकेरा/बनाया गया है। जगन्नाथ मंदिर को जटिल नक्काशी के साथ बड़े ही सुन्दर तरीके बनाया गया है। इस मंदिर को रंगों के अनूठे मिश्रण के साथ सजाया गया है, जिससे मंदिर देखने में और भी आकर्षक लगता है। मंदिर के अंदरूनी हिस्से को एक किले के रूप में बनाया गया है, जिसके चलते श्रद्धालुओं को पूजा करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। मंदिर के भीतर एक लंबा गर्भगृह है, भगवान अपने अज्ञातवास में यहीं पर रहते हैं।
जगन्नाथ मंदिर परिसर में जगमोहन मंदिर,नट मंदिर, विष्णु मंदिर, शिव मंदिर, काली मंदिर और हनुमान जी का मंदिर भी स्थित है। जबकि मंदिर के बाहर प्रांगण में गरुड़ की मूर्ति विराजमान हैं। जगन्नाथ मंदिर, वैष्णव पंथ से संबंधित भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi के खुलने का समय क्या है?
भगवान जगन्नाथ स्वामी जी के मंदिर सुबह 5:00 बजे तक खुल जाता है फिर प्रातः आरती 6:00 बजे किया जाता है। अन्न भोग का समय दोपहर 12:00 बजे है, जिसमें भगवान को हर दिन दोपहर का भोजन दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ स्वामी जी भोजन करने के बाद दोपहर 12:10 बजे से 3:00 बजे तक अपने शयनकछ में सोने के लिए चले जाते हैं, इसका मतलब इस समय आप भगवान का दर्शन नहीं कर सकते हैं।
पुनः मंदिर का मुख्य दरवाजा शाम के 3:00 बजे खुलता है। मंदिर का पट खुलने के बाद संध्या कालीन मंगल आरती 3:00 बजे की जाती है। शरद कालीन के समय शाम के 5:30 से 6:30 बजे माइक के द्वारा भजन गाया जाता है, वहीं ग्रीष्म कालीन का समय शाम के 6:00 से 7:00 बजे तक है। शरद कालीन के समय शयन आरती शाम के 7:00 बजे होता है उसके बाद भगवान का पट 7:30 बजे तक बंद कर दिया जाता है यानि भगवान अब सोने चले जाते हैं। वहीं ग्रीष्म कालीन का समय शयन आरती शाम के 7:30 बजे होता है फिर भगवान 8 बजे तक सोने के लिए चले जाते हैं यानी मंदिर का पट बंद हो जाता है।
नोट :- हर दिन भगवान जगन्नाथ स्वामी जी का दर्शन प्रातः 5:00 बजे से दोपहर के 12:10 तक होता रहेगा। फिर 3:00 बजे अपराह्न से लेकर रात्रि 7:30 बजे प्रभु श्री जगन्नाथ स्वामी जी का दर्शन होगा।
जगन्नाथ मंदिर रांची में कैसे पहुंचे? (How to reach Jagannath Temple Ranchi?)
रांची के जगन्नाथ मंदिर का शानदार सौंदर्य और दृश्य सभी प्रकार के श्रद्धालुओं/आगंतुकों/पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पर लोग रिक्शा, ई – रिक्शा, साइकिल, मोटरसाइकिल, कार, बस, ऑटो रिक्शा, टैक्सी, Ola, Uber, Rapido आदि के माध्यम से आसानी से आ सकते हैं।
देश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी आने वाले श्रद्धालुओं/आगंतुकों/पर्यटकों रांची शहर में स्थित बिरसा मुंडा हवाई अड्डा/रांची हवाई अड्डे तथा रांची रेलवे स्टेशन या हटिया रेलवे स्टेशन या फिर खादगाढ़ा बस स्टैंड में उतर कर आसानी से मन्दिर तक पहुंच सकते हैं।
साधन | नजदीक स्थान | दुरी/समय |
---|---|---|
By Air | Birsa Munda International Airport, Ranchi | 07 Km/(15 min) |
By Train | Ranchi Railway Station Hatia Railway Station | 8.7 Km/(20 min) 5.7 Km/(13 min) |
By Bus | Birsa Munda Bus Terminal, Khadgarha, Ranchi | 11 Km/(30 min) |
By Bus | Govt Bus Stand, Ranchi | 08 Km/(20 min) |
Local Transport :- Jagannath Mandir Ranchi जाने के लिए आप अपने निजी वाहन, Ola, Uber, ऑटो रिक्शा, ई रिक्शा, साइकिल, पैदल से बिलकुल आसानी से पहुंच सकते हैं।
जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का पुरा पता क्या है?
God | Lord Jagannath |
Temple Name | Jagannath Mandir Ranchi |
Place Types | Landmark & Historical Place |
Address | Jagannath Mandir Marg, Jagannathpur Chowk Khataal, Sector 1, Dhurwa, Ranchi, Jharkhand, India, 834004 |
Locality/City/Village | Jagannathpur, Badkagarh, Dhurwa |
Dist | Ranchi |
State | Jharkhand |
Country | India |
Coordinate | 23.3170241066, 85.2818425984 |
Phone | +91 1124626966 |
Temple Timings | 5:00 AM to 12:10 PM & 3:00 PM to 7:30 PM |
जगन्नाथ मंदिर रांची/Jagannath Mandir Ranchi की किन-किन नामों से जाना जाता है?
Jagannath Mandir को जगन्नाथ मंदिर पहाड़ी, बड़कागढ़ पहाड़ी, जगन्नाथपुर पहाड़ी, रथ मेला, रथ टुंगरी, जगन्नाथ टुंगरी, रथ यात्रा मेला के नामों से जाना जाता है।
Conclusion:-
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको बताया कि – Jagannath Mandir Ranchi क्या है?, jagannath Mandir कहां स्थित है? तथा jagannath Temple /Jagannath Mandir Ranchi का इतिहास क्या है? आदि जैसे और भी बहुत कुछ जो आपको जानने लायक हो।
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FAQs
जगरनाथपुर (बड़कागढ़) का नाम कैसे पड़ा?
जगरनाथपुर (बड़कागढ़) के कारण।
जगरनाथपुर (बड़कागढ़) कहां पर स्थित है?
जगरनाथपुर,बड़कागढ़, धुर्वा, रांची
क्या Jagannath Mandir Ranchi में Entry Fee’s लगता है?
Fully Free लेकिन आप मंदिर में इच्छा पूर्ण दान कर सकते हैं।
क्या Jagannath Mandir से पूरी रांची देखा जा सकता है?
नहीं, लेकिन यहां से आस – पास के इलाका जैसे धुर्वा डैम, विधानसभा भवन, धुर्वा, हटिया स्टेशन, रांची हवाई अड्डा आदि देख सकते हैं।
Jagannath Mandir Ranchi जाने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
वैसे तो आप दिन के समय मंदिर में कभी भी पूजा के लिए आ सकते हैं लेकिन Morning 5-6 AM or Evening 5-6 PM यानि इस समय यहां पर प्रातः कालीन आरती तथा संध्या कालीन आरती होती है। अगर आप इस समय आते हैं तो आराम से पूजा के साथ आरती भी कर सकते हैं।
Jagannath Mandir Ranchi को किस नाम से जाना जाता है?
रथ मेला, बड़ाकगढ़ मेला, जगन्नाथ मेला, रांची रथ यात्रा मेला, बड़ाकगढ़ रथ यात्रा मेला आदि।
Jagannath Mandir को किसने बनवाया था?
बड़कागढ़ के नागवंशी राजा रामशाह के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने 25 दिसम्बर 1691 में जगन्नाथ मंदिर/Jagannath Mandir Ranchi का निर्माण करवाया।